आपका अखबार ब्यूरो।
बिहार में एक बार ऐसा लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी और नीतीश कुमार के बीच तनाव की स्थिति है। राज्य में सरकार बने एक महीने से ज्यादा का समय हो गया है लेकिन अभी तक मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हुआ है। नीतीश कुमार अभी तक इस बात को स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि उनकी पार्टी गठबंधन में दूसरे नम्बर की पार्टी हो गई है। उन्हें लालू के साथ गठबंधन में नम्बर दो होना मंजूर है लेकिन भाजपा के साथ नहीं।
तनाव का कारण
नीतीश कुमार और उनके साथियों को अभी तक लगता है कि भाजपा चाहती तो चिराग पासवान को बगावत से रोक सकती थी। यदि ऐसा हुआ होता तो जनता दल यूनाइटेड कम से कम तीस सीटें और जीतता और गठबंधन का बड़ा दल होता। भाजपा खेमे का कहना है कि यह आरोप पूरी तरह गलत है। चिराग की मांग बहुत ज्यादा थी। उसे मानने के मतलब था कि भाजपा सत्तर से ज्यादा सीटों पर नहीं लड़ पाती। इसके अलावा पार्टी को 2015 के विधानसभा चुनाव का अनुभव भूला नहीं था। उस चुनाव में भाजपा ने लोजपा को बयालीस सीटें दी थीं, जिसमें से वह केवल दो पर जीती। दरअसल बिहार की सभी छोटी पार्टियां टिकट बेचती हैं।
फार्मूला बदलना चाहते हैं नीतीश
ताजा गतिरोध चुनाव के समय के मुद्दों को लेकर नहीं है। पर उस समय के मुद्दों का ही नतीजा है। जनता दल यूनाइटेड छोटी पार्टी हो गई है। गठबंधन में मंत्रिमंडल का बंटवारा सीटों के अनुपात में होता है। नीतीश और भाजपा के बीच भी यही फार्मूला चलता था। पर इस बार नीतीश कुमार इसे बदलना चाहते हैं। सीटें कम आने के बावजूद वे चाहते हैं कि मंत्रिमंडल में दोनों दलों की हिस्सेदारी बराबर बराबर हो। भाजपा इसके लिए तैयार नहीं है। इस वजह से मंत्रिमंडल का विस्तार रुका हुआ है।
तरह तरह के दांव
भाजपा पर दबाव डालने के लिए नीतीश कुमार तरह तरह के दांव आजमा रहे हैं। कुछ दिन पहले जनता जल यूनाइटेड की ओर से कहा गया कि सरकार चलाने के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनना चाहिए। इसका एक ही मकसद है कि भाजपा के कोर मुद्दों को किनारे किया जाय और इसके जरिए दबाव बनाया जाय। दूसरा मुद्दा यह उठाया जा रहा है कि नीतीश कुमार का सम्मान बना रहना चाहिए।
नीतीश कुमार को भरोसा नहीं
सारे पैंतरों के बाद भी नीतीश कुमार को भरोसा नहीं है कि ऐसा हो पाएगा। उन्हें पता है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने की उनकी शर्त भाजपा हाईकमान किसी भी सूरत में मानने के तैयार नहीं हुआ। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में अकेले तीन सौ से ज्यादा सीटें जीतने के बाद भाजपा ने तय किया कि गठबंधन के दलों को एक एक मंत्रिपद दिया जाय। नीतीश कुमार इसके लिए तैयार नहीं हुए। उनकी मांग थी कि बिहार से भाजपा के जितने लोग मंत्रिमंडल में हैं उतने ही उनकी पार्टी के भी हों। भाजपा ने इससे यह कह कर इनकार कर दिया कि फिर बाकी सहयोगी दलों की भी मांग होगी। खासतौर से शिवसेना की। जिसको जनता दल यूनाइटेड से ज्यादा सीटें मिली हैं। नतीजा यह हुआ कि जनता दल यूनाइटेड आज तक मंत्रिमंडल से बाहर है। पर बड़ा सवाल है कि क्या बिहार में भी भाजपा अपने रुख पर कायम रह पाएगी।