मणिपुर सरकार ने राज्य के लोगों से विस्थापित लोगों की जमीन न हड़पने की अपील की है। साथ ही अधिकारियों को ऐसा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया है। राज्य के कमिश्नर (गृह) टी रनजोत सिंह ने को इसे लेकर एक आदेश जारी किया है। इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट के 25 सितंबर के आदेश का जिक्र है।
दरअसल, 25 सितंबर को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य की धार्मिक इमारतों को अतिक्रमण और नुकसान या नष्ट होने से बचाया जाना चाहिए। मणिपुर सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि विस्थापित लोगों की प्रॉपर्टी और हिंसा में क्षतिग्रस्त होने वाली प्रॉपर्टी की सुरक्षा की जाएगी और अतिक्रमण रोका जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि सरकार ऐसे लोगों को दूसरों की प्रॉपर्टी पर कब्जा छोडऩे का आदेश दे। अगर इसके बाद भी लोग अवैध कब्जा नहीं छोड़ते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना के आरोप में उन पर कार्रवाई हो सकती है।
मणिपुर में 50 हजार लोग विस्थापित हुए
मणिपुर में 3 मई से मैतेई और कुकी लोगों के बीच जारी हिंसा में अब तक 178 लोगों की जान गई है, जबकि 50 हजार से ज्यादा लोग अपना घर छोडक़र रिलीफ कैंपों में रह रहे हैं। इंफाल वैली में मैतेई बहुल है, ऐसे में यहां रहने वाले कुकी लोग आसपास के पहाड़ी इलाकों में बने कैंप में रह रहे हैं, जहां उनके समुदाय के लोग बहुसंख्यक हैं। जबकि, पहाड़ी इलाकों के मैतेई लोग अपना घर छोडक़र इंफाल वैली में बनाए गए कैंपों में रह रहे हैं। ऐसे में उनकी जमीनों को अराधियों ने हड़पना चालू कर दिया है। जिस पर ये सरकार का सख्त निर्देश आया है। यदि इसके बाद भी बदमाशों द्वारा जमीन हड़पने की शिकायते आती हैं तो फिर सरकार संबंधित लोगों के खिलाफ सख्त एक्शन लेगी।
विस्थापित लोगों की संपत्ति न हड़पने का आदेश
आदेश में कहा गया कि इससे राज्य में कानून व्यवस्था खराब हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए मणिपुर सरकार ने विस्थापित लोगों की संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित और उनके अतिक्रमण को रोकने का निर्देश दिया है। गृह विभाग ने कहा यदि ऐसा होता है तो उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
बता दें कि राज्य सरकार का आदेश उन रिपोर्ट्स के बीच आया है, जिसमें कहा गया कि विस्थापित स्थानीय लोगों की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। कई लोगों की संपत्तियों को तबाह किया गया है। आदेश में साफ तौर पर कहा गया कि राज्य सरकार इस संवेदनशील मुद्दे पर गंभीर विचार कर रही है।
अगर कोई ऐसा करता है, तो इससे राज्य में कानून व्यवस्था खराब हो सकती है। साथ ही आदेश के जरिए उपायुक्तों और पुलिस अधीक्षकों को कार्रवाई करने और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने की सलाह दी गई है।
मोरेह शहर में कर्फ्यू में ढील रद्द
इस बीच, मणिपुर में तेंगनौपाल जिला प्राधिकारियों ने भारत-म्यांमार सीमा पर स्थित मोरेह शहर में दैनिक कर्फ्यू में ढील रद्द कर दी है। तेंगनौपाल के जिला मजिस्ट्रेट कृष्ण कुमार ने सोमवार को इसे लेकर बयान जारी किया। इसमें कहा गया कि कर्फ्यू में आम लोगों को दवाओं और खाद्य सामग्री समेत आवश्यक सामान खरीदने के लिए सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक ढील दी गई थी, जिसे अगले आदेश तक तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया गया है। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि लोगों के एकत्रित होने की आशंका है। इसमें कहा गया कि जिले के बाकी हिस्सों में सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक कर्फ्यू में ढील दी जाएगी। यह आदेश कानून प्रवर्तन एजेंसियों पर लागू नहीं होगा।
जातीय हिंसा में 180 से अधिक लोगों की मौत
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सोमवार को भीड़ का एक बड़ा समूह कुकी बहुल शहर में इकट्ठा हुआ। इस समूह ने बाजार के एक हिस्से को साफ करना शुरू कर दिया था जिसका पहले मेइती समुदाय इस्तेमाल करता था ताकि उसका उपयोग किया जा सके। इसके बाद सुरक्षा बलों ने हस्तक्षेप किया जिससे तनाव पैदा हो गया था। मालूम हो कि मणिपुर में 3 मई से फैली हिंसा में 180 से अधिक लोगों की जान चली गई। अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मेइती समुदाय की मांग के खिलाफ पर्वतीय जिलों में तीन मई को ‘ट्राइबल सोलिडरिटी मार्च’ निकाले जाने के बाद हिंसा भड़की थी। राज्य सरकार की ओर से तमाम कोशिशों के बावजूद हालात अभी तक सामान्य नहीं हो पाए हैं। (एएमएपी)