– डॉ. नुपूर निखिल देशकर
हिंदू धर्म में एकादशी वैष्णव सम्प्रदाय के लोगों का सबसे लोकप्रिय व्रतों में से एक है। भारतीय चंद्र कैलेंडर (अर्थात् जहाँ अमावस्या के बाद नए माह का प्रारंभ होता है) का ग्यारहवां दिन है। एक चन्द्र महीने में दो एकादशी होती हैं, एक बढ़ते चंद्र कला (शुक्ल पक्ष) में और दूसरी घटती चंद्र कला (कृष्ण पक्ष) में। प्रत्येक माह की दोनों एकादशियों को अत्यधिक शुभ माना जाता है किंतु मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष का दिन उत्पन्ना एकादशी के रुप में मनाया जाता है।उत्पन्ना एकादशी का विशेष महत्व है क्योंकि यह भगवान विष्णु और देवी एकादशी का दिन है। जो सामान्य रुप से प्रत्येक वर्ष चैत्र प्रतिपदा से 9वी एकादशी के रुप में आता है किंतु जिस वर्ष अधिकमास पड़ता है उस वर्ष यह एकादशी 11वीं एकादशी के रुप में आती है। इस वर्ष भी पुरुषोत्तम मास होने के कारण यह 11वी एकादशी के रूप में है। एक तो एकादशी वह भी हिंदू वर्ष की ग्यारहवीं एकादशी एक अद्भुत संयोग।
Utpanna Ekadashi tomorrow
Utpanna-the day Ekadashi Goddess, protective power of Vishnuji, came into being &the tradition of keeping the fast started
To get rid of past life sins,keeping fast &chanting of’Om Namo Bhagavate Vasudevaya’ mantra/’Vishnu Sahasranama’ brings blessings. pic.twitter.com/kuJb4rGb04— Shiva_Vadini🔱 (@Shiva_Vadini) December 7, 2023
इस एकादशी का व्रत करने को भगवान् विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और मनुष्य सांसारिक सुखों के साथ साथ मोक्ष भी प्राप्त कर लेते हैं। यह एकादशी का व्रत पापों का नाश करने के लिए प्रसिद्ध है। यद्यपि एकादशी का व्रत महीने की दोनों एकादशियों को किया जाता है। सामान्य रुप से लोग इस दिन उपवास करते हैं, अन्न नहीं खाते और रात में जागते हैं, ध्यान करते हैं या भक्ति गीत गाते हैं।जो उपवास नहीं करते वह एकादशी दिन भोजन में चावल ग्रहण नहीं करते।
उत्पन्ना एकादशी के व्रत को करने वाले व्रती को इस दिन मन , वचन और कर्म से शुद्ध होकर संपूर्ण जीव जगत को, जड़ चेतन को एक ही सर्वोच्च सत्ता भगवत चेतना के विस्तार के रूप में देखना चाहिए। किसी भी प्रकार का पाप नहीं करना चाहिए , बुरे विचार भी मन में नहीं लाना चाहिए। कहते हैं कि सतयुग में मूल नाम का एक राक्षस था जिसने इंद्र आदि देवताओं को जीत लिया था। पराजित सभी देवता एकत्र होकर हिमालय पर्वत पर भगवान शिव जी के पास अपनी व्यथा लेकर पहुंचे किंतु भगवान शिव जी ने सभी को जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु भगवान के पास जाने को कहा। सभी देवता गणों ने क्षीरसागर में शेष सैया पर विश्राम कर रहे भगवान विष्णु से प्रार्थना की। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान अपनी चतुर्मास की निद्रा पूर्ण की और निंद्रा से उठने के पश्चात चन्द्रावती पुरी में जाकर दैत्यों का वध किया और बद्रीका आश्रम की सिंहावती नामक १२ योजन लंबी गुफा में जाकर विश्राम करने लगे।
मूर राक्षस ने भगवान को गहरी निद्रा में लीन देखकर उनका वध करने का विचार किया किंतु भगवान विष्णु जी के दिव्य तेज से एक कन्या ने उत्पन्न होकर राक्षस मुर का वध कर दिया । भगवान विष्णु ने निद्रा से जागने के पश्चात प्रसन्न होकर स्वयं माता एकादशी को सभी व्रतों में प्रधान व्रत होने का आशीर्वाद दिया । जिस दिन भगवान श्री हरि विष्णु के दिव्य तेज से इस अद्भुत कन्या का प्रकट हुआ था वह दिन मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी कथा इसलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। उत्तपन्ना एकादशी भी कहते हैं।यह एकादशी 8 दिसंबर 2023 को प्रातः 5:00 बजे प्रारंभ हो रही है और 9 दिसंबर को प्रातः 5:30 तक रहेगी। इस दृष्टि से उदया तिथि के अनुसार यह व्रत 8 दिसंबर को रखा जाएगा।(एएमएपी)