आपका अखबार ब्यूरो।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष सौरव गांगुली की पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ से मुलाकात की खबर से एक बार फिर राजनीतिक अटकलें तेज हो गई हैं। क्या सौरव गांगुली भाजपा में आ रहे हैं? यह सवाल पिछले लोकसभा चुनाव के समय भी उठा था। भाजपा उस समय चाहती थी कि सौरव पार्टी की ओर से लोकसभा चुनाव लड़ें। सौरव गांगुली को बीसीसीआई अध्यक्ष बनवाने में भाजपा की बड़ी भूमिका मानी जाती है।
पत्ते आसानी से नहीं खोलते गांगुली
सोमवार को सौरव गांगुली राज्यपाल से मिलने गए। मुलाकात के बाद उनसे मुलाकात के बारे में पूछा गया तो उनका सपाट सा जवाब था कि राज्यपाल जब मिलना चाहते हैं तो मिलने आना पड़ता है। पर उन्होंने यह नहीं बताया कि राज्यपाल आखिर उनसे क्यों मिलना चाहते थे। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सौरव गांगुली को पहले ही आगाह कर चुकी हैं कि वे भाजपा में न जाएं। वैसे गांगुली ने अभी तक राजनीति में जाने की इच्छा नहीं जताई है। गांगुली क्रिकेट के बड़े खिलाड़ी ही नहीं चतुर कप्तान भी थे। वे अपने पत्ते आसानी से नहीं खोलते। वे अपने भावी कदमों के बारे में पहले से ही रणनीति बनाकर चलते हैं।
करिश्माई नेता की जरूरत
दरअसल भाजपा को बंगाल में एक करिश्माई नेता की जरूरत है। जिसके नाम पर लोग आकर्षित हो सकें और पार्टी से जुड़ सकें। भाजपा ने राज्य में संगठन का तो काफी विस्तार कर लिया है लेकिन उसके पास राज्य में कोई करिश्माई नेता नहीं है। इसीलिए बंगाल में सौरव गांगुली तो तमिलनाडु में उसकी नजर रजनीकांत पर है। बीसीसीआई में गांगुली के साथ सचिव के रूप में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के पुत्र जय शाह और हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री पीके धूमल के बेटे अरुण धूमल हैं। तीनों में अच्छी दोस्ती है। गांगुली ने इस बारे में पूछने पर कहा था कि हम तीनों अलग अलग क्षेत्र से आते हैं लेकिन अच्छी दोस्ती और आपसी समझ है।
कुछ लोग ‘दीदी बनाम दादा’ नारा लगाने की तैयारी में
सवाल है कि यदि सौरव गांगुली भाजपा का दामन थामने का फैसला करते हैं तो भाजपा उन्हें देगी क्या। यह संभव नहीं लगता कि पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश करेगी। हालांकि कुछ लोग अभी से दीदी बनाम दादा का नारा लगाने की तैयारी में लग गए हैं। गांगुली बंगाल में बहुत लोकप्रिय हैं। भाजपा उन्हें चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी सौंप सकती है। उन्हें राज्यसभा में भेजकर राष्ट्रीय स्तर पर उनकी प्रतिभा का लाभ उठाया जा सकता है। इतना तय है कि यदि गांगुली भाजपा में शामिल होते हैं तो ममता बनर्जी के लिए यह बहुत बड़ा झटका होगा। सुवेन्दु अधिकारी के भाजपा में शामिल होने के झटके से वे अभी उबर नहीं पाई हैं। उनकी पार्टी के नेता भले ही कहते रहें कि सुवेन्दु के जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता। पर ममता को पता है कि सुवेन्दु के जाने का मतलब क्या है।