आपका अखबार ब्यूरो। 
शरद पवार को यूपीए अध्यक्ष बनाने की मुहिम से सोनिया गांधी पर दबाव बढ़ रहा है। क्योंकि शरद पवार यूपीए के अध्यक्ष तभी बन सकते हैं जब सोनिया गांधी इस पद को छोड़ने के लिए तैयार हों। तो यह पवार को बनाने की मुहिम है या सोनिया को हटाने की। यही वजह है कि शिवसेना के बयान पर कांग्रेस से तीखी प्रतिक्रिया आई है। कांग्रेस ने कहा कि शिवसेना तो यूपीए में है भी नहीं फिर उसे क्या अधिकार है ऐसी बातें करने का। 

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दरअसल गांधी परिवार की नेतृत्व की क्षमता पर ही सवाल उठ रहे हैं। अभी कुछ ही दिन पहले शरद पवार ने एक मराठी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था कि राहुल गांधी के व्यक्तित्व में संगति (कंसिस्टेंसी) नहीं है। इस पर कांग्रेस पवार पर हमलावर हो गई थी। पवार की पार्टी एनसीपी ने कहा कि यह एक अभिभावक के तौर पर सलाह थी। वैसे पवार राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता को लेकर पहले भी टिप्पणी कर चुके हैं।

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टीस जाती नहीं

सोनिया गांधी और शरद पवार के रिश्ते लम्बे समय से खट्टे-मीठे रहे हैं। शरद पवार और उनके लोग यह भूल नहीं पाए हैं कि 1991 में सोनिया गांधी ने उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया। तो सोनिया गांधी भी यह नहीं भूली हैं कि 1999 में उनके कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर पवार और उनके साथियों ने उनके विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर पार्टी छोड़ दी और नई पार्टी बनाई। यह अलग बात है कि कुछ समय बाद राजनीतिक मजबूरी के तहत दोनों पार्टियों ने महाराष्ट्र में साझा सरकार बनाई। तब से दोनों पार्टियां साथ तो हैं लेकिन वह टीस जाती नहीं।
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इस बीच एक और घटना हुई। साल 2019 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को लगातार दूसरी बार विपक्ष का नेता पद हासिल करने लायक सीटें नहीं मिलीं। उस समय कांग्रेस और सोनिया चाहते थे कि शरद पवार अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दें। जिससे पार्टी को विपक्ष के नेता का पद मिल जाय। उस समय यह तो स्पष्ट नहीं था कि कांग्रेस यह पद किसके लिए चाहती थी, सोनिया, राहुल या पवार के लिए। पवार इसके लिए तैयार नहीं हुए।

कांग्रेस और गांधी परिवार की बड़ी परेशानी

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अभी तक राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर ही सवाल उठ रहे थे। हालांकि किसी ने सोनिया की नेतृत्व क्षमता के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन पवार को यूपीए अध्यक्ष बनाने के प्रस्ताव का परोक्ष अर्थ यही है कि अब सोनिया के रिटायर होने का समय आ गया है। कांग्रेस केवल इस बात से परेशान नहीं है कि शिवसेना ने ऐसा प्रस्ताव दिया। उसकी बड़ी परेशानी का कारण यह है कि ममता बनर्जी, चंद्रशेखर राव और उद्धव ठाकरे जैसे क्षेत्रीय नेता चाहते हैं कि शरद पवार भाजपा के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व करें। यह बात कांग्रेस और गांधी परिवार को रास नहीं आ रही।
शरद पवार इस बात को समझ रहे हैं। वे राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं। उन्होंने इस मुद्दे पर पूछे जाने पर कहा कि यूपीए अध्यक्ष बनने में उनकी कोई रुचि नहीं है। वे तब तक इस बारे में अपने पत्ते नहीं खोलेंगे जब तक सब तय नहीं हो जाता।