त्रेता युग में भगवान श्रीराम को 14 साल के वनवास के लिए गंगा पार करनी थी. उन्होंने नदी किनारे खड़े केवट को बुलाया. केवट ने कहा, मैं आपको गंगा तो पार करवा दूंगा, लेकिन विनती ये है कि आप भी मुझे मेहनताने के रूप में भवसागर पार करा दीजिएगा। श्रीराम मुस्कुराए और समझ गए कि निषादराज उनसे अनंतकाल तक जुड़े रहना चाहते हैं. कुछ ऐसा ही 2024 के चुनाव में यूपी की कुर्मी बिरादरी के लोग करने की प्लानिंग कर रहे हैं।
कुर्मी समाज के लोग 2024 के चुनाव को लेकर एक ऐसी रणनीति पर काम कर रहे हैं, जिसमें किसी दल के लिए नहीं बल्कि बिरादरी की बेहतरी के लिए संकल्प लिया जा रहा है. यानी राजनीति में अब सत्ता किसी की भी हो, कुर्मियों की भागीदारी उसमें सुनिश्चित की जाए. ये सामाजिक तौर पर अपने आप में ऐसा प्रयोग है, जो सियासी होकर भी राजनीतिक नहीं है और सामाजिक होकर भी सियासी चाहतों पर सवार है।
सत्ता की बुनियाद से बुलंदी तक हों कुर्मी
सबसे पहले आपको बताते हैं कि यूपी की सियासत में राजनेताओं और राजनीतिक दलों से अलग कुर्मी बिरादरी का एक बड़ा वर्ग किस तरह की तैयारियों में जुटा है. सरदार पटेल बौद्धिक मंच नाम से रजिस्टर्ड सामाजिक संगठन है. पूर्व नौकरशाह डॉ. क्षेत्रपाल गंगवार इसके अध्यक्ष हैं. वो यूपी में माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन आयोग के चेयरमैन भी रहे हैं. अब उन्होंने अपने संगठन और सामाजिक उत्थान में जुटे बिरादरी के लोगों को एकजुट करने को नए सिरे से अंजाम दे रहे है।
पटेल बौद्धिक विचार मंच के तहत कुर्मी बिरादरी के लिए काम करने वालों को एक छत के नीचे लाने की कोशिश हो रही है. यानी कुर्मी समाज के लिए जो भी लोग काम कर रहे हैं, उनके साथ मिलकर इस तरह की एकजुटता की पेश की जाए कि सभी राजनीतिक दल उनकी ओर देखने के लिए मजबूर हो जाएं. 2024 को लेकर कुछ ऐसी ही तैयारियों को धार दी जा रही है. ख़ास बात ये है कि पटेल बौद्धिक विचार मंच में पूर्व IAS, IPS समेत सभी तरह के विभागों से जुड़े पूर्व अफ़सर, कर्मचारी, कई दलों के नेता और सामाजिक सेवा से जुड़े लोग शामिल हैं।
यूपी में कितने अहम हैं कुर्मी
राजनीतिक अहमियत की बात करें तो यूपी में कुर्मी बिरादरी काफ़ी असरदार है. इनकी जनसंख्या 2.85 करोड़ यानी क़रीब 12.57% है. कुर्मी समाज के लोग प्रधान से लेकर सांसद तक की सियासत में ख़ासा दख़ल रखते हैं. गांव, पंचायत, ब्लॉक, विधानसभा, विधान परिषद, कैबिनेट और राज्यमंत्री से लेकर सांसद तक हर स्तर पर कुर्मी समाज के लोगों की प्रभावशाली भागीदारी है. यहां तक कि मोदी मंत्रिमंडल में भी कई कुर्मी नेता मंत्री पद पर हैं।
यूं तो पटेल बौद्धिक विचार मंच का दावा है कि वो किसी एक विचारधारा के साथ नहीं हैं. बल्कि वो तो कुर्मियों का उत्थान करने वाले सियासी दलों के साथ हैं. लेकिन सवाल ये है कि कुर्मियों का वोट पाने के लिए लुभावने वादे तो सभी करेंगे, फिर कुर्मी वोटर एकजुट होकर किसके लिए वोट करेंगे. इस सवाल का जवाब ये है कि संस्था किसी एक राजनीतिक दल के साथ नहीं है, बल्कि हर दल में कुर्मी समाज के लोगों को मज़बूत करने की अपील करेगी.हालांकि, 2022 की बात करें तो विधानसभा चुनाव में क़रीब 85% से ज़्यादा कुर्मी वोट BJP को हासिल हुआ था।
कसौटी पर स्वतंत्र देव की ‘ताक़त’ और ‘स्वीकार्यता’!
कुर्मी समाज इस बार 2024 के चुनाव में बड़े सियासी खेल के साथ-साथ कुछ बड़ा संकेत भी दे रहा है. यूपी में सोनेलाल पटेल की तरह कुर्मियों को एकजुट करने वाले चेहरे की तलाश काफ़ी समय से की जा रही है. अब तक कुर्मी बिरादरी अलग-अलग दलों में मौजूद अपने नेताओं के साथ खड़ी नज़र आती है. लेकिन, यूपी जैसे बड़े राज्य में कुर्मी बिरादरी को अब अपनी ताक़त का मज़बूती से एहसास करवाना है, तो उसे एक चेहरा और नाम चाहिए. यानी कुर्मी बिरादरी दिसंबर में होने वाले सम्मेलन में अपने सशक्त नेता के लिए किसी बड़े चेहरे पर मुहर लगा सकती है।
योगी सरकार में यूं तो कैबिनेट मंत्री राकेश सचान समेत कई कुर्मी नेता हैं, लेकिन BJP और कुर्मी बिरादरी दोनों की नज़रें स्वतंत्र देव सिंह पर टिकी हैं. वो मुख्यमंत्री योगी के सबसे क़रीबी लोगों में शुमार हैं. यूपी में मुख्यमंत्री के बाद सबसे बड़े दायरे वाला जलशक्ति मंत्रालय उन्हीं के पास है. इसके अलावा वो प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं. कुर्मी बिरादरी के अलावा अगड़े नेताओं के साथ उनकी सियासी ट्यूनिंग और कार्यकर्ताओं के साथ ट्यूनिंग ठीक है. बहुत संभव है कि कुर्मियों के नेता के तौर पर स्वतंत्र देव सिंह को समाज का एकजुट समर्थन मिले और वो 2024 में बिरादरी और BJP दोनों के लिए बड़ी भूमिका में नज़र आएं. स्वतंत्र देव सिंह यूं तो पिछड़ों के सम्मेलन की अगुवाई कई बार कर चुके हैं. उनकी पहचान सरल, साधारण और ज़मीनी नेता की है. लेकिन, फिलहाल वो अपने सबसे मज़बूत राजनीतिक दौर में हैं. ऐसे में कुर्मी बिरादरी के लोगों की अपेक्षाएं भी बहुत हैं. अब देखना ये होगा कि दिसंबर में होने वाले कुर्मी सम्मेलन में उनके समाज के लोग उन्हें क्या भूमिका सौंपते हैं और बदले में उनके क्या उम्मीद करते हैं।
5 राज्यों के नतीजों के बाद दिखेगा ‘कुर्मी कुंभ’!
एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम के चुनाव नतीजों के बाद यूपी में कुर्मी बिरादरी का कुंभ दिखेगा. पटेल बौद्धिक विचार मंच से वैचारिक तौर पर जुड़े BJP के MLC अवनीश पटेल बताते हैं कि दिसंबर को दूसरे हफ़्ते में एक बड़ा सम्मेलन होगा. इसमें सभी दलों के कुर्मी नेताओं को बुलाने की तैयारी है. इसका मक़सद ये है कि जो नेता जहां है, उसे बिरादरी की ओर से और मज़बूत किया जाए, ताकि वो अपने समाज को मुक़म्मल बना सके।
दिसंबर में जब कुर्मियों का ये बहुचर्चित सम्मेलन होगा, तो दलों की दीवार नहीं रहेगी. इसमें BJP, सपा, BSP, कांग्रेस, अपन दल समेत बाक़ी पार्टियों के नेता को बुलाया जाएगा. इसके अलावा पूर्व अधिकारी, कर्मचारी और कुर्मी बिरादरी के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वालों को सम्मेलन का हिस्सा बनाया जाएगा. अवनीश पटेल के मुताबिक कुर्मियों के इस कुंभ का सबसे बड़ा मक़सद यही है कि अपनी बिरादरी के नेताओं को समर्थन देकर उन्हें राजनीतिक रूप से मज़बूत बनाया जाए. बदले में वो नेता अपनी सियासी ताक़त के ज़रिये कुर्मी समाज को सशक्त बनाएंगे।
मुस्लिम ज़्यादा लेकिन विधायक कुर्मियों से कम!
यूपी में कुर्मियों की जनसंख्या 12.57% होने के बावजूद उनकी बिरादरी के 41 विधायक इस बार विधानसभा में हैं. वहीं, मुस्लिमों की जनसंख्या 20% होने के बावजूद उनके सिर्फ़ 34 विधायक विधानसभा पहुंच सके हैं. यानी भागीदारी और हिस्सेदारी के पैमाने से देखा जाए, तो कुर्मी बिरादरी ने कम संख्या के बावजूद अपनी मौजूदगी मज़बूती से दर्ज कराई है. वहीं, मुस्लिम बिरादरी कुर्मियों से ज़्यादा भागीदारी के बावजूद हिस्सेदारी के मंच पर बहुत पीछे दिख रही है।
पटेल बौद्धिक विचार मंच के बैनर तले कुर्मी बिरादरी 2024 के लिए एक बड़ा संदेश देने की कोशिश में है. कुर्मी समाज में पटेल, सचान, गंगवार, सैंथवार, वर्मा, चौधरी, मल्ल, सिंह समेत जितने भी लोग हैं, उन्हें एकजुट करके सभी दलों को अपनी राजनीतिक और सामाजिक ताक़त का एहसास कराया जाएगा. पटेल बौद्धिक विचार मंच से जुड़े नेताओं का मानना है कि कुर्मी बिरादरी को 2024 के लिहाज़ से मज़बूत बनाना है. इसलिए बिरादरी का फ़ोकस इस बात पर होगा कि वो किसी एक दल के साथ आने के बजाय कुर्मी नेताओं के साथ खड़ी नज़र आए. कुल मिलाकर 2023 के ‘कुर्मी कुंभ’ को ऐसा आकार देने की कोशिश होगी, जिससे बिरादरी का वोटबैंक चुनावी समर में बेड़ा पार करने वाली नाव की तरह नज़र आए। (एएमएपी)