अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर पर बाबर और अन्य मुगल शासकों से पहले हूणों और किरातों ने हमला किया था। हूण कौन थे? हूणों की उत्पत्ति और उनके आगमन को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। जो भी हो इसमें कोई संदेह नहीं कि हूण निहायत बर्बर हत्यारे और लुटेरे थे। हूण मूलरूप से मध्य एशिया की एक जंगली और बर्बर जाति के लोग थे। जो आपस में भी लड़ते रहते थे, 399 ईसवी के आसपास जब इनकी आबादी बढ़ गई तो ये दो भागों में बंट गए।

लाला सीताराम ने अपनी पुस्तक अयोध्या का इतिहास में इनके दो भागों में बंटने के बारे में लिखा है। इनका एक दल वोल्गा नदी की ओर गया और दूसरा आक्सस घाटी की ओर बढ़ा। दूसरा दल आगे बढ़ते हुए फारस में घुस गया और मारकाट मचाते यह लोग अफगानिस्तान तक आ गए। इसके बाद इन्होंने भारत आकर लूटपाट और हत्याएं शुरू कीं। वोल्गा नदी रूस की नदी है, जबकि आक्सस शब्द ग्रीक भाषा का शब्द है जिसे आमतौर पर अमूर दरिया बोलते हैं। भारत की सीमाएं तब अफगानिस्तान तक थीं और पैदल मार्ग से अफगानिस्तान से कश्मीर होते हुए भारत आना आसान था।

केसी ओझा की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ फॉरेन इन एनशिएंट इंडिया के अनुसार 458 ईसवी में भारत के अधिकांश हिस्सों पर गुप्त साम्राज्य के कुमार गुप्त का शासन था। समुद्रगुप्त जितना प्रभावशाली था, उसके उत्तराधिकारी उतने ही कमजोर साबित हुए। कुमार गुप्त के समय में ही भारत पर हूणों का आक्रमण हुआ और कुमार गुप्त ने स्कंदगुप्त को इन आक्रमणों को विफल करने की जिम्मेदारी सौंप दी। बर्बर हूण स्कंदगुप्त के हमलों से भाग खड़े हुए। इस विजय की स्मृति में उसने वर्तमान नई दिल्ली में विष्णु स्तंभ का निर्माण कराया। इतिहासकारों का एक वर्ग ऐसा है कि जो इसे ही वर्तमान का कुतुबमीनार बताता है।

वृहत्तर भारत पुस्तक में भगवत शरण उपाध्याय लिखते हैं कि स्कंदगुप्त जबतक जीवित रहा, हूण दुबारा भारत की तरफ देखने का साहस नहीं जुटा पाए। इसके बाद हूणों ने ईरान को तहस-नहस करना शुरू किया। दुर्भाग्य बस स्कंदगुप्त के बाद गुप्त साम्राज्य में शक्तिशाली राजाओं का अकाल पड़ गया। इसका फायद उठाते हुए हूणों ने लगभग 30 साल बाद 458 के आसपास फिर से भारत पर आक्रमण कर दिया। तोरमाण और मिहिरकुल के नेतृत्व में हूणों ने उत्तरी भारत पर कब्जा कर लिया। धीरे-धीरे हूणों की बर्बर सेना अयोध्या तक पहुुंच गई। हूणों ने मथुरा और तक्षशिला में उत्पात मचाया तो उत्तर प्रदेश के अनेक मंदिरों को तोड़ते हुए अयोध्या में राममंदिर पर हमला किया। भारी रक्तपात और जनहानि के बाद प्राचीन भव्य राममंदिर को हूणों ने पहली बार तोड़ डाला। एकबार फिर अयोध्या उजड़ गई।

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अयोध्या का इतिहास पुस्तक के मुताबिक पांचवी शताब्दी में अयोध्या उजड़ी हुई थी। जब विक्रमादित्य ने इसका जीर्णोद्धार कराना चाहा तो अयोध्या की सीमाओं का पता लगाना मुश्किल था, लेकिन धर्मग्रंथों में वर्णित सप्तपुरियों में अयोध्या सरयू के किनारे स्थित है, इसके अलावा नागेश्वरनाथ महादेव की मौजूदगी ने अयोध्या की पहचान कराने में विक्रमादित्य की मदद की।

इतिहासकार विंसेट स्मिथ कहते हैं कि भारत की जनश्रुतियों और कहानियों में जिस विक्रमादित्य का नाम बार-बार आता है वह कोई और नहीं चंद्रगुप्त द्वितीय थे। चंद्रगुप्त ने वैष्णव मंदिरों के जीर्णोद्धार का वीणा उठाया और हूणों द्वारा तहस-नहस की गई अयोध्या पुरी को फिर से आबाद किया। उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया। माना जाता है कि उस समय संसार का सबसे समृद्ध और भव्य मंदिर जो हुआ करते थे, उनमें श्रीराम जन्मभूमि पर स्थित राम मंदिर हुआ करता था। (एएमएपी)