– डॉ. मयंक चतुर्वेदी।

इस्‍लाम प्रेम और भाईचारे का मजहब है ! फिर बात इस्‍लाम के हिंसक होने की सामने आती है, तब उसके समर्थन में कई लोग खड़े  दिखाई देते हैं, जोकि जोर-जोर से चिल्‍लाते हैं,  ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना।’ किंतु यह क्‍या ? यही इस्‍लाम व्‍यक्‍ति की मौलिकता और स्‍वतंत्र विचारों पर इस तरह रोक लगा रहा है कि उसके सोचने-समझने की शक्‍ति ही कुंद हो रही है। मजहबी उन्‍माद की हद यह है कि भारत में भी इस्लामी कट्टरपंथी अक्सर ‘गुस्ताख-ए-रसूल की एक ही साजा, सर तन से जुदा… सर तन से जुदा’ के नारे लगाते दिखते हैं। ये कट्टरपंथी सिर्फ नारे ही नहीं लगा रहे, बल्कि हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं। एक बार फिर प्रयागराज में घटी घटना ने वह बीता हुआ कल याद दिला दिया, जिसमें अनेक कत्‍ल सिर्फ इसलिए कर दिए गए क्‍योंकि सामनेवाले का विश्‍वास न इस्‍लाम में था और न हीं इस्‍लाम का प्रचार करनेवाले पैगम्‍बर मुहम्‍मद और कुरान में ।

 

देखा जाए तो आज न सिर्फ भारत को बल्‍कि पूरी दुनिया को इन कत्लों ने हिलाकर रख दिया है। आश्‍चर्य होता है यह देखकर कि जो मुल्‍ला और मौलवी रात-दिन इस्‍लाम को प्रेम, भाइचारे का मजहब बताते हैं, वे इस तरह के कत्‍लों पर मौन हैं, जैसे कि उनकी भी इस जघन्‍य अपराध में गुपचुप स्‍वीकृति हो!  प्रयागराज में टिकट किराए को लेकर हुए विवाद में एक इंजीनियंरिग के छात्र लारेब हाशमी ने बस कंडक्टर हरिकेश विश्‍वकर्मा पर चाकू से हमला कर दिया है। उसकी गर्दन और शरीर के अन्य हिस्सों पर गंभीर चोटें आईं और वह इस वक्‍त अस्पताल में अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहा है ।

यह इस्‍लामिक कट्टरपंथी  लारेब हाशमी यहीं नहीं रुका, उसने एक  सनसनीखेज वीडियो तैयार किया और उसे सोशल मीडिया पर भी डाला। कहा – अमुक व्‍यक्‍ति इस्‍लाम और मुहम्‍मद साहब को लेकर अनर्गल बोला, इसलिए मैंने उसे चाकू से मारा! हाशमी अपने बनाए वीडियो में बार-बार यही बता रहा है, बस कंडक्टर ने “पैगंबर मुहम्मद का अपमान” किया था । वीडियो में वह उस चाकू को भी लहराते हुए नजर आ रहा है। जिससे उसने कंडक्टर को काटा था।

थोड़ी देर के लिए सोचिए, हम कौन से समाज में रह रहे हैं ? क्‍या भारत में ‘तालिबानी’ या ‘हमास’ जैसे आतंकवादियों का शासन है, जिसमें आप जब चाहे जिसकी हत्‍या अपनी सुविधानुसार कर देते हैं? लारेब हाशमी कोई दूध पीता बच्‍चा नहीं, जिसे पता नहीं, वह क्‍या कर रहा है? न ही वह अनपढ़-गँवार है, जिसे रटाया गया हो कि सिर्फ यही सत्‍य है, जो बताया गया। लारेब हाशमी इंजीनियरिंग के फर्स्ट ईयर का छात्र है और बीटेक कर रहा है।  वीडियो में हाशमी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ के बारे में वह सब बोलता देखा जा सकता है जोकि यह बताने के लिए पर्याप्‍त है कि भारत में इन जैसे इस्‍लामिक कट्टरपंथी देश के प्रधानमंत्री और यूपी के सीएम के लिए कितनी नफरत भरी सोच रखते हैं।

इस वर्ष गोरखपुर मंदिर पर हमला करनेवाला अहमद मुर्तजा अब्बासी को आप याद करें। आईआईटी बॉम्बे से केमिकल इंजीनियरिंग में डिग्री ली। उसे इस्‍लाम भारत में खतरे में दिखा, जिसके लिए वह गोरखपुर मंदिर को अपना निशाना बनाता है। हमें याद रखना चाहिए कि 1991 में भारतीय संसद पर हमले को अंजाम देने वाला अफजल गुरु झेलम वेली मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस पास था । जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी मो. मसूर असगर ने जुलाई 2008 में अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट को अंजाम दिया था। उसने पुणे के विश्वकर्मा इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की ।

रियाज भटकल इंडियन मुजाहिदीन का सहसंस्थापक है। जयपुर, बैंगलोर, अहमदाबाद, 2006 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट, 2007 के हैदराबाद ब्लास्ट और 2008 के दिल्ली ब्लास्ट में इसका हाथ था। आतंकी बनने से पहले रियाज इंजीनियर था। इसी तरह से 1993 मुंबई बम कांड में दोषी पाए जाने के बाद फांसी की सजा पाने वाला याकूब मेमन चार्टर्ड अकाउंटेंट था। उसने द इंस्टिट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया से यह डिग्री हासिल की थी ।

वास्‍तव में आज भारत में ऐसे सेकड़ों आतंकियों के नाम गिनाए जा सकते हैं, जोकि एक मजहब विशेष से हैं। ऐसे लोगों पर शिक्षा का कोई असर नहीं होता । देश में ऐसे पढ़े-लिखों की एक लम्‍बी लिस्‍ट है, जोकि आतंक के साथ खड़े दिखते हैं । वे खुले तौर पर हमला करते वक्‍त लारेब हाशमी की तरह ही नारा-ए-तकबीर, अल्ला हू अकबर चिल्‍लाते हैं और सामनेवाले को मौत के घाट उतार देते हैं। प्रश्‍न यह है कि ये पढ़े लिखे मजहबी आतंकी आखिर करना क्‍या चाहते हैं और क्‍यों ?

सोचनेवाली बात है कि अमन चैन के मजहबी लोगों में (जैसा कि ये स्‍वयं को बताते हैं) यह नफरत भरी सोच आती कहां से है? इनके अनुसार इस्‍लाम में तो कुछ ऐसा है नहीं! वस्‍तुत: जब भारतीय समाज में इस तरह की घटनाएं घटती हैं, तब यह विश्‍वास और दृढ़ होता है कि जो लोग यह कहते हैं कि ”मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना” वह झूठ बोल रहे हैं। ये मजहबी लोग कहना चाहिए कि ऐसे कट्टरपंथी इस्लामिक लोग दूसरे की आलोचना करने को तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहते हैं और अपने लिए हर तरह से दूसरे की खिल्‍ली उड़ाने के लिए स्‍वतंत्रता चाहते हैं। जब इनके इस्लाम, कुरान और उसके पैगंबर पर कोई कुछ प्रश्‍न खड़े कर दे तो किसी भी आलोचना या प्रतिक्रिया को बर्दाश्त नहीं कर पाते ।  यह भूल जाते हैं कि भारत में लोकतंत्र का शासन है और अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता। इतिहास ऐसे कई उदाहरणों से भरा पड़ा है, जिसमें ईशनिंदा के नाम पर इन्‍होंने कई लोगों को मौत के घाट उतारा है।

भारत के लिए और पूरी दुनिया के लिए विशेषकर जो इस्‍लाम को नहीं मानते आज यह एक बड़ी गंभीर चिंता का विषय है कि कैसे इन कट्टर मजहबियों ने अपनी रक्षा करें? जिनके लिए मौलिकता और अभिव्‍यक्‍ति का कोई मूल्‍य नहीं ।  जिनके लिए मजहबी मतान्‍धता ही सबसे ऊपर है और मानव मूल्‍यों का इनसे दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे में अब इन्‍हीं के मज़हबी शिक्षादार मुल्‍ला और मौलवियों से ही गुजारिश की जा सकती है, वे जिस उत्‍साह से इस्‍लाम को प्रेम और भाईचारे का मजहब बताते नहीं थकते, कृपया वे उसी शिद्दत से अपने मजहबी लोगों को बताएं कि ये दूसरे मत, पंथ या धर्म के व्‍यक्‍ति को ईशनिंदा या कुरान, मुहम्‍मद के नाम पर कत्‍ल कर रहे हैं, उनका मजहब ऐसा करने की कोई इजाजत नहीं देता। यदि ये मुल्‍ला-मौलवी ऐसा बोलने की हिम्‍मत दिखाते हैं तो सच में यह मानवता की बड़ी सेवा होगी। अन्‍यथा तो यही माना जाएगा कि पूरे इस्‍लाम में विचारों की कोई स्‍वतंत्रता नहीं और मानवता के लिए कोई जगह नहीं है!