सुलखान सिंह 

कई मित्रों ने भारतीय संविधान की मूल प्रति पर चित्रित भारतीय संस्कृति के प्रतीक चित्रों के बारे में जानकारी चाही है। अतः कुल 22 चित्रों की सूची तथा कुछ चित्र प्रस्तुत हैं। इनमें धनुर्धर राम, कृष्ण, अर्जुन, नटराज शिव, महावीर, गांधी, अकबर आदि शामिल हैं।


 

राम और कृष्ण

यह दिलचस्प है कि भाग-3, मौलिक अधिकार में शस्त्रधारी राम और भाग-4, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत पर रथारूढ़ श्री कृष्ण और अर्जुन का चित्रण है। मुझे नहीं मालूम कि संविधान की रचना के समय इन चित्रणों का आधार क्या था। परन्तु मैं इसका अर्थान्वयन निम्नवत करता हूँ-

  • मौलिक अधिकार व्यक्ति की गरिमा और मानवीय विकास के लिए अपरिहार्य हैं, जिनकी रक्षा राम के आदर्शों के अनुरूप संपूर्ण सख्ती के साथ की जानी चाहिए। सभी के मौलिक अधिकारों के वृहत्तर संरक्षण के लिए राज्य को मर्यादित आचरण और निजी त्याग का मार्ग अपनाना होगा।
  • वहीं सामाजिक न्याय और समवेशी विकास के लिए राज्य की आर्थिक और सामाजिक नीतियों में कृष्ण की न्याय आधारित नीतियों से दिग्दर्शन प्राप्त किया जाना चाहिए। जैसे कृष्ण समरसता और सामाजिक राजनैतिक न्याय के लिए स्थापित मर्यादाओं और परम्पराओं में आवश्यक विचलन करते हैं, उसी प्रकार हमें भी राज्य की नीतियाँ बनाते समय आवश्यक विचलन और अपवाद करने होंगे ताकि वंचित, पीड़ित तथा पिछड़े वर्गों का उत्थान हो और उन्हें भी समाज की मुख्य धारा में लाया जा सके।

(लेखक उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक हैं। उनका यह आलेख उनकी फेसबुक पोस्ट से साभार लिया गया है)


 

भारतीय संविधान के चित्रकार नंदलाल बोस

पंचानन मिश्र ।

भारतीय संविधान की मूल प्रति को अपनी चित्रों से सजाने वाले चित्रकार नंदलाल बोस का जन्म दिसंबर 1882 में बिहार के मुंगेर नगर में हुआ। उनके पिता पूर्णचंद्र बोस ऑर्किटेक्ट तथा महाराजा दरभंगा की रियासत के मैनेजर थे। उन्होंने 1905 से 1910 के बीय कलकत्ता गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ आर्ट में अबनीन्द्ननाथ ठाकुर से कला की शिक्षा ली, इंडियन स्कूल ऑफ़ ओरियंटल आर्ट में अध्यापन किया और 1922 से 1951 तक शान्तिनिकेतन के कलाभवन के प्रधानाध्यापक रहे। यहीं शांतिनिकेतन में पंडित नेहरू की उनसे मुलाकात हुई और नेहरू जी ने उन्हें संविधान को भारतीय चित्रो से सजाने की बात कही। 221 पेज के संविधान में 22 भाग है और हर भाग की शुरुआत में 8 गुना 13 इंच के चित्र बनाये गए हैं। इन 22 चित्रों को बनाने में चार साल लगे। इस काम के लिए उन्हें 21,000 मेहनताना दिया गया।


 

भारतीय संविधान की मूल प्रति को अपनी चित्रों से सजाने वाले चित्रकार नंदलाल बोस

भारतीय इतिहास की विकास यात्रा

नंदलाल बोस के बनाए इन चित्रों का भारतीय संविधान या उसके निर्माण प्रक्रिया से कोई सीधा ताल्लुक नहीं है। वास्तव में ये चित्र भारतीय इतिहास की विकास यात्रा हैं। सुनहरे बार्डर और लाल-पीले रंग की अधिकता लिए हुए इन चित्रों की शुरुआत होती है भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक की लाट से। अगले भाग में भारतीय संविधान की प्रस्तावना है, जिसे सुनहरे बार्डर से घेरा गया है, जिसमें घोड़ा, शेर, हाथी और बैल के चित्र बने हैं। ये वही चित्र हैं, जो हमें सामान्यत: मोहन जोदड़ो की सभ्यता के अध्ययन में दिखाई देते हैं। भारतीय संस्कृति में शतदल कमल का महत्व रहा है, इसलिए इस बार्डर में शतदल कमल को भी नंदलाल ने जगह दी है। इन फूलों को समकालीन लिपि में लिखे हुए अक्षरों के घेरे में रखा गया है। अगले भाग में मोहन जोदड़ो की सील दिखाई गई है। वास्तव में भारतीय सभ्यता की पहचान में इस सील का बड़ा ही महत्व है। शायद यही कारण है कि हमारी सभ्यता की इस निशानी को शुरुआत में जगह दी गई है। अगले भाग से वैदिक काल की शुरुआत होती है। किसी ऋषि के आश्रम का चिह्न है। मध्य में गुरु बैठे हुए हैं और उनके शिष्यों को दर्शाया गया है। बगल में एक यज्ञशाला बनी हुई है।

संविधान सभा में विवाद

मूल अधिकार वाले भाग की शुरुआत त्रेतायुग से होती है। इस चित्र में भगवान राम रावण को हराकर सीता जी को लंका से वापस ले आ रहे हैं। राम धनुष-वाण लेकर आगे बैठे हुए हैं और उनके पीछे लक्ष्मण और हनुमान हैं। इस चित्र को लेकर संविधान सभा में विवाद भी हुआ था। कुछ सदस्यों का तर्क था कि जब संविधान में ही भगवान राम का चित्र दिखाया गया है तो फिर यह संविधान पंथनिरपेक्ष कैसे। बाद में जब वोटिंग हुई तो यह तय हुआ कि संविधान में लिखे शब्द भारतीय संविधान के अंग हैं न कि उसमें छपे चित्र। ये उस वक़्त संविधान सभा के सदस्यों की दूरदर्शिता और राजनीतिक राष्ट्रीय चेतना को भी दर्शाता है।

नीति निर्देशक तत्व

अगले भाग में नीति निर्देशक तत्व हैं। ऐतिहासिक विकास क्रम के अनुसार भगवान कृष्ण को इस चित्र में दर्शाया गया है। कृष्ण के गीता उपदेश की जो तस्वीर सामान्य: हम देखते हैं, उसे ही नंदलाल ने इस भाग में उकेरा है। भारतीय संघ नाम के पाचवें भाग में भगवान गौतम बुद्ध की जीवन यात्रा से जुड़ा एक दृश्य है। महात्मा बुद्ध बीच में बैठे हुए हैं और उनके चारों ओर उनके पांच शिष्य घेरकर बैठे हुए हैं। हिरन और बारहसिंहा जैसे जानवरों को भी दर्शाया गया है। अगले भाग संघ और उनका राज्य क्षेत्र-1 में भगवान महावीर को समाधि की मुद्रा में दिखाया गया है। आठवें भाग में गुप्तकाल से जुड़ी एक कलाकृति को उकेरा गया है। भारतीय इतिहास में गुप्त काल को स्वर्णिम युग की संज्ञा दी जाती है, इसलिए इस चित्र में तत्कालीन भारतीय संस्कृति के हर अंगों को समेटने की कोशिश की गई है। नृत्य करती हुई नर्तकियों के चारों ओर राजाओं का घेरा है। यह चित्र कलात्मक दृष्टि से अत्यंत श्रेष्ठ है।

नालंदा विश्वविद्यालय की मोहर

दसवें भाग में गुप्तकालीन नालंदा विश्वविद्यालय की मोहर दिखाई गई है। मोहर पर देवनागरी लिपि में नालंदा विश्वविद्यालय लिखा हुआ है। 11वें भाग से मध्यकालीन इतिहास की शुरुआत होती है। उड़ीसा की मूर्तिकला को दिखाते हुए एक चित्र को इस भाग में जगह दी गई है और बारहवें भाग में नटराज की मूर्ति बनाई गई है। तेरहवें भाग में महाबलिपुरम मंदिर पर उकेरी गई कलाकृतियों को दर्शाया गया है। शेषनाग के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं के चित्र हैं। भागीरथी तपस्या और गंगा अवतरण को भी इसी चित्र में दर्शाया गया है। हालांकि कालखंड के हिसाब से यह दृश्य अब तक की श्रृंखला को तोड़ता है। 14वां भाग केंद्र और राज्यों के अधीन सेवाएं। इस भाग में मुगल स्थापत्य कला को जगह दी गई है। बादशाह अकबर और उनके दरबारी बैठे हुए हैं। पीछे चंवर डुलाती हुई महिलाएं हैं। मूल संविधान में 15वां भाग चुनाव है। इस भाग में गुरु गोविंद सिंह और शिवाजी को दिखाया गया है। पहली बार दो अलग-अलग चित्रों को जोड़कर एक चित्र बनाया गया है।

गांधी जी की दांडी यात्रा

16वें भाग से ब्रिटिश काल शुरू होता है। टीपू सुल्तान और महारानी लक्ष्मी बाई को बरतानिया सरकार से लोहा लेते हुए दिखाया गया है। 17वें भाग जो कि मूल संविधान में आधिकारिक भाषाओं का खंड है, में गांधी जी की दांडी यात्रा को दिखाया गया है। अगले भाग में महात्मा गांधी की नोआखली यात्रा से जुड़ा चित्र है। सांप्रदायिक सद्भावना का प्रतिनिधित्व करते इस चित्र में गांधी जी के साथ दीन बंधु एंड्रयूज भी हैं। एक हिंदू महिला गांधी जी को तिलक लगा रही है और कुछ मुस्लिम पुरुष हाथ जोड़कर खड़े हैं। 19वें भाग में नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज का सैल्यूट ले रहे हैं। चित्र में अंग्रेजी भाषा में लिखा हुआ है कि इस पवित्र युद्ध में हमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आवश्यकता हमेशा रहेगी। 20वें भाग में हिमालय के उत्तंग शिखरों को दिखाया गया है। हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती, स्वयंप्रभा समुजज्वला स्वतंत्रता पुकारती, अम‌र्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो, प्रशस्त पुण्य पंथ हैं- बढ़े चलो, बढ़े चलो। ऐसे ही मनोभावों की व्याख्या करता यह चित्र भारतीय संस्कृति और सभ्यता की ऊंचाई का प्रतिबिंबन है। अगले भाग में रेगिस्तान का चित्रण है। दूर तक फैले रेगिस्तान के बीच ऊटों काफिला। वास्तव में इस चित्र का उद्देश्य हमारी प्राकृतिक विविधता को दर्शाना है।

गौरवशाली सामुद्रिक विस्तार

अंतिम भाग में समुद्र का चित्र है। एक समय था, जब भारत बर्मा, इंडोनेशिया, मलय जैसे दीपों पर अपना अधिकार रखता है। चित्र में एक विशालकाय पानी का जहाज है, जो हमारे गौरवशाली सामुद्रिक विस्तार और हमारी यात्राओं का प्रतीक है।

 

नन्दलाल बोस के स्वतन्त्रता आन्दोलन से सम्बन्धित चित्र भी भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहर हैं। इनमें गाँधी जी की ‘दाण्डी यात्रा’ तो बहुत प्रसिद्ध है। 1954 में वे ‘पद्मविभूषण’ से सम्मानित किये गये। उन्होंने ‘शिल्प-चर्चा’ नामक एक पुस्तक भी लिखी।16 अप्रैल 1966 को 83 वर्ष की आयु में इस कला मनीषी का देहान्त हुआ।

(राज्यसभा टीवी की वेबसाइट से साभार)


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