के. विक्रम राव ।
याद कीजिये गत पखवाड़े के दैनिक अखबार! डोनाल्ड ट्रम्प की पराजय की खबर जोर शोर से छपी थी। निशान-ए-पाकिस्तान के अलंकरण से नवाजे गये जोय बिडेन अमेरिकी राष्ट्रपति पद जीते थे। कराची-लाहौर में ईद-बकरीद का नजारा था। मगर एक और खबर गत सप्ताह शाया हुई तो माजरा इस्लामाबाद में मुहर्रम वाला हो गया।
नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जोय बिडेन ने अमेरिका का नया विदेश मंत्री नामित किया एन्टोनी ब्लिंकेन को। और उनकी पहली घोषणा थी कि (पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के इस पूर्व उपराष्ट्रपति) बिडेन ने अमेरिका-भारत के रिश्तों को अधिक संजोये रखने का संकल्प लिया है। उसे अब आकार मिलेगा।
ब्लिंकेन कौन
कौन है यह ब्लिंकेन? इतिहास में वह मसीहा एब्राहम के खानदान का है। याकूब उर्फ इस्राइल के पुत्र यहूदा का वंशज है। यहूदी को मुसलमान जन्मजात शत्रु मानते है। घृणा के निचले पायदान पर हिन्दू हैं। ब्लिंकेन के पिता, दादा, नाना आदि एडोल्फ हिटलर के ”होलोकास्ट” में मारे गये थे। ब्लिंकेन इस्राइल को अमेरिका सैन्य सहायता द्वारा पश्चिम एशिया में बलवान राष्ट्र बनता देखना चाहता है।
ब्लिंकेन और इस्राइल
गत माह इस्राइल को सात दशकों बाद सऊदी अरब ने मान्यता दी। मक्का-मदीना यहीं पर हैं। मगर इस्लामी पाकिस्तान अभी भी इस्राइल को नेस्तनाबूत करने की मंशा पाले हुए है। भारत के मुस्लिम वोटरों से भयभीत होकर भाजपा तक इस्राइल को मान्यता देने से वर्षों से सिहरती रही। जनता पार्टी सरकार के विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने (1977) रात के अंधरे में दिल्ली के एक उपनगर में लुके छिपे इस्राइल के विदेश मंत्री मोशे दयान से भेंट की थी। प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने पुस्तक में लिखा था कि: ”खुले आम भेंट से तब जनता पार्टी सरकार ही गिर जाती।”
यह खौफ टूटा, जब नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस्राइल राजदूतावास का ओहदा बढ़ा दिया। खुद जेरुशलम यात्रा पर गए मोदी ने भारत तथा इस्राइल को घनिष्ट सुहृद बना दिया। तो अमेरिका के नामित विदेश मंत्री उनके पितृराष्ट्र इस्राइल के प्रति भारत के सौहार्द्र और इस्लामी पाकिस्तान की तीव्र घृणा को कैसे भूलेंगे?
आतंकी ओसामा के वध पर जिद
एक विशेष बात और। विगत दशक में अरब और इस्लामी मुल्कों पर अमेरिकी दबाव, हमला और वित्तीय व राजनीतिक कटौती के पीछे क्रमानुसार ब्लिंकेन की भूमिका रही। इस्लामाबाद की उपनगरी वाली छावनी के पास छिपे आतंक के सुलतान ओसामा बिन लादेन की हत्या पर चर्चा के समय बिडेन ने बराक ओबामा को सावधानी बरतने की सलाह दी थी। पर ब्लिंकेन ने आतंकी ओसामा के वध पर जिद की थी। बराक ओबामा ने तब अमेरिकी नौसैनिकों को योजना कारगर करने का आदेश दिया था।
गद्दाफी के वध की पार्श्वभूमि में हाथ
अपनी डेमोक्रेटिक पार्टी के सत्ता वाले गत दशक में विदेश नीति के निर्देशक रहे ब्लिंकेन ने प्रतिस्पर्धी रिपब्लिक पार्टी के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश पर सिनेटर बिडेन द्वारा दबाव डलवाया था कि ईराक पर हमला किया जाये तथा कुवैत को मुक्त कराया जाये। अफगानिस्तान के कट्टर इस्लामी तालिबानी अड्डों पर बमवर्षा के पीछे ब्लिंकेन का ही आग्रह था। जब 2013 में सीरिया के मुस्लिम आतंकियों पर आक्रमण का निर्णय लेना था तो ब्लिंकेन ने ही बराक ओबामा को निर्णयात्मक कदम के लिये मनाया था। शस्त्र भिजवाये थे। लीबिया का कर्नल गद्दाफी निष्ठुर इस्लामी प्रशासन का नायक था। उनके वध की पार्श्वभूमि में इन्हीं का हाथ था।
चीन पर कड़ा रुख
बिडेन कह ही चुके हैं, जिसे ब्लिंकेन ने दोहराया था, कि कम्युनिस्ट चीन को नियंत्रित करना होगा ताकि भारत अशक्त न पड़े। उन्होंने ट्रंप शासन द्वारा हाल ही में भारत-अमेरिका सैन्य समझौते को बिडेन शासन द्वारा पूरे तौर से क्रियान्वित करने पर जोर दिया है। चीन द्वारा हांगकांग में नागरिक स्वतंत्रता को खत्म करने के विरुद्ध कदम उठाने का अमेरिका का इरादा अब स्पष्ट दिख रहा है।
भारत की शक्ति
56 वर्षीय ब्लिंकेन और उनके हममजहबी वकील डगलस एमहाफ (निर्वाचित उपराष्ट्रपति भारतीय मूल की कमला हैरिस के पति) वाली शासकीय (यहूदी) जोड़ी पाकिस्तान के इस्राइल-विरोधी दृष्टिकोण से प्रभावित तो होते ही रहेगी। यही भारत की शक्ति की धुरी होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सौजन्य: सोशल मीडिया)