फिलिस्तीन और इजराइल के बीच बढ़ते तनाव के को देखते हुए ब्रिटेन ने इस मुद्दे को 1947 में संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने रखा. संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस मुद्दे पर निर्णय लेते हुए फिलिस्तीन के क्षेत्र को दो भागों में विभाजित कर दिया. इसमें से एक हिस्सा अरबों (फिलिस्तीनियों) को और दूसरा हिस्सा यहूदियों को दे दिया गया.

संयुक्त राष्ट्र संघ के इस निर्णय को यहूदियों ने स्वीकार कर लिया और 1948 में इजरायल को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया. लेकिन, अरबों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के इस निर्णय को मानने से इनकार कर दिया और इजरायल के खिलाफ जंग का एलान कर दिया.

बता दें, इसी समय साल 1947 में संयुक्त राष्ट्र संघ में फिलिस्तीन क्षेत्र से संबंधित मुद्दे पर भारत ने इजरायल के खिलाफ और अरबों के पक्ष में वोट डाला था.

इजरायल और अरबों देशों के बीच संघर्ष

यहूदी राष्ट्र घोषित होने के बाद ब्रिटेन ने 1948 में फिलिस्तीन से अपनी सेनाएं हटा ली. इसी वक्त चार अरब देशों (मिस्र, इराक, सीरिया और जॉर्डन) ने मिलकर इजरायल पर हमला कर दिया. कड़े संघर्ष के बाद इस युद्ध में इजरायल को विजय प्राप्त हुई और अकेले ही चारों देशों की संयुक्त सेनाओं को मात दी. इस पहले युद्ध के परिणाम स्वरूप यरुशलम का पश्चिमी हिस्सा इजरायल की राजधानी बना था और यरुशलम का पूर्वी हिस्सा जॉर्डन के कब्जे में गया था.

माना जाता है कि इस युद्ध के बाद ही इजरायल ने विस्तारवादी नीति अपनाई थी और उसने यरुशलम के पूर्वी हिस्से की तरफ विस्तार करने की नीति पर बल दिया था.

जब इजरायल को मान्यता देने वाला पहला अरब देश बना मिस्र

साल 1967 में एक बार फिर से अरब देशों (सीरिया, जॉर्डन और मिस्र) की संयुक्त सेना ने मिलकर इजरायल पर हमला बोल दिया. इजरायल ने 6 दिनों में ही इन तीन देशों की संयुक्त सेनाओं को पराजित कर दिया. इसके साथ ही इजरायल ने जॉर्डन से ‘वेस्ट बैंक’ और ‘पूर्वी यरुशलम’, सीरिया से ‘गोलन हाइट्स’ और मिस्र से ‘गाजा पट्टी’ और ‘सिनाई प्रायद्वीप’ को अपने कब्जे में ले लिया.

हालांकि, 1979 में इजरायल और मिस्र के बीच एक संधि हुई. इस संधि के तहत इजरायल ने 1982 में मिस्र को सिनाई प्रायद्वीप वापस कर दिया और इसके बदले मिस्र ने इजरायल को एक देश के रूप में आधिकारिक तौर पर मान्यता दे दी. उस समय इजरायल को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान करने वाला ‘मिस्र’ पहला अरब देश बना था.

इसके बाद 1980 में इजरायल की संसद में एक कानून पारित किया गया, जिसके तहत उसने संपूर्ण यरुशलम को इजरायल की राजधानी घोषित कर दिया गया.

जब हमास और इजरायल हुए आमने-सामने

साल 2021 में इजरायली सशस्त्र बलों की ओर से यरुशलम में एक मार्च निकाला जाना था. ये मार्च जायोनी राष्ट्रवादियों की ओर से 1967 में पूर्वी यरुशलम पर इजरायल के कब्जे की याद में निकाला जाना था. लेकिन, इससे पहले ही इजरायल के सैनिकों ने पूर्वी यरुशलम के ‘हराम अल शरीफ’ नामक जगह पर स्थित ‘अल अक्सा मस्जिद’ पर हमला कर दिया.

इसके विरोध में हमास ने गाजा पट्टी से इजरायल पर अनेक रॉकेट दागे. इसके जवाब में इजरायल ने भी गाजा पट्टी पर अनेक रॉकेटों से हमला किया. इस दौरान हमास की ओर से किए जाने वाले रॉकेट के हमलों से अपनी सुरक्षा करने के लिए इजरायल ने ‘आयरन डोम’ नामक ‘प्रक्षेपास्त्र रक्षा प्रणाली’ का उपयोग किया था. इससे प्रयोग से इजरायल को हमास के हवाई हमलों से कोई नुकसान नहीं हुआ था.

क्या है इजरायल-फलस्तीन विवाद, आखिर हमास क्यों दागता रहता है रॉकेट?

अल अक्सा मस्जिद मुसलमानों के लिए मक्का और मदीना के बाद विश्व में तीसरा सबसे पवित्र स्थान माना जाता है. साल 2016 में यूनेस्को ने अल अक्सा मस्जिद पर से यहूदियों का दावा पूरी तरह से खारिज कर दिया था और यह कहा था कि अल अक्सा मस्जिद पर यहूदियों के किसी भी धार्मिक तत्व के प्रमाण नहीं मिले हैं, इसीलिए इस मस्जिद पर यहूदियों का कोई अधिकार नहीं है.

यरुशलम क्यों महत्वपूर्ण?

दरअसल, यरुशलम एक ऐसा पवित्र स्थान है, जो ईसाई, यहूदी और इस्लाम, तीनों ही धर्मों के लिए बहुत अधिक धार्मिक महत्व रखता है.

इजराइल: ‘हिब्रू बाइबल’ यहूदी धर्म की एक पवित्र धार्मिक पुस्तक है. यहूदी धर्म की इस पवित्र धार्मिक पुस्तक में इस बात का उल्लेख किया गया है कि प्राचीन काल में राजा डेविड ने अपने इजराइल साम्राज्य की राजधानी पूर्वी यरुशलम को बनाया था. इसके अलावा, यहूदियों के लिए एक पवित्र धार्मिक संरचना ‘पश्चिमी दीवार’ भी यरुशलम में ही स्थित है. यरुशलम में स्थित इस पश्चिमी दीवार का यहूदियों के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व है.

यरुशलेम

इस्लाम: यरुशलम में स्थित अल अक्सा मस्जिद मुस्लिमों के मक्का और मदीना के बाद तीसरा सबसे पवित्र स्थल है. इस कारण मुसलमानों की धार्मिक भावना यरूशलम के साथ गहराई से जुड़ी हुई है. यरुशलम में ही इस्लाम धर्म से संबंधित दो अन्य प्रमुख स्थल भी है. इन स्थलों में ‘डोम ऑफ द रॉक’ तथा ‘डोम ऑफ द चैन’ शामिल हैं. यरुशलम में ही ‘टेंपल माउंट’ नामक स्थान है. इस टेंपल माउंट को ‘हराम अल शरीफ’ नामक अन्य नाम से भी जाना जाता है. यह स्थल यहूदी धर्म और इस्लाम धर्म, दोनों के दृष्टिकोण से पवित्र माना जाता है.

ईसाई: यरुशलम में एक पवित्र चर्च स्थित है. इसके अलावा, ईसाइयों की मान्यता के अनुसार ईसा मसीह को यरुशलम में ही सूली पर चढ़ाया गया था और इसी यरुशलम में इनके धार्मिक महत्व से संबंधित एक कब्र स्थल भी स्थित है.

अल अक्सा मस्जिद

इन तमाम पहलुओं के आधार पर यह स्पष्ट है कि यरुशलम इस्लाम, यहूदी और ईसाई, तीनों ही धर्मों के लिए कितना धार्मिक महत्व रखता है. जहां तक बात रही भारत की तो जानकारों का यही मानना है कि भारत हमेशा से दोनों ही देशों की स्वतंत्रा की वकालत करता रहा है. भारत UN में भी फिलिस्तीन की स्वायत्ता की मांग करता रहा है. ऐसा नहीं है कि इजरायल के समर्थन के बाद भारत फिलिस्तीन की स्वायत्ता पर चुप हो जाएगा. ऐसे जब भी मौके आएंगे तब हर मौकों पर भारत फिलिस्तीन के साथ खड़ा नजर आएगा.(एएमएपी)