(आजादी विशेष)

भारतीय स्वतंत्रता दिवस के 77वें उत्सव को अब केवल दो दिन शेष रह गए हैं। ऐसे में हम उन हजारों-हजार क्रांतिकारियों का स्मरण कर रहे हैं जिनके बलिदान से गुलामी की बेडियां कट सकीं और हम आजाद हुए। हम खासकर उन स्वतंत्रता सेनानियों का चरित्र सामने लाने का प्रयास कर रहे हैं, जिन्हें इतिहास में स्थान नहीं मिला, जो गुमनाम रह गए। यह वह दौर था जब भारत माता को अंग्रेजों के जुल्म से आजाद कराने के लिए युवाओं ही नहीं तरूणों ने भी अपनी छोटी उम्र की परवाह नहीं की। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खुदीराम बोस और करतार सिंह सराभा सबसे कम उम्र में फांसी पर लटकने वाले थे। खुदीराम बोस को 16 साल और करतार सिंह सराभा को 15 साल की उम्र में फांसी पर लटकाया गया था। वहीं दूसरी ओर इतिहास में जिनका नाम दर्ज नहीं हो सका, ऐसे बिहार विधानसभा पर लहरा रहे अंग्रेजी झंडा उतार कर तिरंगा लहराने के दौरान अंग्रेजों की गोलियों से छलनी होकर बलिदान हुए देवीपद चौधरी केवल 14 साल के थे। उसी तरह से पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के पुरी माधव प्रमाणिक भी 29 सितंबर, 1942 को आतताई गोरों की गोलियों से छलनी होकर जब मातृभूमि पर बलिदान हुए, तब उनकी भी उम्र महज 14 साल थी।अगस्त क्रांति के बलिदानियों के बारे में लिखी अपनी किताब में इतिहासकार नागेन्द्र सिन्हा बताते हैं कि पुरी माधव प्रमाणिक का जन्म तत्कालीन बंगाल प्रांत के मेदिनीपुर जिला के सुताहाटा थाना क्षेत्र के द्वारी बेरिया गांव में वर्ष 1928 में हुआ था। मेदिनीपुर एक ऐसा जिला था जहां शुरुआत से ही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांतिकारियों ने बिगुल फूंक दिया था।

मेदिनीपुर में पोस्टिंग से डरते थे अंग्रेज अधिकारी, तीन मजिस्ट्रेट की हुई थी हत्या

इस जिले में पोस्टिंग होते ही अंग्रेज अधिकारी सिहर उठते थे। इसकी वजह थी कि सात अप्रैल 1931 को पेड्डी, 30 अप्रैल 1932 को डगलस और 2 सितंबर 1933 को बुर्ज अंग्रेज मजिस्ट्रेट को क्रांतिकारियों ने सरेआम मौत के घाट उतार दिया था। मेदिनीपुर का अपना एक अलग इतिहास है। यहां क्रांतिकारियों ने इस कदर एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी कि आजादी से बहुत पहले 1942 में ही यहां पूरी अंग्रेजी फौज को खदेड़ कर स्वतंत्र “ताम्रलिप्त सरकार” का गठन कर दिया गया था।

1942 में जब पूरे देश में भारत छोड़ो का प्रस्ताव पारित कर अगस्त क्रांति की शुरुआत की गई तो मेदिनीपुरी जिला कहां पीछे रहने वाला था। यहां क्रांतिकारियों के उग्र रवैये से भयभीत ब्रिटिश सरकार ने अगस्त 1942 में मुनादी करवा दी थी कि किसी भी क्रांतिकारी को देखते ही गोली मार दी जाएगी। इससे उन क्रांतिकारियों को क्या फर्क पड़ने वाला था जिन्होंने लगातार अंग्रेज मजिस्ट्रेटों को मौत के घाट उतारा था। वे कहां चुप बैठने वाले थे। उस पूरे वातावरण से प्रभावित पुरी माधव प्रमाणिक की आयु उस समय केवल 14 साल की थी। पर पुरी माधव और उनके दोस्त भी क्रांति की मशाल को लेकर सामने आ गए थे। उन सभी ने मिलकर अंग्रेजी हुकूमत की अवहेलना कर 26 सितंबर, 1942 को मेदिनीपुर जिले के अंग्रेजी सरकार के दफ्तरों पर हमले शुरू कर दिए। पूरे इलाके में टेलीग्राफ के तार काट दिए गए। सड़कों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया, बिजली के खंभों को उखाड़ कर तोड़ दिया गया। सरकारी संपत्तियों और प्रशासनिक कार्यालयों को आग के हवाले कर दिया गया। सैनिकों को नदी पार करने के लिए जो नाव रखी थी, उसे भी 28 सितंबर 1942 को क्रांतिकारियों ने पानी में डुबो दिया।

उसके बाद अगले दिन 29 सितंबर को भी ग्रामीणों की मदद से एक विशाल जुलूस मेदिनीपुर में निकाला गया। अंग्रेजी हुकूमत इस मौके की ताक में थी। तमलुक स्थित सरकारी दफ्तरों की ओर बढ़ते जुलूस को घेरकर अंग्रेजी फौज और पुलिसकर्मियों ने निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। पुरी माधव प्रमाणिक महज 14 साल के क्रांतिकारियों में सबसे आगे थे और पुलिस की गोलियों से छलनी हो गए। वहीं मातृभूमि पर लहूलुहान होकर उन्होंने जीवन समर्पित कर दिया।

क्रांतिकारियों ने बनाई थी स्वतंत्र ताम्रलिप्त सरकार

अंग्रेजी हुकूमत के इस रक्त कांड से क्रांति की ज्वाला ऐसी भड़की कि पूरे क्षेत्र के लोगों ने एकजुट होकर अंग्रेजों को मारना और सरकारी दफ्तरों में आग लगाना शुरू कर दिया। डरे-सहमे पुलिसकर्मी और अंग्रेज अधिकारी मेदिनीपुर छोड़कर भाग गए। तब क्रांतिकारियों ने यहां भारत की पहली ताम्रलिप्त सरकार का गठन किया। यहां तिरंगा लहराया गया और मेदिनीपुर को स्वतंत्र घोषित कर दिया गया। हालांकि बाद में अंग्रेजों ने बड़ी फौज लाकर मेदिनीपुर पर दोबारा कब्जा किया था।(एएमएपी)