आपका अखबार ब्यूरो।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के तेवर भाजपा और जनता दल यूनाइटेड की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। नीतीश कुमार भाजपा से नाराजगी जताने का कोई मौका छोड़ नहीं रहे। उन्होंने भाजपा का नाम लिए बिना कहा कि सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ प्रचार हो रहा है। इन बातों के जरिए वे भाजपा नेतृत्व पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी पार्टी ने अरुणाचल प्रदेश में जनता दल यूनाइटेड के छह विधायकों को तोड़ने की भाजपा की कार्रवाई पर भी एतराज जताया।
दूसरी बार बोले, मुख्यमंत्री नहीं रहना चाहता
नीतीश कुमार ने पिछले डेढ़ महीने में रविवार को दूसरी बार कहा कि वे मुख्यमंत्री नहीं रहना चाहते। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन जिसे चाहे मुख्यमंत्री बना दे। भाजपा अपना मुख्यमंत्री बना ले। नीतीश कुमार ने कहा कि चुनाव नतीजे के बाद ही उन्होंने कह दिया था कि वे मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते। पर उन पर दबाव डाला गया। मुख्यमंत्री पद पर बने रहने की अनिच्छा जाहिर करते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री का पद नहीं रविवार को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ दिया। उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में राज्यसभा सदस्य और पूर्व नौकरशाह आरसीपी सिंह को जनता दल यूनाइटेड का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की घोषणा की।
कठिन हो रहा था दो जिम्मेदारियां संभालना
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बेचैनी कम नहीं हो रही है। इस चुनाव में उनकी पार्टी भाजपा से छोटी पार्टी हो गई है। तब से वे ऐसा जता रहे हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री रहने में कोई रुचि नहीं है। आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की घोषणा करने के बाद उन्होंने कहा कि उन्हें दो जिम्मेदारियां संभालना कठिन हो रहा था। आरसीपी सिंह को अध्यक्ष बनाकर एक तरह से अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। नये अध्यक्ष भी नीतीश कुमार की कुर्मी जाति से हैं।
आरसीपी नीतीश के विश्वासपात्र
आरसीपी पूर्व आईएएस अधिकारी हैं। उन्होंने साल 2010 में प्रशासनिक सेवा से स्वैच्छिक अवकाश ले लिया। पार्टी में आते ही नीतीश कुमार ने उन्हें राज्यसभा में भेज दिया। वे राज्यसभा में पार्टी के नेता हैं। आरसीपी कोई जनाधार वाले नेता नहीं हैं। उनकी राजनीतिक शक्ति नीतीश कुमार के विश्वासपात्र होने से आती है। आरसीपी और राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को पार्टी में नम्बर दो की हैसियत से देखा जाता था। ललन सिंह सवर्ण होने के नाते पिछड़ गए। आरसीपी ने प्रशांत किशोर को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने का विरोध किया था। पर उस समय नीतीश कुमार ने उनकी नहीं सुनी। ऐसा माना जाता है कि आरएलएसपी नेता उपेन्द्र कुशवाहा की जनता दल यूनाइटेड में वापसी को भी आरसीपी ने ही रोक रखा है। कुशवाहा की जाति (कोयरी) के लोगों की संख्या कुर्मियों से ज्यादा है। इन दोनों जातियों को बिहार में लव-कुश कहा जाता है। आरसीपी को डर है कि कुशवाहा पार्टी में आए तो नीतीश कुमार के बाद वे पार्टी पर कब्जा कर सकते हैं।