प्रदीप सिंह।
राजनीतिक हलकों में इस बात पर चर्चा रुकने का नाम नहीं ले रही कि आखिर तमिल फिल्मों के सुपर स्टार रजनीकांत ने राजनीतिक दल बनाने और राजनीति में आने का अंतिम फैसला किसके कहने पर लिया। इस मुद्दे पर चर्चा का कारण यह है कि कुछ ही समय पहले रजनीकांत ने कहा था कि उनका स्वास्थ्य और कोरोना के कारण देश और प्रदेश में जो स्थिति है उसे देखते हुए उनके लिए राजनीति में आना संभव नहीं होगा। फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने अपना फैसला बदल दिया।
शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर खालीपन
तमिलनाडु की राजनीति इस समय संक्रमण काल से गुजर रही है। दोनों द्रविड़ पार्टियों में करुणानिधि और जयललिता के निधन से शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर खालीपन है। दोनों दलों में ऐसा कोई नेता नहीं है जो उनकी जगह ले सके। अन्नाद्रमुक सामूहिक नेतृत्व के सहारे चल रही है तो द्रमुक का नेतृत्व करुणानिधि के बेटे स्टालिन के हाथ में है। दोनों पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व की वोट दिलाने की क्षमता का अभी इम्तहान होना है। ऐसे में इस बात की भी आशंका है कि कहीं तमिलनाडु में द्रविड़ राजनीति के अवसान का समय तो नहीं आ गया है।
— Rajinikanth (@rajinikanth) December 12, 2020
अचानक की चुनाव में उतरने की घोषणा
रजनीकांत काफी लम्बे समय से इस उहापोह में थे कि वे राजनीति में आएं या न आएं। साल 2017 में उन्होंने राजनीति में आने की घोषणा कर दी थी। उसके बाद से वे शांत हो गए। फिर कोरोना के दौरान उन्होंने कहा कि वे पूरे प्रदेश का दौरा करना चाहते हैं और लोगों से मिलना चाहते हैं। पर उनका स्वास्थ्य ऐसा है कि डाक्टर इसकी इजाजत नहीं दे रहे। याद रहे रजनीकांत का किडनी ट्रांसप्लांट हो चुका है। उनके फैसलों में उनकी बेटी का काफी दखल रहता है। वह भी इसके पक्ष में नहीं थीं कि रजनीकांत इस समय बाहर निकलें। पर अचानक रजनीकांत ने घोषणा कर दी कि वे जनवरी में अपनी पार्टी की विधिवत घोषणा करेंगे और विधानसभा चुनाव लड़ेंगे।
अन्ना द्रमुक, द्रमुक विरोधी वोटों पर नज़र
ऐसा क्या हुआ कि रजनीकांत ने अचानक अपना फैसला बदल दिया। तमिलनाडु की राजनीति के जानकार उनके इस फैसले को एक घटना से जोड़कर देख रहे हैं। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की प्रदेश इकाई के बौद्धिक प्रकोष्ठ के मुखिया अर्जुन मूर्ति ने अचानक संघ से इस्तीफा दे दिया। उसके फौरन बाद ही उनके रजनीकांत से जुड़ने की खबर आई। संघ में इतने बड़े पद पर बैठे लोग आमतौर पर इस तरह से काम नहीं करते। इसके साथ ही मशहूर तमिल पत्रिका तुगलक के सम्पादक और संघ से लम्बे समय से जुड़े गुरुमूर्ति रजनीकांत के पक्ष में अभियान चलाने लगे। गुरुमूर्ति का कहना है कि रजनीकांत की पार्टी के लिए विधानसभा चुनाव में जीतने की अच्छी संभावना है। उनके चुनावी गणित के मुताबिक राज्य में बीस फीसदी वोट द्रमुक विरोधी हैं और इतने ही अन्ना द्रमुक विरोधी। दोनों द्रविड़ पार्टियों का अपना कोर वोट बीस बाइस फीसदी ही है। इसमें एक दूसरे का विरोधी वोट मिलकर उन्हें सत्ता में बिठाता है। रजनीकांत को इन दोनों पार्टियों के विरोधी मत मिलेंगे। यानी जो मतदाता अन्ना द्रमुक और द्रमुक का विरोधी है वह स्वाभाविक रूप से रजनीकांत की पार्टी को वोट देगा।
भाजपा की चुप्पी
अर्जुन मूर्ति का इस तरह अचानक संघ छोड़कर रजनीकांत के साथ जाना और गुरुमूर्ति की रजनीकांत के पक्ष में अति सक्रियता कई सवाल खड़े कर रही है। माना जा रहा है कि अर्जुन मूर्ति इस समय रजनीकांत के प्रमुख राजनीतिक सलाहकार और रणनीतिकार की भूमिका में हैं। एक सवाल तो यही हैं कि क्या ये दोनों घटनाक्रम सामान्य बातें हैं। या फिर इसके पीछे संघ की कोई योजना है। लोग अंदाजा लगा रहे हैं कि रजनीकांत के अचानक फैसले के पीछे पूरी तरह नहीं तो किसी न किसी रूप में संघ का हाथ है। भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक इन दोनों घटनाओं पर चुप्पी साध रखी है।