अभी तक अरब जगत को प्रसन्न करने और वोट बैंक की राजनीति के कारण भारतीय नेतृत्व इजरायल-फलस्तीन मुद्दे पर न्याय की बात नहीं कर सका था तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वर्तमान भारतीय नेतृत्व सही के पक्ष में न खड़ा हो। भारत तो वह भूमि है जहाँ ढाई हजार वर्ष पूर्व भी यहूदियों को शरण प्राप्त हुआ था और उसके बाद भी अपनी भूमि से मारे गए, सताए गए यहूदि भारत में आकर शरण लेते रहे।

क्या कोई यह बता सकता है कि यहूदी कहाँ उत्पन्न हुए? यहूदी न मक्का में उत्पन्न हुए न मदीना में, न रोम में उत्पन्न हुए न अमेरिका में, न भारत में उत्पन्न हुए न  यूरोप में। इजरायल यहूदियों की मूल भूमि है।  यहूदी अच्छे हों या बुरे हों, चालाक हों या मक्कार हों, लेकिन जब न्याय की बात आएगी तो यहूदी समाज उन लोगों में है जो मजहबी बर्बरता के सर्वाधिक शिकार हुआ।

यह अलग बात है कि जिन अब्राहमिक मजहबों ने यहूदियों पर सर्वाधिक बर्बरता किया उनके जन्म और विचार के पीछे भी यहूदी मत ही है। यहूदियों का स्थूल एकेश्वरवाद जब अपने अतिरेक पर पहुंचा तब वह यहूदियों के लिए ही सबसे अधिक घातक सिद्ध हुआ। रोम और अरब दोनों तरफ से वह बर्बरता का शिकार हुआ। ढाई हजार वर्षों से मार-मार कर उसे अपनी ही भूमि से बेगाना बना दिया गया और आज यह कहा जा रहा है कि उसकी तो कोई भूमि थी ही नहीं। उसी से उत्पन्न उसके दोनों सहोदर मजहबों ने उसे जितना प्रताड़ित किया उतना किसी ने नहीं किया।

अब्राहमिक मत-पंथ दुनिया में वैचारिक हठधर्मिता के पर्याय बन गए हैं। वे बच्चा पैदा करने को तो ईश्वर की देन मानते हैं, लेकिन विचारों का पैदा होना ईश्वर की देन नहीं मानते। एक सभ्य समाज में हर व्यक्ति को विचार करने की पूरी छूट होनी चाहिए जब तक उसके विचार दूसरों के लिए घातक न हों। किसी भी विषय पर चाहे वह ईश्वर का स्वरूप ही हो हर व्यक्ति विचार कर सकता है, लेकिन उसको दूसरों के ऊपर थोप नहीं सकता।

ऐसा चिन्तन केवल और केवल भारत की भूमि में ही विकसित हो सका इसलिए भारत किसी के विचार का तब तक सम्मान करता है जब तक वह विचार दूसरों के लिए घातक न सिद्ध हो। भारत न गला काटने में विश्वास करता है न गला काटने वालों के साथ खड़ा हो सकता है। भूत काल में यदि किसी भी नेतृत्व ने ऐसा किया तो वह भारतीय चेतना के प्रतिकूल और गलत था।

चरमपंथियों ने इसराइल के भीतर घुसकर हमला किया

इस हमले में अब तक 700 लोगों की मौत हो चुकी है और कहा जा रहा है कि उन्होंने इसराइल के क़रीब 100 सैनिकों को बंधक बनाया है. इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इसे अपने मुल्क के ख़िलाफ़ युद्ध बताया है. इसराइल जवाब में गज़ा पर लगातार हमले कर रहा है और इस हमले में सैकड़ों फ़लस्तीनियों की भी मौत हुई है. इसराइल और फ़लस्तीनियों के इस टकराव पर पूरी दुनिया बँटी हुई दिख रही है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि इसराइल पर आतंकवादी हमला हुआ है और इस मुश्किल घड़ी में भारत इसराइल के साथ खड़ा है।

लेकिन भारत के भीतर भी लोगों की राय कमोबेश धार्मिक आधार पर बँटी हुई दिख रही है.बीजेपी खुलकर इसराइल का समर्थन कर रही है जबकि बाक़ी पार्टियाँ फ़लस्तीनियों के अधिकारों की भी बात कर रही हैं.बीजेपी ने इसराइल पर हमास के हमले के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा,”कल,इसराइल को एक कायराना आतंकी हमले का सामना करना पड़ा।

भारतीय राजनीति गरमाई

वैसा ही जैसा 26/11/2008 को मुंबई को निशाना बनाया गया था. इसराइल ने युद्ध का एलान कर दिया है और उसकी सेना ने जवाबी हमला किया है। इसने आगे लिखा,”कमज़ोर कांग्रेस के नेतृत्व में भारत ने क्या किया? कुछ भी नहीं. इसने डोजियर भेजे. दरअसल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने हिंदू संगठनों पर दोष मढ़ने की कोशिश की थी और पाकिस्तान को बेकसूर करार दिया था. न कभी माफ करें और न कभी भूलें.”

दूसरी ओर कांग्रेस ने एक्स पर लिखा,”भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इसराइल के निर्दोष नागरिकों पर हुए हमलों की कड़ी शब्दों में निंदा करती है. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सदैव मानना रहा है कि आत्म सम्मान, समानता और गरिमा के जीवन के लिए फ़लस्तीनी लोगों की वैध आकांक्षाओं को इसराइल के वैध राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को सुनिश्चित करते हुए केवल बातचीत की प्रक्रिया के माध्यम से पूरा किया जाना चाहिए. किसी भी प्रकार की हिंसा कभी भी कोई समाधान नहीं दे सकती है और इसे रोकना चाहिए.”

अटल बिहारी वाजपेयी का 46 साल पुराना एक वीडियो

बीजेपी के हालिया रुख़ के जवाब में सोशल मीडिया पर लोग अटल बिहारी वाजपेयी का 46 साल पुराना एक वीडियो क्लिप शेयर कर रहे हैं.वायरल वीडियो 1977 में जनता पार्टी की विजय रैली का है, जिसमें वाजपेयी फ़लस्तीनियों का खुलकर समर्थन कर रहे हैं. वाजपेयी कह रहे हैं, “अरबों की जिस ज़मीन पर इसराइल कब्ज़ा करके बैठा है, वो ज़मीन उसको ख़ाली करनी होगी.”

मोरारजी भाई की स्थिति स्पष्ट

अटल बिहारी वाजपेयी इस वीडियो में कहते दिख रहे हैं, “ये कहा जा रहा है कि जनता पार्टी की सरकार बन गई. वो अरबों का साथ नहीं देगी, इसराइल का साथ देगी. आदरणीय मोरारजी भाई स्थिति को स्पष्ट कर चुके हैं. ग़लतफ़हमी को दूर करने के लिए मैं कहना चाहता हूँ कि हम हरेक प्रश्न को गुण और अवगुण के आधार पर देखेंगे. लेकिन मध्य-पूर्व के बारे में यह स्थिति साफ़ है कि अरबों की जिस ज़मीन पर इसराइल कब्ज़ा करके बैठा है, वो ज़मीन उसको ख़ाली करनी होगी.”

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने पूरे मामले पर ट्वीट कर कहा, ”फ़लस्तीन के कब्ज़े वाले इलाक़े में शांति स्थापित होने की दुआ करता हूँ.”

विपक्ष नेताओं के बयान और रुख

महाराष्ट्र से एआईएमआईएम के विधायक और प्रवक्ता वारिस पठान ने भी अटल बिहारी वाजपेयी का वीडियो शेयर किया है. पठान ने कुछ फ़लस्तीनियों की तस्वीर लगाकर पूछा है कि क्या ये आतंकवादी थे कि इन्हें मार दिया गया.ख़ुद को सनातनी कहने वाले चंदन कुमार शर्मा ने ट्विटर पर लिखा है, ”मैं चंदन शर्मा इसराइल जाने के लिए तैयार हूँ. अगर भारत सरकार आदेश दे तो भारत का एक-एक राष्ट्रवादी हिंदू इसराइल जाकर समर्थन करेगा और समर्थन में युद्ध लड़ेगा. हिंदुओं आप तैयार हैं? इसराइल के साथ 100 करोड़ हिंदू हैं. भारत इसराइल ज़िंदाबाद.”

वहीं पत्रकार राणा अय्यूब ने ट्विटर पर लिखा, ”गज़ा में नागरिकों के साथ होने वाली मारपीट पर भारत में ट्विटर पर जताई जा रही ख़ुशी, गिरने की इंतिहा है. ये भावना उस नफ़रत के समांतर चल रही है, जिसका लोगों ने अपने ऊपर से मंज़ूरी लेकर हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं.”

लेकिन इसके बाद उनकी काफ़ी ट्रोलिंग हुई.

भारत में इसराइल के राजदूत नाओर गिलोन ने कहा है कि भारत के भीतर से इसराइल को ज़ोरदार समर्थन मिल रहा है और इसे लेकर वे शुक्रगुज़ार हैं.जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पश्चिम एशिया अध्ययन केंद्र के प्रोफ़ेसर अश्विनी कुमार महापात्रा से पूछा कि क्या भारत में इसराइल और हमास की जंग पर प्रतिक्रिया धार्मिक आधार पर बँटी हुई है?

महापात्रा कहते हैं, ”हमास ने जिस तरह इसराइल पर हमला किया है, उसे इस्लाम की लड़ाई की तरह पेश करने की कोशिश की है. हमास ने अल-अक़्सा मस्जिद का हवाला दिया है और लोगों को मारते हुए उसके आतंकवादी अल्लाहू अकबर का नारा लगा रहे हैं. हमास की पूरी कोशिश है कि दुनिया भर के मुसलमान उसकी लड़ाई को अपनी लड़ाई मानें. ऐसे में लोगों का धर्म के आधार पर लामबंद होना बहुत चौंकाता नहीं है.”

महापात्रा कहते हैं, ”हमास आतंकवादी संगठन है और पीएम मोदी ने वही कहा है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि फ़लस्तीन पर भारत की नीति बदल गई है.”

इजरायल-भारत के बीच रिस्‍ते कितन पुराने

इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू 2018 के अपने भारत दौरे में 17 फ़रवरी को अहमदाबाद में एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.संबोधन का समापन उन्होंने ‘जय हिंद, जय भारत और जय इसराइल’ से किया.हॉल तालियों से गूँज उठा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ख़ुश होकर ताली बजाते रहे.बीजेपी ने इसका वीडियो क्लिप अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर पोस्ट किया और लिखा कि पीएम नेतन्याहू ने जय हिंद, जय भारत और जय इसराइल का नारा लगाया.इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की लिकुड पार्टी 1973 में बनी और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी 1980 में. दोनों दक्षिणपंथी पार्टी हैं. दोनों ख़ुद को राष्ट्रवादी पार्टी कहती हैं.

पीएम नेतन्याहू ने पीएम मोदी से कि फोन पर बात, मोदी बोले- हमेशा आपके साथ खड़े है

लिकुड पार्टी ग्रेटर इसराइल की बात करती है और भारतीय जनता पार्टी के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के भीतर से भी अखंड भारत की आवाज़ उठती रहती है.लेकिन क्या इस आधार पर भारत और इसराइल में वैचारिक समानता खोजना ठीक है? दोनों देशों के निर्माण बिल्कुल अलग हालात में हुए हैं.यहूदियों के लिए एक मुल्क और सुरक्षित ठिकाने के रूप में इसराइल का जन्म हुआ, लेकिन इसका संबंध केवल दुनिया भर में सताए गए यहूदियों से नहीं है.इसराइल की पहचान के भीतर राष्ट्रीय और धार्मिक अवधारणा निहित है.ऐसे तो इसराइल लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मुल्क है, लेकिन इसराइल को यहूदियों से ही जोड़कर देखा जाता है. इस स्थिति में आरोप लगता है कि इसराइल में अरबी अल्पसंख्यक दोयम दर्जे के नागरिक हो जाते हैं।

धार्मिक कट्टरता हावी

दूसरी तरफ़ भारत आज़ादी के बाद धार्मिक, भाषाई और जातीय विविधता आधारित लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना. भारत की राजनीति में 1980 के दशक में वोट बैंक की राजनीति के कारण सांप्रदायिकता में तेज़ी आई. भारतीय जनता पार्टी का उभार भी इस राजनीति से सीधा जुड़ा है.लेकिन भारत अब भी इतना नहीं बदला है कि उसकी तुलना इसराइल या पाकिस्तान से की जा सके.पाकिस्तान मुसलमानों के लिए बना, यह एक तथ्य है. इसराइल यहूदियों का है, इसमें भी कोई झूठ नहीं है.लेकिन भारत हिंदुओं का है, यह किसी पार्टी का एजेंडा हो सकता है, लेकिन भारत जिस विचारधारा से बना है, उसकी जड़ में ये बात नहीं है.तो फिर बीजेपी नेता या भारत की बहुसंख्यक हिंदू आबादी इसराइल के पक्ष में क्यों खड़े दिखते हैं?

जब-जब इसराइल और हमास के बीच हिंसक संघर्ष हुआ, अधिकतर भारतीयों का समर्थन और विरोध धार्मिक लाइन पर बँटा दिखा.बीजेपी नेता सोशल मीडिया पर खुलकर इसराइल के पक्ष में बोलते दिखे. ऐसा प्रतीत होता है कि सोशल मीडिया पर इसराइल का समर्थन करने वाले ज़्यादातर लोग हिंदू थे. वहीं बड़ी संख्या में मुसलमानों का समर्थन फ़लस्तीनियों के साथ रहा. बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने 2021 में 10 मई को इसराइल के समर्थन में एक ट्वीट किया, ”इसराइल के भाइयों और बहनों को पूरा समर्थन है. दुनिया आपके साहस और दमखम को देख रही है. आप राह दिखा रहे हैं. सभी सकारात्मक और ईश्वरीय ताक़तें इसराइल के साथ हों. हम इसराइल के साथ खड़े हैं- आज और हमेशा.”

दूसरी तरफ़ 2021 में 21 मई को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रवक्ता सैयद आसिम वक़ार ने फ़लस्तीनियों के समर्थन में अपने ट्वीट में लिखा, ”अल्हम्दो लिल्लाह फ़लस्तीन की जीत हम सबको मुबारक. जो आतंकवादी थे, वो सब के सब इसराइल के साथ थे. जो इंसानियत के पैरोकार थे, वो फ़लस्तीनियों के साथ थे. इंसानियत ज़िंदाबाद, इसराइल के हामी मुर्दाबाद, आतंकवादी मुर्दाबाद.”

आसिम वक़ार ने 2021 में इसराइल और हमास के बीच हुए युद्धविराम को फ़लस्तीनियों की जीत कहा था.लेकिन क्या आम लोगों के बीच भी इसराइल और फ़लस्तीनियों को लेकर इसी तरह हिंदू बनाम मुसलमान दिखा? वारिस पठान से फ़लस्तीनियों के समर्थन पर पूछा था, तो उस समय उन्होंने कहा था, ”मुसलमान तो फ़लस्तीनियों के साथ ही रहेगा. वहाँ हमारा पहला क़िबला है और मक्का-मदीना के बाद हमारे लिए सबसे पवित्र स्थल है. भला कोई मुसलमान इसराइल का समर्थन क्यों करेगा?”(एएमएपी)