प्रमोद जोशी।
सिक्स्थ सेंस के कई अर्थ होते हैं। एक अर्थ है व्यक्ति की मानसिक शक्ति है। किसी चीज़ की अनुभूति शारीरिक अंगों से न होकर मानसिक अनुभूति। पूर्वाभास, टेलीपैथी जैसे कई नाम इसे दिए जाते हैं। इसे अतीन्द्रिय अनुभूति भी कहते हैं। इसे यह नाम जर्मन मनोविज्ञानी रुडॉल्फ टिशनर ने दिया और ड्यूक विश्वविद्यालय के मनोविज्ञानी जेबी राइनर ने चलाया। बहुत लोगों की मान्यता है कि इस दृश्य जगत से परे भी एक लोक है। इस अनुभूति का सम्बन्ध उस लोक से जोड़ते हैं।
पूर्वाभास
इसे परा-मनोविज्ञान का नाम देकर इसका अध्ययन भी करते हैं। कुछ लोग ऐसी शक्तियाँ पास होने का दावा करते हैं। कुछ लोग भविष्य में होने वाली बातों को देख सकने की क्षमता का दावा करते हैं। कई बार सामान्य लोगों को भी अच्छी या बातों का पूर्वाभास हो जाता है। कुछ लोग जमीन पर कान लगाकर बता देते हैं कि नीचे पानी है या नहीं। है तो कितनी गहराई पर है।
पशु पक्षियों का व्यवहार
मनुष्यों के अलावा अन्य प्राणियों में ऐसी अनुभूति होती है या नहीं ऐसा तभी कहा जा सकता है जब कोई प्राणी ऐसा दावा करे। अलबत्ता पशु-पक्षियों, मछलियों, कीड़ों, चींटियों और कई बार वनस्पतियों के व्यवहार से लोग अनुमान लगाते हैं कि कुछ होने वाला है। बाढ़, आँधी-पानी, भूकम्प और सुनामी की पूर्व जानकारी पक्षियों के व्यवहार से लगती है। कुछ पक्षियों में दिशा ज्ञान जबर्दस्त होता है। वे मौसम बदलने पर एक जगह से दूसरी जगह की हजारों मील की यात्रा करते हैं।
मरीज के मरने का आभास
अमेरिका के एक अस्पताल में विचरण करने वाले बिल्ले के बारे में दावा किया गया कि उसे मरीज के मरने का आभास हो जाता है। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसन ने जुलाई 2007 के अंक में रोड आयलैंड के स्टीयर हाउस नर्सिंग एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर में विचरण करने वाले ऑस्कर नाम के इस बिल्ले के बारे में जानकारी दी गई कि यह बिल्ला जिस मरीज के बिस्तरे के नीचे जमा रहता है उसकी मौत हो जाती है। कम से कम 50 मरीजों के साथ ऐसा हुआ। इसी तरह भूकम्प के पहले चींटियों का निकलना, चूहों का भागना जैसी बातें हैं। इन बातों का तार्किक विवेचन यहाँ सम्भव नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख सोशल मीडिया से साभार)