हम भारत के लोगों को परम सुखी तभी कर सकते हैं जब उनका बौद्धिक स्तर सुधरेगा : प्रेमानंद महाराज
सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने पूज्य प्रेमानंद जी महाराज से भेंट कर उनका आशीर्वचन प्राप्त किया। सुनिए महाराज जी के साथ हुआ संवाद। pic.twitter.com/mhNBPE1eBK
— Friends of RSS (@friendsofrss) November 29, 2023
इसके बाद अपने आशीर्वचन में प्रेमानंदजी महाराज ने कहा कि अपने लोगों का जन्म सिर्फ सेवा के लिए हुआ है। इसके दो पक्ष हैं। व्यवहारिकी और आध्यात्म की सेवा। यह दोनों सेवाएं अति अनिवार्य हैं। उन्होंने कहा कि हम भारत के लोगों को परम सुखी करना चाहते हैं, तो सिर्फ वस्तु और व्यवस्था से नहीं कर सकते हैं, उनका बौद्धिक स्तर सुधरना चाहिए।
समाज का बौद्धिक स्तर गिरता चला जा रहा
प्रेमानंदजी महाराज ने कहा आज हमारे समाज का बौद्धिक स्तर गिरता चला जा रहा है, यह बहुत चिंता का विषय है। हम सुविधाएं दे देंगे, विविध प्रकार की भोग सामग्रियां दे देंगे, पर उनके हृदय की जो मलीनता है, हिंसात्मक प्रवृत्ति है, जो अपवित्र बुद्धि है, ये जब तक ठीक नहीं होगी, तब तक चीजें नहीं बदलेंगी। उन्होंने कहा कि हमारा देश धार्मिक देश है। यहां धर्म की प्रधानता है। इसी बात को लेकर बार-बार निवेदन करता हूं। हमारी नई पीढ़ी से ही हमारे राष्ट्र की रक्षा करने वाले प्रगट होते हैं। जो विद्यार्थीजन हैं, उसी में से कोई एमएलए बनेगा, कोई सांसद बनेगा, कोई मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति बनेगा, हमलोग भी उसी में से हैं।
पहले बुद्धि का शुद्धीकरण करें
उन्होंने शिक्षा की आधुनिक स्वरूप पर चिंता जताते हुए कहा कि उसके कारण व्यभिचार, व्यसन व हिंसा प्रवृत्ति वर्तमान पीढ़ी में बहुत देखने को मिल रही है। इससे हृदय में असंतोष होता है। कितनी भी शरीर में पीड़ा हो, हम प्रयास करते हैं कि हमारे सामने जितने भी भगवतजन आते हैं, उनसे कहता हूं पहले बुद्धि शुद्ध होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अविनाशी जीव कभी भोग-विलास में तृप्त हो ही नहीं सकता। राष्ट्र का विशेष सेवा के लिए हमारे धर्म का परिचय और हमारे धर्म का क्या स्वरूप है, हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है, इसे जानने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमें जितना रामजी प्रिय हैं, कृष्णजी प्रिय हैं और उतना ही भारत देश हमारे लिए प्रिय है। जैसे रामभक्त, कृष्णभक्त, वैसे ही हमारे भारत का जन-जन आदरणीय व पूजनीय है।
हर देशवासियों का विचार शुद्ध होना चाहिए
उन्होंने कहा कि परन्तु अब जो मानसिकता बन रही है, वह हमारे धर्म व देश के लिए लाभदायक नहीं है। व्यसन, व्यभिचार व हिंसा का इतना बढ़ता स्वरूप, यह बहुत ही विपत्तिजनक है। अगर ये बढ़ता रहा तो विविध प्रकार की सुख-सुविधा देने के बावजुद भी अपने देशवासियों को सुखी नहीं कर पायेंगे। उन्होंने कहा कि सुख का स्वरूप विचार से होता है। सुख और दुख की स्थिति सही नहीं है। वर्तमान में हमारा विचार गंदा हो रहा है। हमारा उद्धेश्य यही है कि हमारे देशवासियों का विचार शुद्ध होना चाहिए। अगर विचार शुद्ध है तो राष्ट्रप्रियता, जनसेवा, समाजसेवा, यह सब स्वाभाविक होने लगेगा। विचार अशुद्ध है तो सभी सुविधाओं को दुरुपयोग होने लगेगा। जिन्हें भी ईश्वर ने धरती पर भेजा है, उनसे बार-बार निवेदन है कि वह अध्यात्म को समझें। बिना अध्यात्म को समझे दुख-सुख की समानता वगैर किए, परमसुख का अनुभव हो ही नहीं सकता।
MaharajPremAnand to RSS Leader @DrMohanBhagwat on deteriorating social fabric, rampant increase in violence, pervert mentality and addictions amongst today’s youth and general public.
Purity of mind is foundational and of primary focus than just providing facilities. #NewIndia pic.twitter.com/iAJEO5cXjq— IWC Maharashtra (@IWCMaharashtra) November 30, 2023
उन्होंने कहा कि लौकिक भोगों को पूजन सामग्री बना करके और साध्य सच्चिदानन्द प्रभु को रखा जाय तो आनन्द की अनुभूति हो जायेगी। बहुत मानव जीवन का स्वरूप है। इसे दुर्लभ कहा गया है। हम सच्चिदानन्द स्वरूप को भूले हुए हैं, इसे समझें।
युवा और बच्चों को लेकर जताई चिंता
उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि छोटे-छोटे बच्चे व्यसन कर रहे हैं। आज स्कूली विद्यार्थी जिन्हें ब्रह्मचर्य से पुष्ट होना चाहिए। वह अपना ब्रह्मचर्य नष्ट कर रहे हैं, यह चिंता का विषय है। हमारे देश के लिए जो जवान चाहिए, जो भक्ति चाहिए, उसमें बुद्धि और शरीर बल दोनों होना चाहिए। शरीर बल क्षीण हो रहा है, क्योंकि व्यभिचार प्रबृत्ति में बहुत की कमजोर अवस्था में बच्चे लिप्त हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इस समय आवश्यकता है कि विचार, आहार और आचरण शुद्ध करने की है। हमारे देश ने चरित्र की पूजा की है। रावण विद्वान व बलवान में कम नहीं था लेकिन उसके आचरण ने उसे राक्षस बना दिया। आज हम चरित्र पर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। हम अपना चरित्र बेच रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चे अपना चरित्र बेच रहे हैं। अगर हमारे बच्चे व्यवस्थित नहीं होंगे तो हमारा राष्ट्र संकट में पड़ जायेगा। उनका बुद्धि ठीक नहीं रहा और उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहा तो बड़ा संकट खड़ा हो जायेगा। अपनी नई पीढ़ी को सुधारा जाय। उनकी मानसिकता और उनका बौद्धिक स्तर सुधरे क्योंकि भगवान ने हमें सेवा के लिए भेजा है। चाहे जितना कोई भी गुफा में एकान्त में साधना करे, अगर उसकी उपयोगिता समाजसेवा के लिए नहीं है तो कोई मतलब नहीं है। अपना उद्धार कर लेना, कोई खास बात नहीं है। खास बात है कि अपने जीवन को सत्य और तप में तपा करके समाज को प्रदान कर देना।
उन्होंने कहा कि मनुष्य साधारण नहीं हैं, वह अविनाशी है। मनुष्य, जो चाहे वह कर सकता है लेकिन उसकी चाह ठीक होनी चाहिए। अगर चाह ठीक नहीं है तो उसका भविष्य संकट में पड़ जायेगा। व्यसन छोड़ो, व्यभिचार छोड़ो, राष्ट्रसेवा व समाजसेवा में लगो। वर्तमान पीढ़ी मां व पिता को घर से निकाल दे रही है। क्या, यही ज्ञान है। मनुष्य, मनुष्यता को छोड़ते जा रहे हैं, यह चिंता का विषय है।
जगद्गुरु श्रीकृष्ण पर हम भरोसा करें
सरसंघचालक के एक जिज्ञासा और चिंता पर उन्होंने कहा कि जगद्गुरु श्रीकृष्ण पर हम भरोसा करें। हमें जो खास बात पकड़नी है। परममंगल होगा। कदम पीछे नहीं। हम अध्यात्मबल को जानते हैं। हम अपने स्वरूप को जानते हैं। एक सृजन, एक पालन और एक संहार। जिस समय जैसा उनका आदेश होगा, वही होगा। आपको चिंता नहीं करनी है आगे क्या होगा। हमारे साथ श्रीकृष्ण हैं। अब संशय नहीं करना है। परम मंगल होगा। बस निराशा व हताशा किसी भी समय कोई शोक नहीं, कोई भय नहीं, किसी भी परिस्थिति में। अविनाशी हूं जो सेवा मिली दहाड़ता रहूंगा। हमारा तिरंगा, हमारा राष्ट्र भगवान है। आप तप के द्वारा भजन के द्वारा एक भजनानंदी लाखों का उद्धार कर सकता है। तुम भजन करो। अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त करो। भोगी बनकर नहीं योगी बनकर रहो। आचरण से, संकल्प से और वाणी से राष्ट्र की सेवा करनी है।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत मंगलवार की दोपहर फरह कस्बे के परखम में दीनदयाल गो विज्ञान अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र का लोकार्पण किया था, जिसके बाद मंगलवार शाम संघ प्रमुख वृंदावन केशवधाम आश्रम पहुंचे, जहां उन्होंने रात्रि विश्राम किया।(एएमएपी)