तब से आलमगीर ही पार्टी का नेतृत्व कर रहे
लिहाजा हसीना सरकार को इस्तीफा दे देना चाहिए.
उनकी मांग है कि अवामी लीग सरकार की जगह केयरटेकर सरकार बने और उसी के तहत चुनाव कराए जाएं। बांग्लादेश में विपक्ष और सत्तारुढ़ पार्टी अवामी लीग के बीच पिछले कुछ समय से टकराव काफी बढ़ गया है। बांग्लादेश नेशनल पार्टी के जनरल सेक्रेट्री आलमगीर शेख हसीना पर देश की हर अहम संस्था को खत्म करने और लोगों के अधिकार छीन लेने का आरोप लगाते रहे हैं।
विपक्षी दलों का कहना है बांग्लादेश में अवाम बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, मानवाधिकार, लोकतांत्रिक अधिकारों के कुचले जाने से परेशान है। फिलहाल जेल में बंद बीएनपी चीफ ख़ालिदा ज़िया हसीना सरकार पर विरोधियों को दबाने और धांधली कर चुनाव जीतने का आरोप लगाती रही हैं। उन्होंने कहा है कि 2014 और 2018 में भी शेख हसीना की पार्टी ने चुनावों में धांधली कर सत्ता हथियाई थी। हालांकि शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग इन आरोपों को सिरे से नकारती रही है।
शेख हसीना और विपक्ष में टकराव का मुद्दा?
बीएनपी के जनरल सेक्रेट्री फख़रुल इस्लाम आलमगीर जिन्हें शनिवार के प्रदर्शन के बाद गिरफ़्तार कर लिया गया। बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना बांग्लादेश में 2009 से ही सत्ता में हैं। उन्हें बांग्लादेश के सामाजिक और आर्थिक विकास को रफ़्तार देने और इसे एक उभरती अर्थव्यवस्था वाला देश बनाने का श्रेय दिया जाता है. बांग्लादेश में लाखों लोगों को गरीबी से निकालने के लिए दुनिया भर में उनकी सरकार की तारीफ हुई है। लेकिन उन पर अधिनायकवादी रवैया अपनाने, अपने राजनीतिक विरोधियों और सरकार की आलोचना करने वालों को दबाने के आरोप हैं। शेख हसीना पर प्रेस और सरकार से असहमति रखने वालों को प्रताड़ित करने का भी आरोप है।
In Bangladesh, panic persist over political unrest, street violence.A three-day blockade of road, rail and waterways, enforced by Bangladesh Nationalist Party and like-minded opposition parties, across Bangladesh began this morning@DhakaPrasar
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— DD News (@DDNewslive) October 31, 2023
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के सेंट्रल कमेटी के उपाध्यक्ष और निताई राय चौधरी की बेटी और पार्टी की मुखर नेता निपुण राय चौधरी के मुताबिक़ शेख हसीना ने बांग्लादेश को एक पार्टी का देश बना दिया है। उनका कहना है कि हसीना ने ‘हर तरह के राजनीतिक विरोध को कुचल कर रख दिया है. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर 40 लाख केस लाद दिए गए’ हैं।
वो पूछती हैं कि क्या ऐसे में बांग्लादेश में लोकतंत्र जिंदा रह सकता है?
हसीना को बैकफुट पर ला पाएगी बीएनपी?
एक साल पहले बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने ढाका में एक और बड़ी रैली की थी. उसने निष्पक्ष कार्यवाहक सरकार का गठन कर चुनाव आयोग बनाने, ईवीएम हटाने और सभी धार्मिक नेताओं के ख़िलाफ़ मुकदमे हटाने का मांग की थी. अपनी मांग के समर्थन में बीएनपी के सभी सांसदों ने संसद से इस्तीफा दे दिया था।बीएनपी की इस रैली में भारी भीड़ देख कर लग रहा था कि उसने हसीना सरकार को बैकफुट पर ला दिया है. लेकिन इसका वो कोई बड़ा राजनीतिक फायदा नहीं ले पाई है. दरअसल पिछले एक दशक के दौरान बीएनपी संकट में घिरी रही है।https://apkaakhbar.in/the-country-paid-tribute-to-sardar-patel-dignitaries-including-pm-modi-paid-floral-tributes/
भ्रष्टाचार के मामले में ख़ालिद ज़िया के जेल में होने की वजह से नेतृत्व संकट और जमात-ए-इस्लामी से गठजोड़ ने इसे जनता में अलोकप्रिय बना दिया था। यही वजह है पिछले 15 साल से पार्टी एक भी चुनाव नहीं जीत सकी है। हालांकि बीएनपी का आरोप है कि शेख हसीना की पार्टी धांधली कर चुनाव जीतती आ रही है। जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश मुक्ति युद्ध की विलेन मानी जाती है.उस पर पाकिस्तान की सेना से गठजोड़ के जरिये बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष को नुकसान पहुंचाने का भी आरोप है। इस आरोप की वजह से पार्टी को सेक्युलर वोटरों का गुस्सा झेलना पड़ा है. लिहाजा वो लंबे समय से सत्ता से बाहर है. बीएनपी चीफ ख़ालिदा ज़िया पर विदेशी दान की रकम में गबन के आरोप भी लग चुके हैं। साथ ही उनके बेटे तारिक रहमान 2004 में हसीना की हत्या करवाने के आरोप में मिली सजा के बाद लंदन में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं।
इन दोनों की गैर मौजूदगी ने पार्टी को कमजोर कर दिया
सरकार का समर्थन घट रहा है?
शनिवार को बीएनपी की रैली में जिस तरह लोग जुटे उसके बाद ये पूछा जा रहा है कि क्या इस बार ख़ालिदा ज़िया की पार्टी सरकार पर दबाव बनाने में कामयाब हो सकती है। बीबीसी बांग्ला सेवा के संवाददाता शुभज्योति घोष कहते हैं,”इस बार हालात दूसरे हैं. 2014 में बीएनपी कार्यकर्ताओं ने जो हिंसा की थी वो चुनाव के बाद हुई थी. उस समय चुनाव रद्द कराने की उनकी कोशिश कामयाब नहीं हुई लेकिन इस बार बीएनपी चुनाव से पहले प्रदर्शन कर रही है. इस बार एक सूत्री एजेंडा ये है कि सरकार इस्तीफा दे और चुनाव एक केयरटेकर सरकार के अधीन हो.”
वो कहते हैं,”ये पता नहीं है कि सरकार इस दबाव के आगे कितना झुकेगी, क्योंकि सरकार ने केयरटेकर सरकार के प्रावधान को संविधान से ही हटा दिया है. हालांकि शेख़ हसीना के सामने इस बार जोखिम ज्यादा है. अवाम में हसीना सरकार का समर्थन घट रहा है.”
अमेरिका के साथ वीजा विवाद और इसका असर
इस साल अमेरिका ने बांग्लादेश के लिए एक नई वीजा पॉलिसी का एलान किया था,जिसमें बांग्लादेश के उन अधिकारियों को वीजा न देने का फैसला किया गया था,जिनके अपने देश के चुनाव में अड़चनें पैदा करने की आशंका है। अमेरिकी सरकार ने बांग्लादेश के सुरक्षाबल रैपिड एक्शन बटालियन और छह सुरक्षा अधिकारियों पर भी प्रतिबंध लगाया था। एइन प्रतिबंधों के कारण इन लोगों को अमेरिका का वीज़ा देना बंद कर दिया गया था।
साथ ही अमेरिका में इनकी संपत्तियों को भी जब्त करने का एलान किया गया था. अमेरिकी सरकार का कहना था कि रैपिड एक्शन बटालियन पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप हैं। उस समय बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमिन ने अमेरिका पर ही निशाना साधा था। उन्होंने कहा था, “आप कह रहे हैं कि 10 सालों में 600 लोग ग़ायब हुए हैं, लेकिन आपके देश (अमेरिका) में हर साल 60 लाख लोग ग़ायब हो जाते हैं लेकिन अमेरिकी सरकार को नहीं पता है कि यह कैसे होता है.”
सवाल ये है कि क्या अमेरिका की वीजा पॉलिसी और पश्चिमी देशों की बांग्लादेश नीति का मौजूदा हसीना सरकार पर दबाव दिखेगा। शुभज्योति घोष कहते हैं, “अमेरिका और पश्चिमी देशों का बांग्लादेश पर खासा दबाव है. बांग्लादेश के लिए अमेरिका ने नई वीजा नीति का एलान किया है. मानवाधिकार के सवाल पर दूसरे पश्चिमी देशों का भी दबाव है. बांग्लादेश के नेताओं और पॉलिसी मेकर्स के अमेरिकी में हित हैं. उनके परिवार के सदस्य वहां रहते हैं। वो कहते हैं, “बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी का मौजूदा आंदोलन सफल होगा या नहीं, ये कहना मुश्किल है. लेकिन इस बार वो अकेले नहीं है. उसके साथ पश्चिमी ताकतें भी हैं. वो भी बांग्लादेश सरकार पर असर डाल रही हैं।