समय के साथ लोगों के नजरिए में बहुत बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है। खर्च के मामले में जहां पहले घर-घर यह शिक्षा दी जाती थी कि एक रुपया कमाओ तो 25 पैसे की बचत, 25 पैसे अतिथि के लिए, 10 पैसे यानी कि कुछ वेतन का दशांश सेवा कार्यों और धर्म-कर्म के लिए तथा शेष 40 पैसे में अपने घर की नित्‍य जरूरतों को पूरा करने में खर्च करना चाहिए। लेकिन अब यह दृष्टि पूरी तरह से बदली हुई नजर आ रही है। ज्‍यादातर आज की युवा पीढ़ी ऋण लेकर घी पीने और बाद में इस ऋण को चुकाने के लिए ”कोल्‍हू के बैल” (एक कहावत) की तरह हाड़तोड़ मेहनत करती नजर आ रही है। फिर उसके लिए वह न दिन देखती है न रात, इंटरनेट की दुनिया में वह काम करती हुई नजर आती है।दरअसल, यह निष्‍कर्ष निकला है मनी मैनेजमेंट इंटरनेशनल की क्रेडिट काउंसलर डायना रेकशन के शोध से । उन्‍होंने बताया कि नई पीढ़ी के अधिकांश युवा ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज लेकर मनमाना खर्च कर रहे हैं। युवावस्था में ही उनके ऊपर इतना कर्ज हो गया है कि अधिकांश कमाई कर्ज चुकाने की किस्त और ब्याज में जा रही है। युवा पीढ़ी कर्ज को गुब्बारे की तरह फुला रहे हैं।

कर्ज के मकड़जाल में फंसे युवा

इतना ही नहीं इन युवाओं को यह नहीं पता कि क्रेडिट कार्ड में सालाना कितना ब्याज उन्हें देना पड़ रहा है। युवा अपने बजट को भी नहीं बनाते और मनमाना खर्च करते हैं। उन्‍होंने बताया कि अमेरिका जैसे देश में लाखों युवाओं के ऊपर औसतन 5.40 लाख रुपए का कर्ज क्रेडिट कार्ड का है। अमेरिकी छात्रों के ऊपर शिक्षा का ऋण और अन्य कर्ज भी बड़ी मात्रा में है। युवा पीढ़ी जिस तरीके से खर्च कर रही है। अपनी आय और खर्च के बीच में समन्वय नहीं बना पा रही है। जिसके कारण कर्ज के मकड़जाल में इस तरह फंस गई है, उससे निकलना नामुमकिन हो गया है।

कमाई का बड़ा हिस्सा जाता है किस्त और ब्याज में

कमाई का बड़ा हिस्सा किस्त और ब्याज चुकाने में चला जाता है। क्रेडिट स्कोर बहुत खराब हो गया है। ज्यादा ब्याज दर पर उन्हें कर्ज लेना पड़ रहा है। अमेरिका जैसे देश में युवाओं की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो चुकी है। उनके ऊपर लाखों रुपए का कर्ज है। जिसे चुका पाना उनके लिए इस जन्म में संभव नहीं है। जीवन भर उन्हें ब्याज और किस्त भरनी पड़ेगी। बचत की कल्पना वह कर ही नहीं सकते हैं। क्रेडिट कार्ड और बैंक पेमेंट में देरी होने पर ब्याज के ऊपर ब्याज, सर चार्ज और अन्य शुल्क बैंक और क्रेडिट कार्ड कंपनियां वसूल कर रहे हैं। जिसके कारण युवाओं की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। अमेरिका में अपराधों के बढ़ने के पीछे भी एक बड़ा कारण आर्थिक विषमता बताया जा रहा है।

इस मामले में बैंकिंग में प्रबंधकीय उच्‍चपद पर कार्यरत पंकज कुमार का कहना है कि यह सिर्फ समस्‍या अमेरिका तक सीमित नहीं है। बाजार की जो मांग है, उसका प्रभाव इतना अधिक है कि पूरे विश्‍व में हर देश का युवा इससे प्रभावित नजर आता है। भारत में भी जो आज की युवा पीढ़ी है या जो कहीं कर्मचारी हैं वे भी अपनी आय से अधिक खर्च करते हुए नजर आ रहे हैं, निश्‍चित तौर पर इसके लिए उन्‍हें बैंकों के पास आना होता है, पर्सनल लोन समेत कई प्रकार के त्रण लेकर वह अपना काम चलाते हुए प्राय: यहां आपको इसलिए वे बहुतायत में दिखाई भी देते हैं।

वे कहते हैं कि बाद में कई लोग जब समय पर रुपया नहीं चुका पाते हैं तो फिर वह कर गुजरते हैं, जो उन्‍हें सामाजिक नजरिए से बिल्‍कुल भी नहीं करना है। पंकज कुमार इस सब के लिए बाजार की ताकतों को जिम्‍मेदार मानते हैं और उनका कहना है कि ये ताकतें इतनी प्रभावी हैं कि आप कब विज्ञापनों के जरिए उनके प्रभाव में आ जाते हैं आपको पता ही नहीं चलने देतीं। आपके जीवन में भले ही जरूरत न हो, किंतु वे उस जरूरत को पैदा कर देती हैं और आप बाजार में उस सामग्री को खरीदने के लिए विवश नजर आते हैं।(एएमएपी)