एक समय था जब मड़ुवा, ज्वार बाजरा जैसे अनाज को गरीबों का भोजन कहा जाता था। एक तो यह पूरे झारखंड खासकर दक्षिणी छोटानागपुर क्षेत्र में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं और इसकी फसल भी खूब होती है। साथ ही इसकी कीमत भी गेहूं जैसे अनाज से काफी कम होती थी, लेकिन जब से मोट अनाज की फायदे के बारे में लोगों को जानकारी मिली, मोटे अनाज की मांग काफी बढ़ गई है और इसकी कीमत में काफी उछाल आया है। स्थिति ऐसी हो गई है कि गरीब तो क्या बड़े-बड़े अधिकारी से लेकर व्यवसायी तक मड़ुव, बाजरा, जौ, ज्वार आदि का उपयोग करने लगे हैं। यही कारण है कि आज बाजार में गेहूं के आटे की कीमत से अधिक मूल्य मड़ुवा के आटे का है।

किसान खुश

तोरपा के प्रसिद्ध व्यवसायी कहते हैं कि पिछले 50-60 वर्षों से वह अनाज का कारोबार करते आ रहे हैं, लेकिन मड़ुवा, बाजरा जैसे मोटे अनाज की कीमत में इतना वृद्धि कभी नहीं देखी। उन्होंने कहा कि जब से 2023 को अन्तर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष घोषित किया गया है, तब से मड़ुवा जैसे मोटे अनाज की मांग की काफी बढ़ गई है। गरीबों का निवाला कहे जाने वाले मड़ुवा की रोटी तो अफसरों की थाली का अंग बन चुकी है। सतीश चौधरी ने कहा कि वर्तमान में गेहूं के आटे की कीमत लगभग 40 रुपये प्रति किलो है, वहीं मड़ुवा आटा की कीमत 50 से 60 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है। बाजार मड़वा की कीमत बढ़ने से किसान भी काफी खुश हैं।

बाजार में बढ़ी मांग

कर्रा प्रखंड के बिकुवादाग गांव के प्रगतिशील किसानों का कहना हैं कि पहले सिर्फ गरीब लोग ही मड़ुवा या ज्वार बाजरा की रोटी का उपयोग करते थे। मांग कम होनेके कारण किसानों कों उनकी उपज का सही प्रतिफल नहीं मिल पाता था, लेकिन अब मोटे अनाज का उपयोग सभी घरों में होने लगा है। इसके कारण बाजार में इसकी मांग काफी बढ़ गई है। दिलीप शर्मा कहते हैं कि अब तो झारखंड सरकार ने मड़ुव जैसे अनाज को विद्यालयों में दिये जाने वाले मध्याह्न भोजन में भी शामिल कर लिया है। स्कुूलों में बच्चों को मड़ुवा से बना हलुआ भी दिया जाता है।

अन्तर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष में आठ मोटे अनाज शामिल

कृषि विज्ञान केंद्र खूंटी के मौसम कृषि वैज्ञानिक डॉ राजन चौधरी ने कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष में आठ मोटे अनाज को शामिल किया गया है। इनमें मड़ुवा(कोदो)बाजरा, कुटकी, संवा, ज्वार, कंगनी, चना और छोटा रागी शामिल हैं। उन्हाेने बताया कि 72 देशों के समर्थन के बादसंयुक्त राष्ट्र संघ ने साल 2023 को अन्तर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया है।
उन्होंने कहा कि झारखंड खासकर खूंटी, गुमला, लोहरदग, सिमडेगा, पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला खरसावां जैसे जिलों में मड़ुवा की काफी उपज होती है। डॉ चौधरी ने कहा कि मड़ुवा की खेती में न अधिक मेहनत लगती है और न ही अधिक लागत आती है। यही कारण है कि इस क्षेत्र के गरीब और सीमांत किसान इसकी भरपूर खेती करते हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार भी मोटे अनाज की खेती के लिए किसनों को बढ़ावा दे रही है। डॉ चौधरी ने बताया कि सभी आठ प्रकार के पोषक अनाज को लोगों की थाली तक पहुंचाना चुनौतीपूर्ण काम है। इस चुनौती को आसान बनाने के लिए मिलेट के पोसेस्ड फूड या प्रसंस्कृगत खाद्य उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है। ये फूड प्रोडक्ट आठ मोटे अनाज से बनाये जायेंगे।

किसी भी मिट्टी में उगाया जा सकता है मोटा अनाज

डॉ चौधरी ने कहा कि मड़ुवा, ज्वार, बाजरा आदि मोटे अनाज को किसी भी मिट्टी में उगाया जा सकता है। कम वर्ष वाले क्षेत्रों के लिए तो ये अनाज किसी वरदान से कम नहीं हैं। उन्होंने बताया कि मोटे अनाज के दानों को अलग करने के बाद मवेशियों के चारे के रूप में इसका उपयोग किसान करते हैं। डॉ राजन चौधरी ने कहा कि मोटे अनाज प्रोटीन, फाइबर, अमीनो एसिड, कैल्शियम, आयरन समेत कई न्यूट्रिएंट्स से भरपूर होते है। अब तो इन मोटे अनाज से ब्रेड, कुकीज, दलिया आदि भी बनाये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मोटे अनाज का उपयोग डायबिटीज, ब्लड प्रेशर आदि में काफी लाभदायक होता है।(एएमएपी)