दीदी ने क्या कहा
मुख्यमंत्री बनर्जी ने घोषणा की थी कि राज्य सरकार नूंह से लौटने वालों को बंगाल में अपना व्यवसाय स्थापित करने में मदद करने के लिए ‘उद्यमिता ऋण’ का विस्तार करेगी। बनर्जी ने कहा कि यह “हमारे मुस्लिम भाइयों और बहनों” के प्रति एक कल्याणकारी और मानवीय कदम है। वह सोमवार को कोलकाता में इमामों और मुअज्जिनों के एक सम्मेलन को संबोधित कर रही थीं। इससे पहले बनर्जी ने वहां हिंसा पर ग्राउंड रिपोर्ट तैयार करने के लिए तृणमूल के राज्यसभा सांसद समीरुल इस्लाम के नेतृत्व में एक टीम को नूंह भेजा था।
विपक्ष ने कहा- मुस्लिम तुष्टीकरण का सस्ता हथकंडा
विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने इसे अल्पसंख्यक मतदाताओं को रिझाने के लिए ‘सस्ता चुनावी हथकंडा’ करार दिया है। कोलकाता के नेताजी इनडोर स्टेडियम में इमामों के एक सम्मेलन में बनर्जी ने मुस्लिम इमामों और हिंदू पुरोहितों की खातिर मासिक भत्ते में पांच सौ रुपये की वृद्धि की घोषणा की।
राज्य का सियासी गणित
पश्चिम बंगाल में चुनावों में मुस्लिम अहम भूमिका निभाते हैं, जिनकी कुल आबादी करीब 27% है। 19 में से 3 जिले मुस्लिम बहुल आबादी वाले हैं। यह समुदाय पिछले कई वर्षों से तृणमूल कांग्रेस का समर्थन करता रहा है। इससे पहले, यह समुदाय दशकों तक वाम मोर्चा का वोट बैंक था लेकिन 2011 के चुनावों में यह बदल गया और समुदाय का अधिकांश वोट ममता बनर्जी की तरफ खिसक कर आ गया।
2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में भाजपा के आक्रामक हिंदुत्व के कारण मुस्लिम वोटों का एकीकरण ममता के पक्ष में हुआ था। अल्पसंख्यकों के सामने एकमात्र विकल्प, कम शक्तिशाली वाम-कांग्रेस गठबंधन के मुकाबले ममता ही थीं। इसलिए इस वर्ग ने बनर्जी को वोट देना चुना।(एएमएपी)



