संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में गाजा में मानवीय आधार पर तुरंत युद्धविराम की मांग के प्रस्ताव पर भारत ने मतदान से दूर रहने का फैसला किया. शुक्रवार को जॉर्डन द्वारा लाए गए इस प्रस्ताव के समर्थन में 120 वोट पड़े और प्रस्ताव पास हो गया। जबकि भारत सहित 45 देशों ने इसमें भाग नहीं लिया. वहीं इससे पहले एक सुधार प्रस्ताव का भारत ने समर्थन किया था जिसे आमसभा में स्वीकार नहीं किया जा सका. संयुक्त राष्ट्र में इस संवेदनशील मुद्दे पर दुनिया बंटी हुई साफ नजर आ रही है, ऐसे में भारत का हालिया प्रस्ताव से गैरहाजिर रहने का फैसला कई तरह के स्पष्ट संकेत देता है।

क्यों किया गया प्रस्ताव का बहिष्कार?

जॉर्डन द्वारा पेश के किए गए इस प्रस्ताव का सहप्रायोजन रूस, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, मालदीव, बांग्लादेश सहति 40 से भी अधिक देशों ने किया था. वहीं भारत के अलावा इस प्रस्ताव से दूरी बनाने वाले देशों में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, जापान, यूक्रेन और यूके शामिल थे. प्रस्ताव में शामिल ना होने या उसका समर्थन ना करने की प्रमुख वजह आतंकी समूह हमास का जिक्र तक नहीं करना बताया जा रहा है. लेकिन इस बहिष्कार की पूरी कहानी समझना जरूरी है।

इसमें सुधार का भी आया था एक प्रस्ताव

प्रस्ताव का शीर्षक “नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी एवं मानवीय दायित्वों को कायम रखना” था जिसके समर्थन में 120, विरोध में 14 देशों ने वोट किया था तो वहीं 45 देशों ने मतदान का बहिष्कार किया था. लेकिन केवल इससे ही स्थिति साफ नहीं होती. इससे पहले सभा ने कनाडा द्वारा प्रस्तावित और अमेरिका द्वारा सहप्रायोजित प्रस्ताव के एक हिस्से में सुधार पर भी विचार किया था जिसमें भारत सहित 87 देशों ने समर्थन, 55 ने विरोध और 23 ने बहिष्कार किया था।

भारत ने सुधार प्रस्ताव का किया था समर्थन

इस सुधार में “हमास के 7 अक्टूबर को इजरायल पर हुए हमले, सैकड़ों लोगों का अपहारण कर उन्हें बंधक बनाने की घटना को खारिज कर उसकी निंदा” को शामिल किया था. इसमें बंधकों की तुरंत बिनाशर्त रिहाई की मांग को भी शामिल किया गया था. इस सुधार को स्वीकार नहीं किया था. तब आमसभा में डिप्टी स्थायी प्रतिनिधि के रूप में राजदूत योजना पटेल ने कहा था कि हमले कि निंदा की जानी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र में इस प्रस्ताव में हमास के हमले कि निंदा के हिस्सा शामिल नहीं किया गया था।

आंतकवाद की निंदा?

पटेल ने कहा कि हम तुरंत बिना शर्त बंधकों की रिहाई की मांग करते हैं. आतंकवाद किसी सीमा, देश या नस्ल को नहीं मानता ,दुनिया को किसी तरह के आतंकी हमले को जायज नहीं ठहराना चाहिए. हमें अपने मतभेद अलग रखकर एक होना होगा और आतंक के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनानी होगी।

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गाजा के खिलाफ नहीं भारत

वहीं बहिष्कार करने वाले प्रस्ताव पर भारत ने कहा कि मानवीय संकट से निपटने की जरूरत है और हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रयासों और गाजा के लोगों के लिए अब तक पहुचाई गई मानवीय सहायता का स्वागत करते हैं. भारत ने खुद भी इसमें सहयोग किया है. भारत ने कहा, “हम संबंधित पक्षों से अनुरोध करते हैं कि हिंसा को बंद कर ऐसे हालात बनाने प्रयास किए जिससे सीधे शांतिवार्ता हो सके.”इजरायल पर आतंकी हमले ने गाजा के हालात को युद्ध का अखाड़ा बनादिया जिसमें वहां के आम नागरिक पिस रहे हैं।

प्रस्ताव में किस हमास के हमले की निंदा नहीं

लेकिन फिर भी भारत ने इस प्रस्ताव का समर्थन करने में असहतमि जताई क्योंकि इसमे हमास के हमले का जिक्र नहीं था और ना ही इसकी निंदा की गई थी. प्रस्ताव में गाजा में मानवीय आधार पर सहायता पहुंचाने की मांग की गई जिससे गाजा पट्टी के नागरिकों को भोजन, पानी, दवाएं, ईंधन और बिजली जैसी जरूरी सहायता मिल सके. प्रस्ताव में जोर देकर कहा गया कि नागरिकों को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत इन सुविधाओं से वंचित रखना बंद किया जाना चाहिए।
गाजा के पूरे इलाके को इजरायल ने घेर रखा है और सात अक्टूबर के हमले के बाद से ही यहां बिजली और अन्य जरूरी सप्लाई बंद कर यहां पर लगातार हवाई हमले किए जा रहा है. इजरायल ने 7 अक्टूबर के हमले के तुरंत बाद ऐलान किया है कि वह हमास को हर हाल में खत्म कर देगा. हमास का गाजा पर एक तरह से कब्जा है. लेकिन अब वहां इजरायल के हमलों से स्थानीय लोगों पर ज्यादा असर हो रहा है।

प्रस्ताव की कानूनी बाध्यता नहीं

संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट के मुताबिक 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमास द्वारा किए गए हमलों के बाद, संयुक्त राष्ट्र की यह पहली औपचारिक प्रतिक्रिया है. इससे पहले, यूएन सुरक्षा परिषद में चार अवसरों पर किसी कदम पर सहमति नहीं बन पाई थी. यह प्रस्ताव कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, मगर संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के बहुमत की राय को व्यक्त करता है।

हमास के हमले का नहीं था जिक्र, इसीलिए भारत ने बनाई दूरी

सूत्रों ने बताया है कि “नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी तथा मानवीय दायित्वों को कायम रखने” शीर्षक वाले प्रस्ताव में  इजरायल पर हमास के हमले का कोई जिक्र नहीं था जिसकी वजह से भारत ने इससे दूरी बनायी. ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, जापान, यूक्रेन और यूके भी  भारत के साथ मतदान में हिस्सा नहीं लेने वाले देशों में शामिल रहे।

भारत ने किया कनाडा के प्रस्ताव का समर्थन

अपने एक और महत्वपूर्ण कदम में भारत ने कनाडा से मौजूदा तल्खी के बावजूद उसकी ओर से  संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्तावित उस संशोधन का समर्थन किया, जिसमें इजरायल पर हमास के हमले को आतंकवादी हमला बताया गया और इसे कतई स्वीकार नहीं करने की बात कही गई. साथ ही हमास द्वारा बंधक बनाए गए लोगों की तत्काल रिहाई की मांग की गई है. हालांकि भारत और कई अन्य देशों के समर्थन के बावजूद पर्याप्त वोट नहीं मिल पाने की वजह से यह पारित नहीं हो पाया।

भारत ने बताया क्यों नहीं किया समर्थन

सीजफायर के प्रस्ताव को समर्थन नहीं किये जाने को लेकर महत्वपूर्ण संकेत देते हुए संयुक्त राष्ट्र में भारत की उप स्थायी प्रतिनिधि योजना पटेल ने कहा, ‘ऐसी दुनिया में जहां मतभेदों और विवादों को बातचीत के जरिए हल किया जाना चाहिए, इस प्रतिष्ठित संस्था को हिंसक वारदातों पर गहराई से चिंतित होना चाहिए. 7 अक्टूबर को इजरायल में आतंकवादी हमले चौंकाने वाले थे और उसकी निंदा की जानी चाहिए।

कनाडा के प्रस्ताव को समर्थन किए जाने के पीछे वजह स्पष्ट करते हुए पटेल ने कहा, “बंधक बनाए गए लोगों के साथ हमारी संवेदनाएं हैं. हम उनकी तत्काल और बिना शर्त रिहाई का आह्वान करते हैं. आतंकवाद घातक है और इसकी कोई सीमा, राष्ट्रीयता या नस्ल नहीं होती.आइए हम मतभेदों को दूर रखें, एकजुट हों और आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस का रुख अपनाएं।

संयुक्त राष्ट्र महासभा में कैसे होती है वोटिंग

संयुक्त राष्ट्र में 193 सदस्य देश हैं, और सभी को एक वोट हासिल है. सुरक्षा परिषद के विपरीत, यहां किसी देश के पास वीटो पावर नहीं है. महत्वपूर्ण सवालों पर यूएन महासभा में निर्णय, वहां उपस्थित व मतदान में हिस्सा लेने वाले सदस्य देशों के दो-तिहाई बहुमत पर निर्धारित होता है.  संयुक्त राष्ट्र में स्थाई पर्यवेक्षक, ‘होली सी’ (Holy See) और फिलिस्तीन की महासभा के निर्णयों में कोई भूमिका नहीं है। (एएमएपी)