कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर बड़ा हमला बोला है। उन्होंने एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि आरएसएस महिलाओं को दबाकर रखता है और यह तय करता हे कि इन्हें क्या पहनना चाहिए और क्या करना चाहिए।

राहुल गांधी ने महिला कांग्रेस रैली की एक विशाल रैली को संबोधित करते हुए राहुल ने कहा, आरएसएस महिलाओं के साथ सत्ता साझा नहीं करता है, वे तय करते हैं कि महिलाओं को क्या पहनना चाहिए और महिलाओं को क्या करना चाहिए। इस दौरान राहुल गांधी ने मंच पर बैठे पुरुषों की ओर मुड़ते हुए उन्होंने कहा, महिलाओं की भारी भीड़ देखकर मैं बहुत खुश हूं और मुझे भीड़ में पुरुषों को पहचानना मुश्किल लग रहा है, लेकिन मंच पर देखने पर मुझे लगता है कि अच्छी संख्या में लोग हैं।

महिला कांग्रेस रैली का किया उद्घाटन

इस दौरान राहुल गांधी ने वायनाड में महिला कांग्रेस रैली का भी उद्घाटन किया। बता दें, राहुल गांधी दो दिनों से अपने निर्वाचन क्षेत्र में विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए राज्य में हैं। इससे पहले राहुल गांधी तेलंगाना विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए राज्य में थे। इस दौरान उन्होंने कई रैलियां की और रोड-शो भी किए।

राहुल गांधी अपने इस बयान की वजह से सुर्खियों में

राहुल गांधी के इस बयान का जवाब आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने दिया. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक मनमोहन वैद्य ने कहा कि राहुल गांधी पुरुष हॉकी मैच में महिला को देखना चाहते हैं. वैद्य ने कहा कि उन्हें महिला हॉकी मैच में जाना चाहिए।

आरएसएस में ऐसा क्या है जो नौजवानों को आकर्षित करता

लेकिन क्या वाकई में आरएसएस में महिलाएं नहीं है? इसकी सच्चाई का पता लगाने के लिए हमने आरएसएस से जुड़े लोगों से बात की. पता चला आरएसएस में महिलाओं की अलग विंग है जिसे राष्ट्र सेविका समिति कहा जाता है।

देश भर में शाखाएं

पूरी दिल्ली में इसकी 100 से ज़्यादा शाखाएं है. देश भर में 3500 से ज़्यादा शाखाएं है. दक्षिण दिल्ली के ऐसी ही एक समिति में रोज जाने वाली सुष्मिता सान्याल से हमने बात की। सुष्मिता फिलहाल 40 साल की है. पिछले 16 साल से वो आरएसएस की महिला विंग राष्ट्र सेविका समिति से जुड़ी रही हैं. सुष्मिता को इस शाखा के बारे में 2001 में पता चला जब वो ब्रिटिश रेड क्रॉस के साथ लंदन में काम कर रही थी. सुष्मिता वहीं से राष्ट्र सेविका समिति के साथ जुड़ गईं।

संघ की ड्रेस से कैसे ग़ायब हुआ खाक़ी?

जब बीबीसी ने उनसे इस शाखा में महिलाओं के ड्रेस कोड के बारे में सवाल पूछा तो सुष्मिता का जवाब था, “हम सफ़ेद सलवार कमीज़ पहनते हैं उस पर सफ़ेद दुपट्टा लेते है जिसका बॉर्डर गुलाबी रंग का होता है. महिलाएं चाहे तो गुलाबी बॉर्डर वाली सफ़ेद साड़ी भी पहन सकते हैं।

अपनी गिरफ्तारी पर क्या बोले उद्धव गुट के नेता और मुंबई के पूर्व मेयर दत्ता दलवी

राहुल के बयान पर उनकी जब हमने उनसे प्रतिक्रिया पूछी, तो सुष्मिता ने कहा, “किसी एक के चाहने से तो हम अपना पहनावा नहीं बदल सकते. 80 साल से हमारी यही परंपरा रही है. लेकिन आरएसएस में महिलाएं हैं क्या वो ये बात नहीं जानते।

महिलाओं का आरएसएस से नाता पुराना है. सुष्मिता कहती हैं, “बचपन से ही कोई भी बालक या बालिका शाखा से जुड़ सकता है. किशोरावस्था में तरुण शाखा में कोई भी किशोरी जा सकती है. उससे बड़ी महिलाएं राष्ट्र सेविका समिति में हिस्सा ले सकती हैं. उम्र के उस पड़ाव में जब भजन कीर्तन में आपका मन लगता हो उसमें धर्म शाखा में आप हिस्सा ले सकते हैं।

देश में सुबह सवेरे लगने वाली आरएसएस की शाखाओं में भले ही महिलाएं न दिखती हों, लेकिन सुष्मिता का कहना है कि राष्ट्र सेविका समिति राष्ट्र स्वयं सेवक संघ की ही आनुषांगिक संगठन है, जहां दिन में एक बार शाखाएं ज़रुर लगती है. समय स्थानीय सदस्यों के सहमति से तय किया जाता है।

आरएसएस से ना पूछिए ये सवाल

समिति की स्थापना 1936 में विजयदशमी के दिन हुई. लक्ष्मीबाई केलकर ने इस समिति की स्थापना महाराष्ट्र के वर्धा में की थी. वर्तमान में सेविका समिति के प्रमुख संचालिक शान्ताक्का है. जो नागपुर में ही रहती हैं. 1995 से समिति से जुड़ी रही हैं। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन भी राष्ट्र सेविका समिति से जुड़ी रही हैं।

आरएसएस से जुड़े और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राकेश सिन्हा के मुताबिक, “राष्ट्र सेविका संघ और राष्ट्र स्वयं सेवक संघ एक दूसरे के पूरक है. दोनों का संगठनात्मक ढांचा एक जैसा है. दोंनों में मुख्य संचालक और मुख्य संचालिका होते हैं. दोनों में प्रचारक और प्रांत प्रचारक होते हैं।

राहुल गांधी के शार्ट्स वाले बयान पर राकेश सिन्हा ने कहा, “उनका ये बयान उनकी दृष्टिहीनता को दिखाता है. तभी 80 साल पुरानी संगठन पर ऐसा सवाल पूछा. क्या रानी लक्ष्मीबाई, कमला नेहरू ने शार्ट्स में देश की आजादी की लड़ाई लड़ी. हम महिलाओं को पुरुषों पर निर्भर नहीं आत्म निर्भर मानते हैं. इसलिए उनका अलग संगठन है। (एएमएपी)