कुछ मिनटों बाद बाघमारा चौकी से एक संतरी ने भी इसी तरह की ख़बर दी. उसने बताया कि शरणार्थी लोग कह रहे हैं कि पूर्वी पाकिस्तान में लोगों को मारा जा रहा है. अभी गौड़ ने फ़ोन रखा ही था कि डालू चौकी से भी इसी तरह की ख़बर आई. गौड़ ने तुरंत कूट भाषा में अपने बॉस डीआईजी बरुआ को संदेश भेजकर बढ़ते हुए संकट की सूचना दी। डीआईजी की तरफ़ से कोई जवाब नहीं आया क्योंकि वो उस समय गहरी नींद में थे. बीएसएफ़ के मुख्यालय में किसी ने डीआईजी को जगाकर सीमा पर हो रही गतिविधियों के बारे में जानकारी दी. उन्होंने गौड़ के संदेश का जवाब देते हुए कहा कि शरणार्थियों को रात भर के लिए भारत की सीमा के अंदर रहने दिया जाए।
पाकिस्तान राइफ़ल्स के सैनिकों ने बीएसएफ़ के अफ़सर को पूर्वी पाकिस्तान आने का न्योता दिया. किसे पता था कि इन शरणार्थियों की संख्या दिनोंदिन बढ़कर एक करोड़ के ऊपर पहुँच जाएगी और उन्हें करीब एक साल तक भारत की धरती पर रहना पड़ेगा। इस बात की भी किसी ने कल्पना नहीं की थी कि अर्धसैनिक बल बीएसएफ़ को बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई में और सक्रिय भूमिका निभाने को मिलेगी।
सीमा सुरक्षा बल की भूमिका
ईस्ट पाकिस्तान राइफ़ल्स की छग्गलनैया चौकी के इंचार्ज हेड कॉन्सटेबल नूरुद्दीन बंगाली थे. उनकी भारत की श्रीनगर चौकी पर तैनात परिमल कुमार घोष से दोस्ती थी. वो अक्सर सीमा पर आकर घोष से मिला करते थे।
26 मार्च को पाकिस्तानी सेना के क्रैक डाउन के बाद नूरुद्दीन ने परिमल घोष से अनुरोध किया कि वो सीमा पार करके पाकिस्तानी सेना के साथ संघर्ष में उनकी मदद करें. घोष ने अपनी वर्दी बदलकर आम लोगों जैसे कपड़े पहने और अपने साथ चटगाँव के पटिया कॉलेज के प्रोफ़ेसर अली का एक नकली परिचय पत्र रखा. वो कुछ दूर पैदल चले और फिर नूरुद्दीन के साथ रिक्शे पर सुभापुर पुल पर पहुंचे. वहाँ पर ईस्ट पाकिस्तान राइफ़ल्स के छह जवान पहले से मौजूद थे।
RARE Colored Footage Of Indian Army PT-76 In Action & T-55s Along Infantry With Ishapore SLRs & Indian Airforce MIG-21 Providing CAS From Liberation War During 1971. 🇮🇳🇧🇩⚡️🇵🇰 pic.twitter.com/qxcNUu4X50
— 𝐊𝐔𝐍𝐀𝐋 𝐁𝐈𝐒𝐖𝐀𝐒 (@Kunal_Biswas707) November 3, 2023
उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान की मिट्टी हाथ में लेकर उन्हें शपथ दिलाई कि अब से वो बांग्लादेश की आज़ादी के लिए काम करेंगे. उन्होंने बताया कि किस तरह पाकिस्तानी सैनिकों के लिए मुश्किलें खड़ी की जा सकती हैं. पूर्वी पाकिस्तान के सैनिकों को निर्देश देकर घोष भारत की सीमा में वापस आ गए।
अपनी रिपोर्ट में उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान में हो रही गतिविधियों की जानकारी दी लेकिन ये नहीं बताया कि वो खुद सीमा पार करके पूर्वी पाकिस्तान गए थे. अगले दिन उनके बॉस लेफ़्टिनेंट कर्नल एके घोष उनसे मिलने उनकी चौकी पर आए.
लड़ाई से पहले के नए विवरण
उशीनोर मजूमदार हाल ही में प्रकाशित अपनी किताब ‘इंडियाज़ सीक्रेट वॉर बीएसएफ़ एंड नाइन मंथ्स टू द बर्थ ऑफ़ बांग्लादेश’ में लिखते हैं, “चाय पीने के बाद जब परिमल घोष ने अपने बॉस एके घोष को बताया कि वो खुद सीमा पार कर सुभापुर पुल तक गए थे तो उन्होने आसमान सिर पर उठा लिया. उन्होंने गुस्से से इतनी ज़ोर से मेज़ पर अपना हाथ मारा कि मेज़ पर रखी चाय छलककर गिर गई.” एके घोष ने कहा, “मेरी अनुमति के बिना अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ी? क्या तुम्हें इस बात का अंदाज़ा है कि इसके लिए तुम्हें कोर्ट मार्शल भी किया जा सकता है?”
सहायक कमांडेंट पीके घोष दाहिने से दूसरे
ये कहकर घोष झटके से उठे और अपनी जीप की तरफ़ बढ़ गए. परिमल घोष ने चलते-चलते उन्हें सैल्यूट किया लेकिन एके घोष ने उसका कोई जवाब नहीं दिया. परिमल घोष को लग गया कि अब उनकी नौकरी ख़तरे में है। भारत की पूर्वी सीमा से 2000 किलोमीटर दूर दिल्ली में गृह सचिव गोविंद नारायण के निवास पर एक उच्चस्तरीय बैठक हुई जिसमें भारत सरकार के कई आला अधिकारियों के अलावा सीमा सुरक्षा बल के निदेशक के रुस्तमजी और रॉ के निदेशक आरएन काव भी मौजूद थे। इस बैठक में तय हुआ कि सीमा सुरक्षा बल टेकनपुर मध्य प्रदेश में अपनी अकादमी से अपने कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पर भेजेगा तकि वहाँ के हालात पर करीबी नज़र रखी जा सके।
अगले दिन लेफ़्टिनेंट कर्नल एके घोष दोबारा श्रीनगर आउटपोस्ट पर पहुँचे. इस बार वो अपनी जीप से हँसते हुए उतरे. उतरते ही उन्होंने कहा, “पिछली बार मैंने आपकी दी हुई चाय नहीं पी थी. आज चाय बनती है.”
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ये सुनकर सहायक कमांडेंट परिमल घोष की जान में जान आई. उन्हें लग गया कि अब उनके कोर्ट मार्शल की संभावना ख़त्म हो गई है। उशीनोर मजूमदार लिखते हैं, “29 मार्च को परिमल घोष एक बार फिर प्रोफ़ेसर अली बनकर पूर्वी पाकिस्तान की सीमा में घुसे. इस बार अपने बॉस की सहमति से वो इस मिशन पर जा रहे थे. उनके साथ ईस्ट पाकिस्तान राइफ़ल्स के नूरुद्दीन और बीएसएफ़ के कुछ जवान भी थे. उन लोगों ने आम आदमियों के कपड़े पहन रखे थे.”
“पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोही लड़ाके उनके मुँह से ये बात सुनकर खुश हुए कि भारत ने उनकी मदद करने का फ़ैसला किया है. वो लोग परिमल घोष को कंधे पर उठाकर नाचने लगे. घोष ने वहाँ विद्रोहियों के कमांडर मेजर ज़िया-उर-रहमान से मुलाकात की. उन्होंने माँग की कि भारत उन्हें मोर्टार और तोप के गोले उपलब्ध कराए.”
‘इंदिरा गाँधी ने कहा- पकड़े मत जाना’
दिल्ली में सेनाध्यक्ष जनरल मानेक शॉ मुक्ति बाहिनी को सीमित सहायता देने के लिए तैयार हो गए। बीएसएफ़ के निदेशक रुस्तमजी ने लेफ़्टिनेंट कर्नल घोष को ये ख़बर पहुंचा दी. घोष ने परिमल घोष को ये सूचना देते हुए 92वीं बटालियन के मुख्यालय से मोर्टार और कुछ गोले भिजवाने की व्यवस्था करवाई। अगले दिन यानी 30 मार्च को परिमल घोष ने ये सामान मुक्ति बाहिनी के लड़ाकों तक पहुंचा दिया. 29 मार्च को ही पूर्वी पाकिस्तान में ये ख़बर फैल गई कि एक भारतीय रक्षा अधिकारी ने विद्रोहियों से मुलाक़ात की है. हथियार पहुंचते ही इस बात की पुष्टि हो गई कि भारत मुक्ति बाहिनी के समर्थन में कूद पड़ा है।
मेजर ज़िया ने ये ख़बर मुक्ति बाहिनी के दूसरे योद्धाओं तक पहुंचा दी. इस बीच जब बीएसएफ़ के निदेशक रुस्तमजी प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से निर्देश लेने गए तो उन्होंने कहा, ‘तुम जो चाहे करो मगर पकड़े मत जाना। सोवियत संघ में भारत के राजदूत और इंदिरा गाँधी के करीबी डीपी धर शुरू से ही मुक्ति बाहिनी के लड़ाकों को तोपें और मोर्टार देना चाहते थे. उन्होंने अपने करीबी दोस्त और इंदिरा गाँधी के प्रधान सचिव पीएन हक्सर को पत्र लिख कर कहा, ‘हमें इस प्रतिरोध को किसी भी हालत में धराशायी नहीं होने देना है।
अवामी लीग नेता की इंदिरा गांधी से मुलाक़ात
30 मार्च, 1971 को सीमा सुरक्षा बल को सूचना मिली कि अवामी लीग के दो वरिष्ठ नेता ताजुद्दीन अहमद और अमीरुल इस्लाम भारतीय सीमा के निकट पहुंच चुके हैं. 76 बीएन के अफ़सरों ने बीएसएफ़ के आईजी गोलक मजूमदार को कूट संदेश भेजकर इस बारे में बता दिया।
मजूमदार ने हॉटलाइन पर अपने बॉस रुस्तमजी से संपर्क किया. रुस्तमजी ने फ़ोन सुनते ही हवाईअड्डे का रुख़ किया और वहाँ खड़े बीएसएफ़ के जहाज़ से कलकत्ता पहुँच गए. मजूमदार ने रुस्तमजी को दमदम हवाई अड्डे के रनवे पर जाकर रिसीव किया. उस समय रात के बारह बज चुके थे। रुस्तमजी ने लिखा, “मजूमदार मुझे हवाईअड्डे के पास खड़ी एक जीप के नज़दीक ले गए जिसमें सुरक्षाकर्मियों से घिरे ताजुद्दीन अहमद बैठे हुए थे. हम उन्हें और अमीरुल इस्लाम को अपनी काली एंबेसडर कार में बैठाकर असम हाउस ले गए. ”
उन्होंने लिखा है, ”मैंने उन्हें अपना कुर्ता-पायजामा दिया ताकि वो नहाने के बाद धुले हुए कपड़े पहन सकें. तब तक रात के एक बज चुके थे. इतनी रात को कहीं खाना नहीं मिल सकता था. हमारे आईजी गोलक ने अपने हाथों से उन दोनों के लिए ऑमलेट बनाया. ” रुस्तमजी लिखते हैं, ”अगले दिन मैंने और गोलक ने न्यू मार्केट जाकर ताजुद्दीन और अमीरुल के लिए कपड़े, सूटकेस और टॉयलेट का सामान ख़रीदा. एक अप्रैल को गोलक ताजुद्दीन और उनके साथी को दिल्ली ले गए जहाँ उन्हें एक सेफ़ हाउस में रखा गया. दो दिन बाद उनकी प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से मुलाकात करवाई गई. दिल्ली में एक सप्ताह बिताने के बाद वो नौ अप्रैल को कलकत्ता वापस लौट आए.”
बांग्लादेश की निर्वासित सरकार को एक संविधान की ज़रूरत थी. बीएसएफ़ के लॉ अफ़सर कर्नल एनएस बैंस ने ताजुद्दीन अहमद के साथ आए बैरिस्टर अमीरुल इस्लाम को बांग्लादेश का अस्थाई संविधान लिखवाने में मदद की। इसको कलकत्ता के एक और बैरिस्टर सुब्रतो रॉय चौधरी ने दोबारा जाँचा. इस बात पर काफ़ी बहस हुई कि नए देश का नाम क्या रखा जाए. इसके लिए ‘ईस्ट बंगाल’, ‘बंग भूमि’, ‘बंगा’, ‘स्वाधीन बांग्ला’ जैसे कई नाम सुझाए गए. अंत में ताजुद्दीन ने कहा कि शेख़ मुजीब ने बांग्लादेश नाम को अपना समर्थन दिया था. सभी नेता बांग्लादेश के नाम पर सहमत हो गए।
Pakistan army was about to do Sajda during 1971 war but they stopped
Why? What happened suddenly ? 👀 pic.twitter.com/PNEbKqPTPn
— Indian 🇮🇳 (@ShivamOswal) November 3, 2023
पहले इसके नाम में दो शब्द थे जिसे बदलकर एक शब्द बांग्लादेश कर दिया गया. अब प्रश्न खड़ा हुआ कि बांग्लादेश की निर्वासित सरकार कहाँ शपथ ले? रुस्तमजी ने सलाह दी कि शपथ ग्रहण समारोह पूर्वी पाकिस्तान की भूमि पर होना चाहिए. इसके लिए मेहेरपुर कस्बे के पास बैद्यनाथ ताल में आम के एक बाग़ को चुना गया. सीमा सुरक्षा बल और सेना की जनसंपर्क इकाई के प्रमुख समर बोस और कर्नल आई रिखिए ने कलकत्ता से करीब 200 पत्रकारों को कारों के काफ़िले में बैद्यनाथ ताल पहुंचाने का बीड़ा उठाया।
बंदूकों के साए में ली मंत्रियों ने शपथ
पत्रकारों को पहले से नहीं बताया गया कि उन्हें कहाँ ले जाया जा रहा है। मानस घोष अपनी किताब ‘बांग्लादेश वॉर रिपोर्ट फ़्रॉम ग्राउंड ज़ीरो’ में लिखते हैं, “आम आदमियों के कपड़े पहने बीएसएफ़ के जवानों ने बैद्यनाथ ताल को चारों ओर से घेर रखा था. भारतीय वायु सेना के विमान उस इलाके में गश्त लगा रहे थे ताकि पाकिस्तानी वायुसेना के किसी भी हमले को नाकाम किया जा सके. ईस्ट पाकिस्तान राइफ़ल्स के जवानों ने अपनी फटी और गंदी वर्दी में बाँग्लादेश की निर्वासित सरकार के मंत्रियों को गार्ड ऑफ़ ऑनर दिया था. एक कोने में एक संगीत मंडली बिना किसी संगीत उपकरण के बांग्लादेश के राष्ट्र गान ‘आमार शोनार बांग्ला’ का अभ्यास कर रही थी.”
बांग्लादेश के पहले मंत्रिमंडल के सदस्य
तभी गोलक से कहा गया कि वो नज़दीक के एक भारतीय गाँव से तबले और हारमोनियम का इंतज़ाम करें. दीनाजपुर से अवामी लीग के सांसद यूसुफ़ अली ने माइक पर बांग्लादेश की आज़ादी की घोषणा को पढ़ा. इसके बाद सभी मंत्रियों ने एक के बाद एक शपथ ली. बांग्लादेश का राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया और सारा इलाका ‘जोय बांग्ला’ के नारों से गूँज उठा.
इस बीच बीएसएफ़ के निदेशक रुस्तमजी और आईजी गोलक मजूमदार भारतीय सीमा के अंदर रहकर सारी कार्रवाई पर नज़र रखे हुए थे. बांग्लादेश की अस्थायी सरकार का दफ़्तर 8 थिएटर रोड पर बनाया गया. ताजुद्दीन अहमद अपने दफ़्तर से सटे एक कमरे में रहने लगे. बाकी मंत्रियों को बालीगंज सर्कुलर रोड पर बीएसएफ़ के एक भवन में रहने की जगह दी गई। रुस्तमजी उन गिने-चुने लोगों में से थे जो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से हॉटलाइन पर बात कर सकते थे. एक दिन उन्होंने फ़ोन मिला कर पूछा कि अगर कलकत्ता में पाकिस्तानी उप-उच्चायोग के सभी बंगाली कर्मचारी पाला बदल लें तो क्या उनको आपका समर्थन मिलेगा? इंदिरा गांधी इस प्रस्ताव से बहुत अधिक खुश नहीं हुईं. उन्होंने रुस्तमजी को आगाह किया कि इस ऑपरेशन में एक मामूली सी ग़लती भारत को परेशानी में डाल सकती है।
‘मैं आपको निराश नहीं करूँगा.’
रुस्तमजी ने कहा कि ‘मैं आपको निराश नहीं करूँगा.’ उन्होंने पाकिस्तान के उप उच्चायुक्त होसैन अली से न सिर्फ़ खुद मुलाक़ात करके उन्हें पाला बदलने के लिए राज़ी किया बल्कि निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री ताजुद्दीन अहमद से भी उनकी मुलाक़ात करवाई। तय हुआ कि 18 अप्रैल को होसैन अली पाकिस्तान से अपना नाता तोड़ कर बांग्लादेश की सरकार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता ज़ाहिर कर देंगे।उशीनोर मजूमदार लिखते हैं, “दस बजे के आसपास कलकत्ता में बहुत ज़बरदस्त तूफ़ान आया जिसने न सिर्फ़ पार्क सर्कस मैदान के बहुत सारे पेड़ उखाड़ दिए बल्कि उस खंभे को भी गिरा दिया जिस पर उप- उच्चायोग में पाकिस्तानी झंडा लहरा रहा था. जैसे ही तूफ़ान थमा हौसैन अली और उनके कर्मचारी भवन में पहुंच गए. उनमें से एक शख़्स ने फ़्लैग पोल से पाकिस्तानी झंडा निकाल कर उसकी जगह बांग्लादेश का झंडा फहरा दिया.” वहाँ मौजूद बीएसएफ़ के लोगों ने भवन पर लगे पाकिस्तानी नेमप्लेट को हटा कर एक नया बोर्ड लगा दिया जिस पर लिखा हुआ था, ‘प्रजातांत्रिक बांग्लादेश गणतंत्र के उच्चायुक्त का दफ़्तर।
बीएसएफ़ ने उपलब्ध कराया रेडियो ट्रांसमीटर
पाकिस्तान ने बदले की कार्रवाई करते हुए ढाका में भारत का उप-उच्चायोग बंद करा दिया. इस ऑपरेशन में निदेशक रुस्तमजी, आईजी आपरेशन मेजर जनरल नरिंदर सिंह, आईजी इंटेलिजेंस पीआर राजगोपाल और आईजी पूर्वी क्षेत्र गोलक मजूमदार उप-उच्चायोग की सड़क पर भेष बदलकर खड़े थे।
27 मार्च 1971 को शाम 7 बजे मुक्ति बाहिनी के मेजर ज़िया-उर-रहमान ने कलूरघाट रेडियो स्टेशन से मुजीब की आज़ादी की उद्घोषणा को प्रसारित किया. तीन दिन बाद पाकिस्तान के युद्धक विमानों ने रेडियो स्टेशन पर बम गिराकर उसे ध्वस्त कर दिया। बीएसएफ़ के निदेशक रुस्तमजी ने बीएसएफ़ की टेकनपुर अकादमी से 200 वॉट का शॉर्ट वेव ट्रांसमीटर मँगवा लिया. लेफ़्टिनेंट कर्नल एके घोष ने अपनी बटालियन का पुराना रिकॉर्ड प्लेयर उपलब्ध कराया और ‘स्वाधीन बांग्ला बेतार केंद्र’ का प्रसारण शुरू हो गया।
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उशीनोर मजूमदार लिखते हैं, “बीएसएफ़ के सब-इंस्पेक्टर राम सिंह अकेले व्यक्ति थे जो दूसरे विश्व युद्ध के ज़माने के रेडियो ट्रांसमीटर को चलाना जानते थे. ये ट्रांसमीटर दिन में सिर्फ़ डेढ़ घंटे चल सकता था. इंजीनियरों और स्क्रिप्ट राइटर्स की टीम ने पाकिस्तान से लड़ाई लड़ रहे बांग्लादेश के लोगों के लिए कार्यक्रम प्रसारित करने शुरू कर दिए. शुरुआती दिनों में अख़बारों में छपी ख़बरें प्रसारित की जाती थीं.”
इसके बाद दुनिया के लोगों से बांग्लादेश के संघर्ष में मदद करने की अपील की जाती और नज़रुलगीति सुनवाए जाते. हर आधे घंटे बाद वो 10 मिनट का ब्रेक लेते क्योंकि पुराना ट्रांसमीटर ज़रूरत से ज़्यादा गर्म हो जाता. बीएसएफ़ के दो अफसरों डिप्टी कमांडेंट एसपी बनर्जी और सहायक कमांडेंट एमआर देशमुख को गुप्त रेडियो स्टेशन चलाने की ज़िम्मेदारी दी गई। इन लोगों को अगरतला के सर्किट हाउस में ठहराया गया और आने-जाने के लिए एक जीप दी गई. कुछ दिनों बाद इस रेडियो स्टेशन को पश्चिम बंगाल शिफ़्ट कर दिया गया जहाँ रॉ ने कलकत्ता पहुंचे पूर्वी पाकिस्तान के रेडियो कलाकारों की मदद से रेडियो कार्यक्रम बनवाने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली।
29 पुलों को ध्वस्त किया
सीमा सुरक्षा बल के इंजीनियरों और जवानों ने सुभापुर पुल को ध्वस्त करने में मुक्ति बाहिनी की मदद की. छह हफ़्तों में बीएसएफ़ ने पूर्वी पाकिस्तान के 29 सड़क और रेलवे पुलों को ज़मींदोज़ किया. इसका नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तानी सेना के जवानों को रसद पहुँचने में विलंब होने लगा. जब भी बीएसएफ़ के जवान पूर्वी पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश करते उन्हें अपनी वर्दी पहनने की इजाज़त नहीं होती।
वो न तो जंगल बूट पहन सकते थे और न ही भारत में निर्मित हथियार ले जा सकते थे. प्लाटून कमांडर रूपक रंजन मित्रा ने पूर्वी पाकिस्तान में ख़ुफ़िया तौर पर घुसने वाले बीएसएफ़ के जवानों को ट्रेन करना शुरू कर दिया. उशीनोर मजूमदार लिखते हैं, “उन्हें सिखाया गया कि किस तरह ‘अस्सलामवालेकुम’ कहकर अभिवादन किया जाता है. कुछ लोगों ने नमाज़ पढ़नी सीखी और पाँचों वक्त पढ़ी जाने वाली नमाज़ों के नाम याद किए. बीएसएफ़ के हिंदू जवानों ने अपने नाम बदले. मित्रा ने अपना नाम बदलकर तालिब हुसैन कर लिया. वो कैम्प में भी एक दूसरे को नए नामों से पुकारते ताकि वो इसके अभ्यस्त हो जाएँ.”उन्होंने पाकितानी सैनिकों को रात में अपनी बैरकों में रहने के लिए मजबूर कर दिया. जब भी वो रात में सड़कों पर गश्त करने निकलते उन पर गोलियाँ चलाई जातीं. कुछ दिनों बाद उन्होंने रात में बाहर निकलना ही बंद कर दिया।
बीएसएफ ने सुभापुर पुल को ध्वस्त किया
भारत ने मुक्ति बाहिनी को मदद देने का किया खंडनजब इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव परमेश्वर नारायण हक्सर ने अमेरिकी राष्ट्रपति के सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर से पाकिस्तान को अमेरिकी हथियार दिए जाने की शिकायत की तो उन्होंने उल्टे भारत पर बंगाली छापामारों को हथियार देने का आरोप मढ़ दिया लेकिन हक्सर ने इस बात का खंडन किया कि उन्होंने मुक्ति बाहिनी के छापामारों को कोई हथियार दिए हैं। हालाँकि ये सही नहीं था, श्रीनगर की चौकी पर सीमा सुरक्षा बल के जवानों की सहायता के लिए न सिर्फ़ 19 राजपूताना राइफ़ल्स की चार कंपनियाँ तैनात की गईं, छह तोपें और तीन इंच के मोर्टार की भी व्यवस्था की गई।
भारत ने तब भी और आज तक सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया है कि उसने मुक्ति बाहिनी के योद्धाओं की सहायता की थी. संवाददाता सिडनी शॉनबर्ग उस प्रशिक्षण शिविर तक पहुंचने में कामयाब हो गए जहाँ सीमा सुरक्षा बल के लोग मुक्ति बाहिनी के सैनिकों को ट्रेन कर रहे थे. उन्होंने भारत और पूर्वी पाकिस्तान सीमा पर चार दिन बिताए और पाकिस्तानी सीमा के अंदर भी घुसने में कामयाब रहे. उन्होंने 22 अप्रैल, 1971 के न्यूयॉर्क टाइम्स के अंक में ‘बंगालीज़ टु रिग्रुप देअर फ़ोरसेज़ फॉर गुरिला एक्शन’ शीर्षक से लेख लिखा था। इस रिपोर्ट में उन्होंने लिखा, “मैंने अपनी आँखों से देखा कि किस तरह सीमा सुरक्षा बल के लोग मुक्ति बाहिनी के लड़ाकों को प्रशिक्षण और हथियार दे रहे थे.”