– डॉ. मयंक चतुर्वेदी।

उत्तरप्रदेश के अभी हाल ही में एक खबर आई और देखते ही देखते देश के 80 प्रतिशत लोगों के चेहरे खिल उठे। भारत का बहुसंख्यक हिन्दू समाज लम्बे समय से यह मांग प्रशासन से कर रहा है कि आखिर देश में मुसलमानों की संख्या सिर्फ 15 प्रतिशत है तो बाकी की 85 फीसदी जनसंख्या को ‘हलाल’ के नाम पर सामान खरीदने के लिए क्‍यों मजबूर किया जा रहा है? यहां मांसाहार में ‘हलाल’ का होना उनकी मजहबी मान्यताओं के अनुसार समझ में आता है किंतु किसी भी कंपनी, संस्था या छोटे दुकानदार, वस्‍तु निर्माता को इसके लिए मजबूर नहीं किया जा सकता कि यदि उसने ‘हलाल’  सर्टिफिकेट नहीं लिया है तो उसके सामान को बाजार के चलन में नहीं आने दिया जाएगा।भला, यह कैसी मनमर्जी है ?  वास्‍तव में ‘हलाल’ प्रमाणपत्र के नाम पर ऐसा करनेवालों ने  उन तमाम नियमों को भी एक झटके में ताक में रख दिया है, जो भारत सरकार एवं राज्‍य सरकारों ने फूड प्रोसेसिंग, नागरिक खाद् सुरक्षा के लिए अनिवार्य किए हैं। इसलिए ही आज इस  गोरख धंधे को तुरन्त बंद कर देने की अवाज उठाई जा रही है । यह पूरा खेल हर कंपनी में ‘हलाल’ सर्टिफिकेट की आड़ में जबरन मुसलमानों को रोजगार दिलाने और एक अवैध समानान्‍तर अर्थव्‍यवस्‍था खड़ी कर लेने का है। जिससे कि आतंकवाद को पेाषित करने का संदेह भी सामने आता रहा है। यह बेवजह नहीं है, इसके पीछे भी ठोस प्रमाण मौजूद हैं।

हलाल प्रमाण पत्र बांट रही संस्‍थाएं इस तरह कर रहीं आतंकवाद को पोषित

मुंबई में हुए  26/11 के हमले के लिए अमेरिका के ‘हलाल’ प्रमाणित एक बूचड़ खाने से पैदा इकट्ठा किया गया था। इसका खुलासा तब हुआ जब इस आतंकी हमले की जांच के दौरान लश्‍कर-ए-तौइबा के दो आतंकयों डेविड हेडली (दाऊद गिलानी) और तहव्‍वुर राणा को गिरफ्तार किया गया। भारत में आतंकवादियों को कानूनी सहायता मुहैया कराने में ‘हलाल’ सर्टिफिकेट से होनेवाली आय का उपयोग कैसे किया जा रहा है, इसका यह प्रमाण देखिए, जमीयत उलेमा ए-हिंद हलाल ट्रस्ट दिल्ली कई केसों में आतंकवादियों को जेल से छुड़ाने के लिए काम कर रहा है। जर्मन बेकरी ब्लास्ट केस (मिर्जा हिमायत बेग बनाम महाराष्ट्र सरकार) – फरवरी 2010 में पुणे के जर्मन बेकरी ब्लास्ट में 17 लोगों की हत्या और 64 लोग घायल हुए थे। इस आतंकी हमले का दोषी इंडियन मुजाहिद्दीन का आतंकी मिर्जा हिमायत बेग था। पुणे की सेशन कोर्ट के स्पेशल जज एन. पी. धोते ने 18 अप्रैल, 2013 को बेग को फांसी की सजा सुनाई थी। इसे कानूनी सपोर्ट यही जमीयत उलेमा ए-हिंद हलाल ट्रस्ट मुहैया कराती रही है।

यह एक दूसरा केस है, (अब्दुल रहमान बनाम कर्नाटक सरकार), अब्दुल रहमान ने रावलपिंडी में लश्कर-ए-तोइबा के आतंकी कैंप में प्रशिक्षण लिया था। साल 2004 में वह अवैध तरीके से मुंबई आया और मस्जिदों में मुसलमानों को जिहाद के नाम पर भारत के खिलाफ लड़ने के लिए उकसाता था। इसी तरह से पलारीवत्तम आईएसआईएस केस (अर्शी कुरेशी एवं अन्य बनाम केरल सरकार) यह केस फिलहाल एनआईए के अधीन है। इसके अंतर्गत केरल के रहने वाले बेस्टिन विन्सेंट ने इस्लाम धर्म अपनाकर अपना नया नाम याह्या रख लिया था। याह्या साल 2017 में आईएसआईएस में शामिल होने के लिए अफगानिस्तान भाग गया था। या फिर यह जयपुर का आईएसआई केस (सिराजुद्दीन बनाम राजस्थान सरकार) देखलीजिए, जिसमें कि मूलत: गुलबर्ग, कर्नाटक का रहने वाला मोहम्मद सिराजुद्दीन जयपुर में आईएसआईएस के लिए भर्ती का काम देखता था। वहीं,  26/11 मुंबई ब्लास्ट (सईद जबूद्दीन बनाम महाराष्ट्र सरकार ) – सईद जबूद्दीन का सम्बन्ध इंडियन मुजाहिद्दीन और लश्कर ए-तोइबा से है।

आतंकवादियों को कराए जा रहे महंगे वकील उपलब्‍ध

वस्‍तुत:  जमीयत उलेमा ए-हिंद हलाल ट्रस्ट दिल्ली द्वारा आतंकियों को महंगे वकील एवं अन्‍य कानूनी सहायता के मामले यहीं नहीं रुकते दिखते, 2011 पुणे ब्लास्ट (असद खान और अन्य बनाम महाराष्ट्र एटीएस)- पुणे की जेएम रोड आतंकी हमले में इंडियन मुजाहिद्दीन का आतंकी असद खान मुख्य आरोपी है। इंडियन मुजाहिद्दीन केस (अफजल उस्मानी बनाम महाराष्ट्र एटीएस) – अफजल उस्मानी अहमदाबाद के 2008 आतंकी हमलें का आरोपी था। साल 2013 में वह नेपाल भागने की कोशिश में था लेकिन उससे पहले ही महाराष्ट्र एटीएस ने उसे उत्तर प्रदेश से गिरफ्तार कर लिया था।

2010 बैंगलुरु ब्लास्ट (कतील सिद्दीकी बनाम कर्नाटक सरकार) – बैंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम पर हुए आतंकी हमले के मुख्य आरोपी यासीन भटकल के साथ जिसमें इंडियन मुजाहिद्दीन का ओपरेटिव कतील सिद्दीकी भी शामिल था। यासीन भटकल यह इंडियन मुजाहिद्दीन का आतंकी है जोकि एनआईए की मोस्ट वांटेड लिस्ट में शामिल था। यासीन को 2013 में बिहार के मोतिहारी से गिरफ्तार किया गया था। यह 2008 अहमदाबाद ब्लास्ट, 2010 बेंगलुरु ब्लास्ट, और 2012 पुणे ब्लास्ट का मुख्य आरोपी है। जब आप खोजने जाते हैं तो इस प्रकार के अनेक प्रकरण सामने आते हैं, जिनमें कि जमीयत उलेमा ए-हिंद हलाल ट्रस्ट दिल्ली जैसी हलाल प्रमाणपत्र देनेवाली संस्‍थाएं इन आतंकियों को तमाम कानूनी सहायता उलब्‍ध कराने के साथ ही किसी न किसी रूप में आर्थ‍िक सहायता मुहैया कराती हुई दिखाई पड़ती हैं।

विश्‍व के कई देशों में सामने आया, हलाल इकोनॉमी कैसे बनी आतंकी संगठनों की सहायक

भारत के अलावा दूसरे गैर-मुस्लिम देशों में भी ‘हलाल प्रमाणन’ और आतंकवादियों के आपसी संबंधों का खुलासा बहुत बड़े स्‍तर पर हो ही चुका है। इसमें पश्चिम और यूरोप के कई देश शामिल हैं, जैसे फ्रांस में ‘हलाल’ खाद्य सामग्री का 60 प्रतिशत कारोबार उन संस्थाओं द्वारा किया किया है जिनका कि मुस्‍लिम ब्रदरहुड से संबंध है। इसी तरह से कनाडा की ‘हलाल’ प्रमाण संस्‍था मुस्‍लिम एसोसिएशन पर आतंकी संगठन ‘हमास’ को वित्तिय सहायता उपलब्‍ध कराने के आरोप जगजाहिर हैं। फिलिस्‍तीनी  इस्‍लामिक जिहाद का मुख्‍य आतंकी समी-अल-एरियन इस्‍लामिक सोसायटी ऑफ नॉर्थ अमेरिका का संस्‍थापक सदस्‍य था, जिसने ‘हमास’ को कई मिलियन अमेरिकन डॉलर भेजे थे। ऐसे ही अनेक साक्ष्‍य आज आपको मौजूद मिल जाते हैं, जो यह पुख्‍ता करने के लिए पर्याप्‍त हैं कि कैसे ‘हलाल’ सर्टिफिकेट के नाम पर इकट्ठी की गई राशि का उपयोग आतंकवाद और गैर इस्‍लामिक लोगों को मारने, उनको धमकाने और इस्‍लाम के कन्‍वर्जन में किया जाता है।

हलाल प्रमाणपत्र नहीं है सिर्फ मीट प्रॉडक्‍ट तक सीमित, इतनी गहरी हैं इसकी जड़ें

इसके अन्‍य आर्थ‍िक पक्ष को देखें तो हलाल प्रमाणपत्र को लेकर जो गहरे से समझनेवाली बात है वह यह कि सिर्फ मीट प्रॉडक्ट तक सीमित नहीं, बल्कि स्नेक्स, मिठाइयों, अनाज, तेल, कॉस्मेटिक्स, साबून, शैम्पू, टूथपेस्ट, नेल पॉलिश, लिपस्टिक, चश्मा, जैसे तमाम उत्पादों के लिए भी अनिवार्य किया गया जबकि  एक भारतीय नागरिक के तौर पर कोई भी व्यक्ति उद्योग-व्यापार उसी तरह कर सकता है, जैसे देश के अन्य आम नागरिक करते हैं, नियमों के स्‍तर पर इस्लाम को माननेवालों को अलग से कोई छूट नहीं है, फिर इस हलाल सर्टिफिकेट की मजहबी आड़ में एक वर्ग विशेष में अनर्गल प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है कि ऐसे उत्पाद का प्रयोग न करें, जिसे इनकी कंपनी द्वारा हलाल प्रमाणपत्र न दिया गया हो। परिणामस्वरुप दूसरे समुदाय विशेष के व्यावसायिक हितों का नुकसान भी हो रहा है ।

आश्‍चर्य होता है यह इनकी हिम्मत देखकर, देश में संवैधानिक नियम-कानूनों की खुलेआम ये धज्जियां उड़ा रहे हैं और अभी भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को छोड़कर कोई अन्य मुख्यमंत्री या राज्य शासन यह साहस नहीं दिखा सका है कि गलत को गलत ही कह पाए!  वस्‍तुत: जो कानून को न मानें, उसे कानून के नियमों का भी ज्ञान हर तरीके से कराया जाना चाहिए।

उत्‍तरप्रदेश जाग गया, अब आपकी जागने की बारी

उत्तरप्रदेश की समझ जो देशहित में जागरुकता को लेकर चल रही है, उस सोच को आज बहुत प्रणाम है। इस हलाल सर्टिफिकेट के विरोध में कोई खुलकर सामने आया और पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने पहुंचा तो वह उत्तरप्रदेश ही है। शिकायतकर्ता ने  हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड चेन्नई, जमीयत उलेमा हिंद हलाल ट्रस्ट दिल्ली, हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया मुंबई, जमीयत उलेमा महाराष्ट्र मुंबई, इन्हें एफआईआर में नामजद कर इनके ऊपर अनेक आरोप लगाए हैं। यहां स्‍पष्‍ट किया गया है कैसे एक धर्म विशेष के ग्राहकों को मजहब के नाम से उत्पादों पर हलाल प्रमाणपत्र की अनवार्यता लगाई गई है। जिन्‍हें लाभ पहुंचाना है, उनकी  ब्रिकी बढ़ाने के लिए इस तरह से कैसे-कैसे अवैध कारोबार चलाया जा रहे हैं ।  इसमें समाज में विद्वेष फैलाने, आपराधिक कृत्य करके करोड़ों रुपए कमाने, राष्ट्र विरोधी साजिश रचने के साथ हलाल सर्टिफिकेट से मिल रहे पैसे से आतंकियों को फंडिंग होने की आशंका जताई गई है।

वस्‍तुत: यह एफआईआर तर्कों के साथ यह भी स्पष्ट करती है कि तेल, साबुन, टूथपेस्ट, शहद आदि तक के लिए हलाल सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि शाकाहारी वस्तुओं के लिए हलाल सर्टिफिकेट की आवश्कयता कभी  होती नहीं। इसलिए ही यूपी की योगी सरकार ने केस दर्ज होने के बाद हलाल के बजाय भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण  (एफएसएसएआई) के जारी किए गए प्रमाण पत्र को मानकों के लिए उचित बताया है और साफ तौर पर बताया भी कि कैसे हलाल प्रमाण पत्र भारतीय संविधान और कानून की खुले तौर पर धज्जियां उड़ा रहा है।

हलाल प्रमाण पत्र यानी गैर-मुस्लिमों के मूल अधिकारों का हनन

यही कारण है कि उच्‍चतम न्‍यायालय में भी इसे चुनौती देने का काम पिछले साल हुआ है । कंज्यूमर प्रॉडक्ट्स के हलाल सर्टिफिकेशन को लेकर साफ मांग सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका के माध्‍यम से यही की गई कि यह सर्टिफिकेट निजी संस्थाएं जारी करती हैं इसलिए इस पर पाबंदी लगनी चाहिए। अधिवक्ता विभोर आनंद की याचिका में कहा गया है कि देश के 15 प्रतिशत लोगों के लिए 85 प्रतिशत आबादी को उनकी इच्छा के विरुद्ध हलाल प्रमाणित वस्तुओं के इस्तेमाल के लिए मजबूर किया जाना, निश्‍चित ही ये गैर-मुस्लिमों के मूल अधिकारों का हनन है।  एक धर्म निरपेक्ष देश में किसी एक धर्म की मान्यताओं और विश्वास को दूसरे धर्म पर थोपा नहीं जा सकता।

हलाल सर्टिफिकेट से हो रहा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का हनन

संविधानिक दृष्टि से भी देखें तो यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों का सीधा हनन है । भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में साफ कहा गया है कि ”राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या भारत के क्षेत्र में कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।” नैसर्गिक न्याय और कानून का शासन का सिद्धांत अनुच्छेद 14 से निकलकर आता है। और यह अनुच्छेद ‘आधारभूत ढांचे’ में भी है। जबकि यहां 15 प्रतिशत आबादी की खातिर बाकी 85 प्रतिशत लोगों को उनकी इच्छा के विरुद्ध हलाल उत्पादों का उपभोग करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

यहां अनुच्‍छेद 21 का आशय है कि राज्य प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार को कानूनी आधार पर रोक सकता है । अर्थात कानून की वैधता एवं उसकी व्यवस्था पर अकारण, अन्यायपूर्ण आधार पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता । अब मेकडॉनल्‍ड जैसे ब्राण्‍ड को ही देखलीजिए, अधिकांश व्यवसायों ने हलाल और गैर-हलाल मांस के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं को बनाए रखने की लागत को बचाने के लिए अब केवल हलाल मांस परोसना शुरू कर दिया है और जो लोग हलाल मांस के साथ सहज नहीं हैं, या किसी धर्म वाले लोगों के लिए, जहां केवल झटका मीट की इजाजत है, उनके लिए हलाल प्रोडक्ट चुनने के अलावा और कोई विकल्प यहां नहीं होता है।

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आईएसआई और एफएसएसएआई को नकारता है ये हलाल प्रमाणपत्र

हलाल प्रमाणपत्र को लेकर यह भी स्‍पष्‍ट हो जाता है कि  जमीयत उलमा-ए-हिंद और कुछ अन्य वैसे ही निजी संगठनों द्वारा हलाल प्रमाणीकरण की स्वीकृति का मतलब है कि उपभोक्ता उत्पादों पर आईएसआई और एफएसएसएआई जैसे मौजूदा सरकारी प्रमाणीकरण पर्याप्त नहीं हैं या यह मुस्‍लिम संगठन सरकारी मान्‍यता को नहीं मानते।  यानी कि अप्रत्‍यक्ष रूप से ये सभी केंद्र और राज्‍य की शक्‍तियों को भी खुलकर चुनौती दे रहे हैं ।  अत: हलाल प्रमाणपत्र बांट रहे इस्‍लामिक संगठन आज यह बता रहे हैं कि वे राज्‍य एवं केंद्र स्‍तर पर बने किसी भी नियम को वे नहीं मानते । इसलिए यूपी सरकार के प्रतिबंध आदेश को सभी राज्‍य सरकारों को गौर देकर पढ़ना चाहिए।

अच्‍छा हो कि इस आदेश से प्रेरणा लेकर वे भी अपने यहां हलाल प्रमाण पत्र पर रोक लगाने के लिए आगे आएं। यदि वह ऐसा करेंगी तो वास्‍तव में सभी राज्‍य सरकारें भारतीय संविधान में वर्णित अनुच्‍छेद 14 और 21 का ही पालन करेंगी, और फिर यह तो हम सभी जानते हैं कि संविधान में पालन में ही संप्रभु राष्ट्र भारत का और उसके एक नागरिक होने के नाते हम सभी का रक्षण है। जिसे किया जाना प्रत्‍येक सरकार का विधि सम्‍मत कार्य भी है। इस मामले में उत्‍तरप्रदेश को जो करना था वह उसने कर दिखाया, अब बारी अन्‍य राज्‍यों और केंद्र सरकार की है।