डॉ. संतोष कुमार तिवारी ।
वर्ष 2016 की बात है। फेसबुक (Facebook) के संस्थापक मार्क जुकेरबर्ग (Mark Zuckerberg), गूगल (Google) के मुखिया सुन्दर पिचाई (Sundar Pichai) और रूसी अरबपति यूरी मिलनर (Yuri Milner) अमेरिका की सिलिकान वैली (Silicon Valley) में एकत्र हुए। उनका उद्देश्य था – भारत के विश्व विख्यात गणितज्ञ रामानुजन् के जीवन पर ब्रिटेन में बनी अंग्रेजी फिल्म The Man Who Knew Infinity को देखना। The Man Who Knew Infinity का मतलब होता है कि वह व्यक्ति जो अनंत के बारे में जानता था। फिल्म देखने के बाद सभी की आँखों में आंसू थे। वर्ष 2014 में बनी यह ब्रिटिश फिल्म और उसका हिन्दी रूपान्तर यूट्यूब (YouTube) पर उपलब्ध है। इस फिल्म को सितम्बर 2015 में कनाडा के टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भी प्रदर्शित किया गया था।
रामानुजन् एक अत्यन्त गरीब ब्राह्मण थे। वे शादी-शुदा थे। उनके सिर पर हमेशा गणित का भूत सवार रहता था। उनके घर में खाने के लाले पड़े थे। उनके पास कोई यूनिवर्सिटी डिग्री नहीं थी। उनकी अद्वितीय प्रतिभा को यदि कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जी. एच. हार्डी ने पहचाना न होता, तो आज दुनिया में कोई उनका नाम भी नहीं जानता।
रामानुजन् पर इस लेखक के तीन लेख पहले ही प्रकाशित हो चुके हैं। पहला लेख गीता सेवा ट्रस्ट की आनलाइन मासिक पत्रिका गीत-गोविंद के वर्ष 1 अंक 2 (नवम्बर 2022) में प्रकशित हुआ था – गरीब गणितज्ञ रामानुजन् को विश्व ख्याति कैसे मिली और दूसरा वर्ष 1 अंक 8 (मई 2023) में था – गणितज्ञ रामानुजन् के फार्मूले ब्लैकहोल के रहस्य खोलेंगे। गीत-गोविंद पत्रिका को Gita Seva App डाउन लोड करके फ्री में पढ़ा जा सकता है। रामानुजन् पर इस लेखक का एक लेख पांचजन्य, नई दिल्ली के 19 अप्रैल 2020 के अंक में भी प्रकशित हुआ था।
परन्तु प्रस्तुत लेख उन तीनों लेखों से अलग है। प्रस्तुत लेख में बताया गया है कि रामानुजन् एक ज्योतिषी भी थे। यही नहीं, उनकी माँ भी एक ज्योतिषी थीं। और दोनों की याददाश्त बहुत तेज थी, खास तौर से संख्याओं के बारे में। रामानुजन् के विश्वस्तरीय गणित-अनुसंधान पर नामगिरि देवी की सदैव विशेष कृपा रही। प्रस्तुत लेख में यह भी बताया गया है कि रामानुजन् की मृत्यु के 14 वर्ष बाद एक व्यक्ति ने उनकी आत्मा का आव्हान किया और उनसे बातचीत की। प्रस्तुत लेख प्रधानत: प्रोफेसर एस. आर. रंगनाथन (S.R. Ranganathan) की अंग्रेजी पुस्तक Ramanujan – The Man and The Mathematician पर आधारित है।
सन् 1920 में रामानुजन् का निधन मात्र 32 वर्ष और 4 माह की आयु में हो गया था। उसके तीन वर्ष बाद सन् 1923 में मद्रास यूनिवर्सिटी ने पहली बार उनकी जीवनी प्रकाशित करने की योजना बनाई। इस वास्ते एक समिति गठित की गई, जिसमें थे – यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर ई.एम. मैकफैल (E. M. MacPhail), मद्रास प्रेसीडेंसी कालेज के गणित के प्रोफेसर पी.वी. सेशु अय्यर (P. V. Seshu Aiyar), और मद्रास सरकार के शिक्षा सचिव आर. रामचन्द्र राव (R. Ramachandra Rao)। इनमें से रामचन्द्र राव ICS थे। ICS को अब IAS कहते हैं। ये तीनों लोग रामानुजन् को व्यक्तिगत तौर से बहुत अच्छी तरह जानते थे। प्रोफेसर पी.वी. सेशु अय्यर के सुझाव देने पर ही रामानुजन् ने कैम्ब्रिज के प्रोफेसर हार्डी को पत्र लिखा था। रामचन्द्र राव ने कुछ महीनों तक रामानुजन् की आर्थिक मदद की थी।
जब जीवनी प्रकाशित करने की योजना बनी, तब एस. आर. रंगनाथन प्रेसीडेंसी कालेज के गणित विभाग में एक जूनियर सदस्य थे। उनके कन्धों पर रामानुजन् की जीवनी लिखने का भार डाल दिया गया। बाद में उनके द्वारा तैयार प्रारूप को पूरी समिति के सामने मंजूरी के लिए रखा गया। समिति के सदस्यों द्वारा अन्तिम रूप से एक प्रारूप तैयार किया गया, जिसे कैम्ब्रिज यूनीवर्सिटी प्रेस, लन्दन द्वारा सन् 1927 में पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। इस पुस्तक का नाम था – Collected Papers of Srinivasa Ramanujan। यह पुस्तक प्रधानत: गणित विषय में रामानुजन् द्वारा किए कार्यों और शोध के बारे में थी। इसमें रामानुजन् के जीवन के बारे में बहुत थोड़ा सा ही जिक्र था। इसमें रामानुजन् के जीवन के बारे में मात्र दो लेख थे। उनमें से एक प्रोफेसर पी.वी. सेशु अय्यर (P. V. Seshu Aiyar), और मद्रास सरकार के शिक्षा सचिव आर. रामचन्द्र राव (R. Ramachandra Rao) ने लिखा था और दूसरा कैम्बिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हार्डी का था। प्रोफेसर हार्डी भी रामानुजन् को व्यक्तिगत तौर से बहुत अच्छी तरह जानते थे। रामानुजन् ने प्रोफेसर हार्डी के साथ कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में गणित में शोध कार्य किया था।
रामानुजन् पर नामगिरि देवी की असीम कृपा
अपने लेख में प्रोफेसर सेशु अय्यर और रामचन्द्र राव ने लिखा कि रामानुजन् के माता-पिता के कोई सन्तान नहीं थी। सन्तान प्राप्ति के लिए उनके नाना ने नामाक्कल की नामगिरि देवी के मन्दिर में प्रार्थना की थी, तब रामानुजन् का 22 दिसम्बर 1887 को इरोड जिले में उनके नाना के घर पर जन्म हुआ था। (Collected Papers of Srinivasa Ramanujan, पृष्ठ xi)
अपने लेख में सेशु अय्यर और रामचन्द्र राव ने लिखा:
रामानुजन् कहा करते थे कि नामाक्कल की नामगिरि देवी मुझे सपने में आकर गणित के नए नए फार्मूले बता जाती हैं। वही मैं जगाने पर एक नोटबुक में लिख देता हूँ। वही फार्मूले बाद में मैंने अन्य गणितज्ञों को भी बताए और प्रोफेसर हार्डी को भी भेजे। (Collected Papers of Srinivasa Ramanujan, पृष्ठ xii)
अपने लेख में सेशु अय्यर और रामचन्द्र राव ने आगे लिखा:
जब प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन् को अपने पास कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी बुलाया, तो उनकी मां ने विदेश यात्रा करने की अनुमति नहीं दी। उन दिनों विशेष तौर से ब्राह्मणों में विदेश यात्रा करने की मनाही थी। रामानुजन् अपनी मां की अनुमति के बिना कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी नहीं जा सकते थे।
फिर एक दिन अचानक एक दिन रामानुजन् को विदेश जाने के लिए उन्हें मां की अनुमति मिल गई। हुआ यह था कि रामानुजन् की मां ने एक रात सपने में देखा कि नामाक्कल की नामगिरि देवी यह कह रही हैं कि तुम अपने पुत्र की विदेश यात्रा में रोड़ा न डालो। उसे जाने दो। ऐसा सपना देखने पर रामानुजन् की मां ने तुरन्त नामगिरि देवी की बात मान ली। (Collected Papers of Srinivasa Ramanujan, पृष्ठ xvi) विदेश यात्रा से पहले रामानुजन् भी नामगिरि देवी के मन्दिर में उनसे आशीर्वाद लेने गए थे – ऐसा रामानुजन् की पत्नी ने एक इंटरव्यू में बताया था।
अपने लेख में प्रोफेसर सेशु अय्यर और रामचन्द्र राव ने लिखा कि
रामानुजन् एक धार्मिक व्यक्ति थे। पुराण, रामायण, महाभारत आदि पर प्रकाण्ड विद्वानों के प्रवचन सुनने वे जाते थे। उनकी ऐसी आस्था थी कि देवी की माध्यम से मनुष्य का ईश्वर से साक्षात्कार हो सकता है। जन्म, मृत्यु और मृत्यु के बाद की स्थितियों के बारे में उनकी निश्चित धार्मिक आस्था थी। (Collected Papers of Srinivasa Ramanujan, पृष्ठ xviii-xix)
इस सबके बाद 17 मार्च 1914 को रामानुजन् चेन्नई से ब्रिटेन की यात्रा पर रवाना हुए। समुद्री जहाज से ब्रिटेन पहुँचने में उन्हें लगभग एक महीना लगा। तब उनकी पत्नी जानकी अम्माल Janaki Ammal (1899-1994) की आयु 14 वर्ष थी। वे भारत में ही रहीं। रामानुजन् का विवाह सन् 1909 में हुआ था।
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एस. आर. रंगनाथन S.R. Ranganathan (1892-1972), जिनका जिक्र ऊपर हो चुका है और जो वर्ष 1923 में मद्रास प्रेसीडेंसी कालेज के गणित विभाग में एक जूनियर सदस्य थे, वे धीरे-धीरे भारत के एक जाने-माने शिक्षाविद् हो गए थे। उनके बारे में काफी जानकारियां इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। उन्होंने सन् 1927 में Collected Papers of Srinivasa Ramanujan के प्रकाशन के बाद भी रामानुजन् पर अपना शोध जारी रखा। वे चाहते थे कि रामानुजन् के जीवन पर एक विस्तृत पुस्तक प्रकाशित हो। इस कारण उन्होंने एक पुस्तक लिखी – Ramanujan – The Man and The Mathematician। इसका प्रकाशन 1967 में एशिया पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली ने किया। इस पुस्तक में उन्होंने ऐसे 17 लोगों के संस्मरण भी प्रकाशित किए जो रामानुजन् को व्यक्तिगत तौर से जानते थे या उनके समकालीन थे। इन 17 लोगों में से 4 ने रामानुजन् से जुड़े जिन दैवीय और परावैज्ञानिक अनुभवों का जिक्र किया है, वे विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन 4 लोगों के नाम हैं:
जानकी अम्माल Janaki Ammal (1899-1994): आप रामानुजन् की विधवा थीं।
जी.एन. नारायणस्वामी अय्यर G V Narayanaswamy Ayyar: आप एक जाने माने ज्योतिषी थे। और हिन्दू हाईस्कूल (ट्रिप्लीकेन) में अध्यापक थे। आपने इस हाई स्कूल में 33 वर्ष तक पढ़ाया और बाद में आप स्कूल के हेड मास्टर भी हो गए थे। आप कभी मद्रास में प्रोफेसर सेशु अय्यर के छात्र भी रहे थे।
न्यायमूर्ति एम. पातंजलि सास्त्री M. Patanjali Sastry (1889-1963): आप सन् 1951 से 1954 तक भारत के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे थे।
के. एस. कृष्णास्वामी अय्यंगर: आप मद्रास के एक जाने-माने एडवोकेट थे। बाद में आप सन् 1938 से 1944 मद्रास हाईकोर्ट के जज भी रहे थे।
इन चारों ने रामानुजन् के दैवीय और परावैज्ञानिक अनुभवों के बारे में क्या कहा
1.जानकी अम्माल: मेरे पति एक ज्योतिषी भी थे
जानकी अम्माल ने रंगनाथन को बताया:
मेरे पति को ज्योतिष की अच्छी जानकारी थी। उनके बहुत से रिश्तेदार और मित्र अपना भविष्य जानने के लिए उनके पास आते रहते थे। ये लोग विशेष तौर से किसी धार्मिक कार्य के लिए शुभ महूर्त जानने के लिए आते थे। उनके इंगलैण्ड जाने से पहले मैं यह सब घर में देखा करती थी। (Ramanujan: the Man and the Mathematician, पृष्ठ 91)
2.जी.एन. नारायणस्वामी अय्यर: रामानुजन् की मां भी ज्योतिषी थीं
रंगनाथन को नारायणस्वामी अय्यर ने बताया:
मार्च 1920 की बात है। एक वृद्ध महिला मेरे पास एक प्रोफेसर का पत्र लेकर आई थी। उसने एक व्यक्ति के भविष्य के बारे में कुछ जानना चाहा। मैंने उससे कहा कि उस व्यक्ति की जन्म कुण्डली दिखाओ। उस महिला को उस व्यक्ति की कुण्डली रटी हुई थी। वह मुझे वही सुनाने लगी। मैंने उससे पूछा कि तुम इसके बारे में क्या जानना चाहती हो? उसने कहा कि मैं यह जानना चाहती हूँ कि इसका जीवन कितने दिन का है?
मैंने थोड़ा विचार करने के बाद उससे कहा कि यह व्यक्ति विश्व विख्यात होगा और अगर उसको अपना जीवन काल बढ़ाना है तो उसे गुमनामी में रहना होगा। इसके बीच का कोई रास्ता मेरे समझ में नहीं आ रहा है।
मैंने उस महिला से पूछा कि इस व्यक्ति का नाम क्या है? तो उसने कहा रामानुजन्।
यह नाम सुन कर कुछ देर के लिए मैं सहम गया। मैंने उससे कहा कि यह बात रामानुजन् के किसी रिश्तेदार को मत बताना। तो उस महिला ने कहा कि मैं उस प्रतिभावान युवक की अभागी मां हूँ।
उस महिला ने मुझसे फिर यह कहा कि आप मुझसे कुछ छुपाइए नहीं। मुझे भी उसकी कुण्डली देख कर ऐसा ही लगता था। यह कह कर वह महिला रोने-सिसकने लगी।
यह सब सुन कर देख कर मैं भी चकरा गया। थोड़ा संभलने के बाद मैंने उससे कहा कि यदि आप अपने बेटे की पत्नी की कुण्डली मुझे दिखाएं, तो शायद कुछ और नतीजा निकले।
इस पर उस वृद्ध महिला ने बगैर किसी कागज को देखे रामानुजन् की पत्नी की कुण्डली मुझे ज़ुबानी सुना दी। तब मैंने उस पर विचार करके उससे यह कहा कि यदि रामानुजन् अपनी पत्नी से दूर रहे, तो उसकी आयु थोड़ी बढ़ सकती है।
तब उस महिला ने जवाब दिया कि मैं यह जानती हूँ। मैंने भी अपने बेटे को यही राय दी थी। वह मेरी बात हमेशा मानता रहा है। परन्तु इस मामले में वह मेरी बात नहीं मान रहा है।
बाद में रामानुजन् का निधन 26 अप्रैल 1920 को हो गया। (Ramanujan: the Man and the Mathematician पृष्ठ 13-15)
3.भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम. पातंजलि सास्त्री का अनुभव
न्यायमूर्ति एम. पातंजलि सास्त्री ने रंगनाथन को बताया:
रामानुजन् पचायाप्पा कालेज में मेरे जूनियर समकालीन थे। मेरा उनसे सीधा सम्पर्क बहुत ज्यादा नहीं था। वह मेरे रिश्ते के एक भाई एम. रामास्वामी के सहपाठी थे। मुझे याद है कि रामानुजन् एक बार हम सबको “7” की संख्या का महत्व बता रहे थे। रामानुजन् ने बताया कि हमारे पूर्वज “7” संख्या का महत्व जानते थे, जैसे कि सप्त ऋषि, सप्त दीप, आदि। रामानुजन् ने जो बताया वह मैं ज्यादा कुछ समझ नहीं पाया। (Ramanujan: the Man and the Mathematician पृष्ठ 71-72)
4.के. एस. कृष्णास्वामी अय्यंगर के घर पर रामानुजन् के मरणोपरान्त हुई घटना
रंगनाथन ने अपनी पुस्तक में वह वाकया लिखा जोकि रामानुजन् की मृत्यु के लगभग 14 वर्ष बाद उनके सामने ही हुआ। रंगनाथन ने लिखा:
यह सन् 1934 की बात है। मैं मद्रास के जाने-माने वकील कृष्णास्वामी अय्यंगर के यहाँ बैठा हुआ था। वहां एक ओझा के मार्फ़त रामानुजन् की आत्मा का आव्हान किया गया। मैंने उनकी आत्मा से पूछा कि क्या आप अब भी गणित पर कार्य कर रहे हैं? आत्मा ने उत्तर दिया, “नहीं, पृथ्वी के पार इस दुनिया में आने पर गणित में मेरी दिलचस्पी ख़त्म हो गई।”
तब मैंने पूछा कि आजकल कैसे अपना समय काटते हैं? आत्मा ने उत्तर दिया कि मैं ध्यान (Meditation) में अपना समय व्यतीत करता हूँ और विष्णु सहस्त्र-नाम पढ़ रहा हूँ।
तब मैंने रामानुजन् की आत्मा से पूछा कि आपकी तीसरी नोटबुक मद्रास यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में रखी हुई है। उसके कुछ ही पन्ने भरे हुए हैं। शेष खाली हैं। भरे हुए पन्नों में सारणीबद्ध तरीके से कुछ नम्बर लिखे हुए हैं, जो कि किसी के समझ में नहीं आ रहे हैं। क्या आप उन नम्बरों के बारे में कुछ बताएंगे?
रामानुजन् की आत्मा ने जवाब दिया कि मुझे इस बारे में कुछ याद नहीं आ रहा है। आप अगले सप्ताह आज ही के दिन और आज ही के समय उस नोटबुक को लेकर आइएगा। तब उसे देख कर शायद मुझे कुछ याद आ जाए।
फिर अगले हफ्ते उसी दिन और उसी समय कृष्णास्वामी अय्यंगर के घर पर रामानुजन् की तीसरी नोटबुक लाई गई। और रामानुजन् की आत्मा का पुन: आव्हान किया गया। तब रामानुजन् की आत्मा आई। उसने उस नोटबुक के पन्ने धीरे-धीरे पलटने को कहा। रामानुजन् की आत्मा ने कहा कि हां, अब मुझे याद आ रहा है कि सारणीबद्ध तरीके से लिखे गए ये नम्बर माक थीटा फंक्शन (Mock Theta Function) के बारे में हैं जिन पर मैं अपने अन्तिम समय में काम कर रहा था। (Ramanujan: the Man and the Mathematician पृष्ठ 16)
यह माक-थीटा फंक्शन (Mock Theta Function) वही है, जिसकी मदद से सन् 2012 में अमेरिका में गणित के प्रोफेसर केन उनो (Professor Ken Uno) ने अन्तरिक्ष के ब्लैकहोल का रहस्य खोलने का प्रयास किया।
इस अनंत अन्तरिक्ष में तमाम रहस्यमय ब्लैकहोल हैं। इनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति इतनी तेज होती है कि प्रकाश की किरणें भी इनके अन्दर समा जाती हैं। इससे यह कहना सही हो सकता है कि रामानुजन् अनंत (Infinity) को जानते थे। तभी तो उन पर सन् 2014 में जो ब्रिटिश फिल्म बनी उसका नाम था – The Man Who Knew Infinity।
( लेखक सेवानिवृत प्रोफेसर हैं)