संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) आंकड़ों के मुताबिक, इंसानी गतिविधियों की वजह से ग्रीनहाउस गैसों का जितना उत्सर्जन होता है उसके 14.5 फीसदी हिस्से के लिए पशुपालन क्षेत्र जिम्मेदार है। इससे न सिर्फ कार्बन डाइऑक्साइड (सीओटू), बल्कि मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का भी उत्सर्जन होता है। ये दोनों गैसें भी ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में सीओटू की तरह ही भूमिका निभाती हैं।
यह शोध बता रहा है कि आज दुनिया भर में जो जैवविविधता हानि हो रही है, उसके 60 फीसदी हिस्से के लिए मांस उद्योग जिम्मेदार है। इतना ही नहीं जानवरों को पालते हुए उनके भोजन के लिए अलग से फसल उगाई जाती है जिससे मिट्टी की उत्पादकता प्रभावित होती है। इसके लिए पानी की बेतहाशा इस्तेमाल होता है। पशुपालन में दुनिया के 20 फीसदी साफ पानी की खपत होती है। कसाई खानों में भी पानी का अच्छा खासा नुकसान होता है, जबकि पौधों पर आधारित भोजन उत्पादन में पानी कम लगता है।
मांस उद्योग और उससे जुड़ा पशुपालन ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में खासा योगदान देता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड प्रमुख हैं। ये पशु जो भोजन खाते हैं, वे उसे एन्टरिक फरमनटेशन प्रक्रिया से पचाते हैं जिससे मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड छोड़ते हैं। ये दोनों कार्बन डाइऑक्साइड से कहीं खतरनाक ग्रीनहाउस गैस हैं। जबकि इस उद्योग की अन्य प्रक्रियाएं भी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में योगदान देती हैं। वहीं, इलिनॉयस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता अतुल जैन का कहना है, हमारी स्टडी बताती है कि कुल ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में से 33 फीसदी तक फूड प्रोडक्शन ही जिम्मेदार है। इसके लिए इंसान जिम्मेदार है। दुनियाभर में सबसे ज्यादा बीफ का इस्तेमाल किया जाता है और यही सबसे ज्यादा प्रदूषण करने वाला फूड है।
कुल निष्कर्ष रूप में मांस उद्योग और उसके लिए पशुपालन से जंगल नष्ट होते हैं, मिट्टी खराब होती है, पानी कम होता है और ग्रीन हाउस उत्सर्जन होता है जो मिलकर जलवायु परिवर्तन को प्रभावित करते हैं। आमतौर पर मांस के पक्ष में उच्च मात्रा के प्रोटीन होने की दलील दी जाती है। केवल मांस में से 100 ग्राम प्रोटनी करीब 50 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार होता है। जबकि उससे ज्यादा मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड पैदा करता है जो वायुमंडल के लिए ज्यादा खतरनाक है। पशुपालन उद्योग की वैश्विक ग्रीन हाउस उत्सर्जन में 16.5 फीसदी हिस्सेदारी है। जब कि यह वैश्विक भोजन उद्पादन को केवल 18 फीसदी कैलोरी देता है।
उल्लेखनीय है कि दुनिया भर में बढ़ता तापमान, महासागरों का बढ़ता जलस्तर, बदलते और तीखे होते मौसम के तेवर, अनियंत्रित बाढ़ और सूखे, जैसी कई समस्याएं हैं जिनके लिए ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन रोकने के उपायों पर जोर दिया जाता है।(एएमएपी)