बंसी कौल की पुस्तक ‘रंग विदूषक: ए मास्क विदाउट ए मास्क’ का लोकार्पण

आपका अखबार ब्यूरो ।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के कलानिधि प्रभाग द्वारा 2 दिसंबर, शनिवार को बंसी कौल की पुस्तक ‘रंग विदूषक: ए मास्क विदाउट ए मास्क’ पुस्तक के लोकार्पण पर केंद्र के समवेत ऑडिटोरियम में एक चर्चा का आयोजन किया गया। पुस्तक का संपादन एलन ट्वीडी ने संकलन अंजना पुरी ने किया है। पुस्तक चर्चा में आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, थिएटर संगीत विशेषज्ञ श्रीमती डॉ अंजना पुरी, प्रसिद्ध कोरियोग्राफर एवं थिएटर विशेषज्ञ श्री भारत शर्मा, , राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के पूर्व निदेशक एवं प्रसिद्ध रंगकर्मी प्रो. देवेन्द्र राज अंकुर, आईजीएनसीए के कलानिधि प्रभाग के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) रमेश गौड़ और रंगमंच निदेशक एवं लेखिका सुश्री रमा पांडे उपस्थित थे।

इस अवसर पर प्रो. (डॉ) रमेश चंद्र गौड़ ने सम्मानित अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यह  ताब दर्शकों को थियेटर से जोड़ने का काम करेगी। डॉ. गौड़ ने आगे कहा कि बंशी कौल को कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए 2014 में भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया था। उनका जन्म जम्मू एवं कश्मीर के श्रीनगर में 23 अगस्त 1949 को हुआ। उनका देहावसान 6 फरवरी, 2021 को दिल्ली में हुआ। बंसी कौल की पत्नी डॉ. अंजना पुरी ने किताब के हर अध्याय के बारे में बताया और कहा कि आने वाले दिनों में इस किताब का हिन्दी संस्करण भी आएगा।

प्रो. देवेन्द्र राज अंकुर ने कहा, मैंने और बंसी कौल ने एक साथ पढ़ाई की थी। उन्होंने कहा कि बंसी कौल की रंगमंच में यायावरी प्रवृति रही, यानी देश में घूम-घूम कर नाट्य निर्देशन किया और प्रशिक्षण दिया। बंसी कौल राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से स्नातक हुए और वहीं रेपर्टरी में निर्देशक के तौर पर अपने करियर का आगाज़ किया। 1984 में उन्होंने ‘रंग विदूषक’ नाम से अपना थियेटर ग्रुप शुरू किया, जिसने अपनी एक अलग विदूषक शैली का निर्माण किया। इस समूह ने हिंदी, तमिल, संस्कृत और सिंहली समेत कई भाषाओं में भारत और भारत के बाहर अपनी प्रस्तुति दी है। इसके साथ ही यह शैली विश्व भर में भी चर्चित हो गयी। उन्होंने कई बड़े इवेंट भी डिज़ाइन किए। प्रो. देवेन्द्र राज अंकुर ने इस बात पर भी जोर दिया कि बंसी कौल हिन्दी प्रेमी थे, तो क्यों नहीं यह किताब हिन्दी में प्रकाशित की गयी!

आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा, “1985 में बंसी कौल जी ने ‘रंग विदूषक’ से संभवत पहला नाटक दिल्ली के प्रगति मैदान में किया था, जिसके दो शो हुए थे। इसमें मैंने भी अभिनय किया था।” डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि रंग विदूषक का उनकी जिंदगी में बड़ा योगदान रहा है। उसी दौरान उन्होंने बच्चों के लिए भी एक नाटक किया था ‘रंग बिरंगे जूते’। उसमें एक प्रमुख कलाकार थे टिकक्म जोशी, जो इस समय मध्य प्रदेश ड्रामा स्कूल के डायरेक्टर हैं। डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने बंसी कौल को याद करते हुए कहा, “वह जल्दी संतुष्ट नहीं होते थे। वह संस्कृति में अनुशासन रखना चाहते थे। मुझे हमेशा लगता था कि वह परेशान क्यों हैं, उनके दिमाग में कुछ नया करने को लेकर कुछ न कुछ चलता रहता था। बंसी कौल रंगमंच के शोमैन थे। ‘रंग विदूषक’ में जो भी कलाकार थे, उनका वह बहुत ख्याल रखते थे। उनको मानदेय भी देते थे। युवा पीढ़ी भी रंगमंच पर आए, इसके लिए वह शिद्दत से काम करते थे।” अपने उद्बोधन के अंत में डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि किताब का अगर हिन्दी अनुवाद होता है, तो आईजीएनसीए उसका प्रकाशन करेगा।

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सुश्री रमा पांडे ने कहा, मैंने बंसी कौल को कभी नहीं देखा, लेकिन उनके द्वारा बनाए हुए नाटकों को देखा है और बहुत सीखा हैं। बंसी कौल हिन्दी हिन्दीभाषी थे। यह किताब विचारों का संग्रह है। बंसी कौल के अंदर थियेटर की एक लौ थी, इसीलिए वह दिल्ली एनएसडी आए थे। प्रसिद्ध कोरियोग्राफर एवं थिएटर विशेषज्ञ भरत शर्मा ने कहा, मैंने बंसी कौल के साथ बहुत सारे काम किए है। मैंने उनके अंदर डांसर को देखा। वह थियेटर के गुरु थे। बंसी कौल और उनके थिएटर  प ‘रंग विदूषक’, इन दो नामों के बिना हिंदी रंगमंच की बात पूरी नहीं होती। सिर्फ देशभर में ही नहीं, पूरी दुनिया में सीजी की पहचान अनूठे रंगकर्मी के रूप में तो है ही, डिजाइनिंग की दुनिया में भी उनका नाम बहुत आदर के साथ  या जाता है। डिजाइन के वो मास्‍टर थे, फिर चाहे वो थिएटर हो या कोई वृहद आयोजन।