नई दुल्हन के घर आने पर सास और महिलाओं के नृत्य करने की प्रथा भी हुई विलुप्त

बुन्देलखंड में लोक नृत्यों का लोक जीवन में बड़ा ही महत्व है। लोक नृत्य यहां के लोगों के हर्ष की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम भी है। जिससे व्यक्ति को लोक रुचि के आलम्ब प्राप्त होते है। मौनिया और दिवाली नृत्य की यहां बुन्देलखंड में धूम ही मचती है। ऐसी मान्यता है कि गोवर्द्धन पर्वत उठाते समय ग्वालों ने यह नृत्य किया था। ये नृत्य करने वाले मोर के पंख के मूठ हाथों में लिए रहते है। ये बड़ी जांघिया भी पहने रहते है।

बुन्देली लोक संस्कृति और लोक साहित्य की छाप आज भी लोगों में है। लोक संस्कृति की पहचान को शाश्वत बनाए रखने वाले लोक कवि इंशु के लोक गीत और फाग आज भी यहां की माटी में रचे बसे है। लोक संस्कृति व सामाजिक सद्भाव के अलावा विभिन्न आयोजनों में सभी की भागीदारी लोक परम्पराओं के प्रति निष्ठा से ओतप्रोत है। यहां दीपावली पर्व में मौन रखने वालों का हुजूम निकलता है। ग्रामीण इलाकों में लोक परम्पराओं को मौनिया, राई, सैरा आदि नृत्य विविध आयोजनों के समय देखते ही बनते है। लेकिन अब ये नृत्य अपनी पहचान खोते जा रहे है। यहां के साहित्यकार डाँ.भवानीदीन व पंडित दिनेश दुबे ने बताया कि तीन दशक पहले समूचे बुन्देलखंड में राई और सैरा नृत्य के साथ वर वधू के घर आने पर सास, जेठानी समेत घर की महिलाएं नृत्य करती थी। मगर अब ये नृत्य कही भी देखने को नहीं मिलता।

प्रमुख नृत्य है राई नृत्य

राई नृत्य बुन्देलखंड के लोक जीवन का प्रमुख नृत्य है। ये विशेष रूप से फागुन के महीने में होता है। इसमें प्रमुख रूप से फागें गाई जाती है। इसे बेडनी जाति की महिलाएं राई नृत्य करते हुए खेलती है। नृत्य करने वाली महिला सोलह कली का रंग बिरंगा घांघरा और चोली पहनने के साथ ही लाल रंग की चोली भी पहनती है। नृत्य करने वाली महिलाओं का चेहरा दिखता रहे इसके लिए दो लोग मशाल लिए नर्तकी के दोनों ओर रहते है। इसी कारण से इसे राई नृत्य कहा जाता है। इस नृत्य के साथ मृदंग भी बजाया जाता है।

ये परम्परा भी अब हो गई विलुप्त

बुन्देलखंड के ग्रामीण इलाकों में बहू के उतराई नृत्य शादी के बाद वर पक्ष के आने पर होता है। बेटे के साथ नई दुल्हन के घर आने पर पहले उनकी आरती उतारी जाती है फिर सास लक्ष्मी की प्रतीक बहू के पैर छूती है। इस रस्म को नई बहू की पाय लागन कहा जाता है। इसके बाद खुशी के मौके पर सास, देवरानी, जेठानी और बुआ नृत्य भी करती है। इसके अलावा चंगेल नृत्य भी बुन्देलखंड में प्रचलित है। शिशु के जन्म के समय बुआ चंगेल नृत्य करती है। कहीं-कहीं पर बुआ चंगेल को सिर पर रखकर नाचती है।

दिवाली पर हर हर गांव में होता है मौनिया नृत्य

मौनिया नृत्य दिवाली पर्व पर हर गांव में होता है। जिसमें नर्तक सिर्फ नृत्य करते है। नृत्य करने वाले मौन रहते है। मौन रहकर नृत्य करने की वजह से इसे मौैनिया नृत्य कहा जाता है। ये नृत्य भी देवोत्थान एकादशी तक बुन्देलखंड के गांवों में चलता है। मौनी लोग मौैन चराने के बाद पहले तो यमुना नदी में स्नान करते है फिर मौन चराते हुए खेत और जंगल में झुंड बनाकर नृत्य करते है। इसके अलावा बुन्देलखंड में रावला नृत्य भी होता है। एक नृत्य में एक पुरुष महिला का भेष धारण करता है तो दूसरा विदूषक बनता है। (एएमएपी)