प्रदीप सिंह ।
अभी एक देश एक चुनाव को लेकर जो चर्चा थी गहमागहमी थी, वह शांत भी नहीं हुई थी कि एक नया मुद्दा आ गया है। लगता है सरकार ऐसी तैयारी कर रही है कि देश का नाम इंडिया के बजाय भारत कर दिया जाए। वैसे आपको पता होगा कि संविधान के अनुच्छेद एक में जहां देश का नाम है, वहां लिखा है ‘इंडिया दैट इज भारत’। भारत देश का मूल नाम है और इंडिया या हिंदुस्तान विदेशियों के दिए हुए नाम हैं। इसलिए यदि भारत नाम होता है तो हम भारतीय कहलाते हैं। भारतवर्ष में रहने वाले कहलाते हैं। तो इससे अच्छी बात और कोई हो नहीं सकती है। लेकिन ये बात उठी कहां से?
भारत में जी20 का सम्मेलन हो रहा है। सम्मेलन के लिए राष्ट्रपति की ओर से भेजे गए निमंत्रण पत्र में प्रेसीडेंट आफ इंडिया के बजाय प्रेसीडेंट आफ भारत (भारत के राष्ट्रपति) लिखा है। इस पर कांग्रेस पार्टी ने एतराज किया है कि कैसे देश का नाम इंडिया की जगह भारत किया जा सकता है। इस देश के अधिकांश लोगों की लम्बे समय से यह मंशा है, बल्कि मांग रही है कि देश का नाम भारत किया जाए, जो कि उसका वास्तविक नाम है।
कोई आश्चर्य नहीं
इसके अलावा पाठकों को यह भी याद होगा कि कुछ समय पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा था कि जहां तक हो सके, हमको भारत नाम का ही इस्तेमाल करना चाहिए। जो समझना चाहते हैं, वे समझ जाएंगे। हमको समझाने की जरूरत नहीं है। इसलिए भारत का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा होना चाहिए। इंडिया का इस्तेमाल कम से कम होना चाहिए। तो इंडिया दैट इज भारत अब औपचारिक रूप से भारत बन सकता है। लेकिन इसके लिए सरकार को संविधान में संशोधन करना पड़ेगा। तो क्या पांच दिन का जो संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है, उसमें ये मुद्दा आ सकता है? इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। लेकिन आ जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।
विपक्ष की मुश्किल
सवाल ये है कि सरकार के पास राज्य सभा में संविधान संशोधन के लिए दो तिहाई बहुमत नहीं है। लेकिन लाख टके का एक सवाल यह भी है कि क्या कांग्रेस पार्टी या दूसरे विपक्षी दल इस मुद्दे पर सरकार का विरोध कर सकते हैं कि देश का नाम भारत न रखा जाए? क्यों एक अंग्रेजी नाम रखा जाए भारतवर्ष का? ये सवाल लोग जानना चाहेंगे। विपक्ष के लिए इस मुद्दे पर सरकार का विरोध करना बहुत ही कठिन है। और सरकार की जो तैयारी है, उससे लगता है कि सरकार ने मन बना लिया है। राष्ट्रपति के नाम से जो निमंत्रण जा रहा है, उसमें भारत के राष्ट्रपति लिखा जा रहा है प्रेसीडेंट आफ भारत लिखा जा रहा है। उससे लगता है कि सरकार के स्तर पर कोई बड़ा फैसला हो चुका है।
तो विपक्ष के लिए बड़ी मुश्किल का दौर है ये। एक के बाद एक भाजपा लगातार हमलावर होती जा रही है। एक के बाद एक छक्के मारती जा रही है और विपक्ष केवल डिफेंसिव गेम खेल पा रहा है। मोदी सरकार के वार का जवाब खोजने में उसे समय लग रहा है। अभी तक एक देश एक चुनाव पर कोई स्पष्ट बात विपक्ष के गठबंधन की ओर से नहीं आई है। छिट पुट विरोध जरूर हुआ है। यह विरोध इस नाम पर हो रहा है कि इससे बीजेपी को फायदा होगा। लेकिन सवाल ये है कि इससे आम लोगों को फायदा होगा या नहीं? किस पार्टी को फायदा होगा, किस पार्टी का नुकसान होगा, यह तात्कालिक बात है। आज बीजेपी नंबर एक पार्टी है, कल कोई और पार्टी हो सकती है। इसलिए यह मानना कि इस पार्टी को इस समय ये फायदा होगा, इसलिए यह न किया जाए- मुझे नहीं लगता कि यह बात लोगों के गले उतरेगी। बात मुझे यही समझ में आती है कि देशहित में क्या है, जनहित में क्या है।
देशहित और जनहित
क्या सरकार का कदम देशहित और जनहित में है। इन दो कसौटियों पर सरकार का फैसला कसा जाता है। अगर सरकार का फैसला इस कसौटी पर खड़ा उतरता है तो लोग उसका समर्थन करेंगे। अगर लोगों को लगता है कि इस कसौटी पर खरा नहीं उतरता है तो लोग उसका विरोध करेंगे। तो विपक्ष के लिए बहुत मुश्किल है। अगर समर्थन करे तो मुश्किल, विरोध करे तो मुश्किल। उनके लिए बड़ी दुविधा की स्थिति है सांप छछूंदर वाली। न इधर जा सकते हैं, न उधर जा सकते हैं। लेकिन एक तरफ तो खड़े होना पड़ेगा। या तो संसद में ये प्रस्ताव आएगा तो विरोध करना पड़ेगा या समर्थन करना पड़ेगा। समर्थन का मतलब है, भारतीय जनता पार्टी को और ताकत देना। विरोध का मतलब है, विपक्ष का और ज्यादा नुकसान। अब ये फैसला तो विपक्षी दलों को ही करना है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं।)