खालिद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू के उपस्थिति नहीं रहने के कारण न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने मामला स्थगित कर दिया।
The hearing on Umar Khalid’s bail application has been rescheduled for January 10, 2024.
It has previously been adjourned eight times. EIGHT TIMES.
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8.EIGHT TIMES ONLY IN THE SUPREME COURT.
What kind of sham courts are we running where an innocent man… pic.twitter.com/iXQHeJ2Skq
— Darab Farooqui (@darab_farooqui) November 29, 2023
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
पीठ ने कहा, ‘मामले में दलील देने वाले वरिष्ठ वकीलों की अनुपस्थिति के कारण याचिकाकर्ता और भारत संघ की ओर से संयुक्त अनुरोध किया गया है, मामले को 10 जनवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करें. इस बीच मामले में पैरवी पूरी की जाए’. इस मामले को यूएपीए के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ सूचीबद्ध किया गया था।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा ने नौ अगस्त को खालिद की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. मामले में खालिद की जमानत याचिका खारिज करने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय के 18 अक्टूबर, 2022 के आदेश को चुनौती देने वाली खालिद की याचिका न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और मिश्रा की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई थी।
उच्च न्यायालय ने खालिद की जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि वह अन्य सह-अभियुक्तों के साथ लगातार संपर्क में थे और उनके खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही थे. उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि आरोपियों की हरकतें प्रथम दृष्टया गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत ‘‘आतंकवादी कृत्य’’ वाली हैं।
उमर खालिद पर क्या हैं आरोप?
फरवरी 2020 के दंगों का ‘‘मुख्य साजिशकर्ता’’ होने के आरोप में खालिद, शरजिल इमाम और कई अन्य के खिलाफ आतंकवादी रोधी यूएपीए और भारतीय दंड संहिता के कई प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था. इस दंगे में 53 लोगों की मौत हो गई थी और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे।
जस्टिस मिश्रा ने कर दिया था सुनवाई से इनकार
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा ने 9 अगस्त को खालिद की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. दिल्ली उच्च न्यायालय के 18 अक्टूबर, 2022 के आदेश को चुनौती देने वाली खालिद की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. इससे पहले यह मामला न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति मिश्रा की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई थी. उच्च न्यायालय ने खालिद की जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि वह अन्य सह-अभियुक्तों के साथ लगातार संपर्क में था और उसके खिलाफ पहली नजर में आरोप सही लगते दिखाई देते हैं।
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इस मसले पर हाईकोर्ट ने क्या कहा था?
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि आरोपियों की हरकतें पहली नजर में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत “आतंकवादी कृत्य” के दायरे में आता है. बता दें कि खालिद, शरजील इमाम और कई अन्य पर फरवरी 2020 के दंगों के मास्टरमाइंड होने के आरोप में आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए और भारतीय दंड संहिता के कई प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया, जिसमें 53 लोग मारे गए और 700 से अधिक घायल हो गए।(एएमएपी)