– सोनाली मिश्रा।
अफगानिस्तान में महिलाओं को घरों में कैद करने का फरमान सुनाने वाली तालिबान सरकार अब उन पर नए तरीके से अत्याचार कर रही है। दरअसल, सरकार महिलाओं को यौनिक हिंसा से बचाने के लिए हिंसा करने वालों के स्थान पर पीड़ितों को जेल में डाल रही है। सरकार का मानना है कि इससे महिलाओं की रक्षा होगी। यह कितना हास्यास्पद और डराने वाला समाचार है कि जिन महिलाओं को असुरक्षा का अनुभव हो रहा है, उन्हें जेल में रखा जाए।
“The women of Afghanistan went from existence – from being part of society, from working, from being part of every aspect of life – to nothing.”#Opinion | @janinedigi on the pain of Afghan women watching their progress vanish under Taliban rule https://t.co/z3v15lCAlQ
— The National (@TheNationalNews) December 15, 2023
संयुक्त राज्य की रिपोर्ट में खुलासा
संयुक्त राज्य की हालिया एक रिपोर्ट के अनुसार तालिबान अधिकारियों ने अफगानिस्तान में यू एन असिस्टेंस मिशन से वार्ता में यह कहा कि जिन महिलाओं के पास ऐसे पुरुष रिश्तेदार नहीं हैं, जिनके साथ वह रह सकें या फिर जिनके पुरुष रिश्तेदार उनकी सुरक्षा के लिए खतरा हैं तो महिलाओं की सुरक्षा के लिए उन्हें जेल भेजा गया है। हालांकि यह अभी स्पष्ट नहीं है कि क्या यह आदेश किसी अदालती आदेश के आधार पर है।
दोषियों के स्थान पर पीड़ितों को दंड
यह कल्पना से ही परे है कि महिलाओं को सुरक्षा के लिए जेल में रखा जाए अर्थात जो भी न्यूनतम सुरक्षा उन्हें तालिबान की सरकार में मिली हुई है, वह भी उनसे छीन ली जाए। जो पुरुष रिश्तेदार अपनी महिलाओं की सुरक्षा के लिए खतरा हैं, उन्हें जेल में डालकर माहौल सुरक्षित करने के स्थान पर महिलाओं को ही जेल में डाल दिया जाए, यह कोई सहज नहीं सोच सकता है क्योंकि यह दोषियों के स्थान पर पीड़ितों को दंड देना है। इसका उन महिलाओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा, जिनसे अधिकतर अधिकार वैसे ही पहले छीन लिए हैं, यह सोचा जा सकता है। इस कदम से उन्हें यह लगेगा कि जरूर उनका ही कोई अपराध है, उनके दिल में खुद को अपराधी मानने की एक प्रवृत्ति उत्पन्न हो सकती है जो उनके रिहा होने के बाद भी मानसिक संतुलन के लिए घातक है।
अमानवीय कृत्य करने पर उतरी तालिबान सरकार
रिपोर्ट के अनुसार “कुछ तालिबान अधिकारियों ने कहा कि कई मामलों में जहां पर उन्हें ऐसा लगा कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए किसी भी प्रकार का कोई खतरा है तो उन्हें महिलाओं की जेल में सुरक्षा के लिए भेज दिया गया है, क्योंकि नशीली दवाओं के आदी एवं निराश्रित लोगों को भी जेल में ही भेजा गया है।” जेल को अपराधियों के स्थान पर ऐसे लोगों का आश्रय स्थल बना दिया गया है, जिन पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। ऐसे लोग जिनके पास घर नहीं हैं, उनके लिए आश्रय स्थल बनाने के स्थान पर उन्हें जेल में ही टिका देना, कितना अमानवीय कृत्य है, यह सहज सोचा जा सकता है। ऐसी स्थितियों में जब लड़कियां अपने पर होने वाले यौन शोषण की शिकायत उच्च अधिकारियों से करती हैं कि दोषियों को जेल में डाला जाए तो इसके उलट अफगानिस्तान में उन्हें ही सुरक्षा की दुहाई देते हुए जेल में बंद कर दिया जाएगा, फिर प्रश्न उठता है कि ऐसे में लड़कियां कहाँ जाएं?
जिम्मेदारी से भाग रहे न्याय देने वाले
वही प्रश्न यह रिपोर्ट उठाती है कि यह न्याय देने वालों के लिए जिम्मेदारी से भागने जैसी बात है और फिर ऐसे में महिलाओं और लड़कियों के लिए यह जानना बहुत कठिन है कि आखिर अपने ऊपर होने वाली यौन हिंसा के मामले में वह किसके पास शिकायत लेकर जाएं। रिपोर्ट के अनुसार जब महिलाएं अपने शिकायत लेकर जाती हैं तो पहले मध्यस्थता का मार्ग चुना जाता है और परम्परागत रूप से जिस प्रकार से मामलों का समाधान किया जाता है वह मानवाधिकारों का उल्लंघन हो सकते हैं यदि वह अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के अनुपालन में नहीं हैं तो।
क्या कहते हैं अधिकारी ?
सम्बंधित अधिकारियों की यह बाध्यता है कि वह इन पद्धतियों द्वारा प्रभावित होने वाले हर व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करें। रिपोर्ट आगे कहती है कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के अंतर्गत स्वतंत्रता से वंचित करना न ही मनमाना होना चाहिए और न ही गैर कानूनी। मनमानी की धारणा में अनुपयुक्तता, अन्याय, पूर्वानुमान की कमी और कानून की उचित प्रक्रिया के साथ-साथ तर्कसंगतता, आवश्यकता और आनुपातिकता के तत्व शामिल हैं। हालांकि तालिबान के अधिकारियों का यह कहना है कि वह यह कदम महिलाओं की सुरक्षा एवं शरिया के अनुपालन में उठा रहे हैं।
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तालिबान में महिलाओं की स्थिति कैदियों की तरह
जब से वर्ष 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता में कब्जा किया है, तब से ही महिलाओं की स्थिति तालिबान में कैदियों की तरह हो गयी है। वहां पर कक्षा 6 के बाद लड़कियों की शिक्षा बंद है, महिलाएं नौकरी पर नहीं जा सकती हैं, पार्क नहीं जा सकती हैं, रेस्टोरेंट में अकेले नहीं जा सकती हैं, और सबसे बढ़कर उनके लिए ब्यूटी पार्लर जैसे माध्यम भी बंद हैं, तो ऐसे में वैसे ही उनका जीवन उनके घर की चारदीवारी में ही बंद था, मगर अब उन्हें सुरक्षा के नाम पर या कहें असुरक्षित अनुभव होने पर जेल में भेज दिया जा रहा है, जो रिपोर्ट के अनुसार स्वतंत्रता का मनमाना हनन है। सबसे बढ़कर स्वतंत्रता के इस मनमाने हनन पर अंतरराष्ट्रीय महिला संगठनों एवं मानवाधिकार संगठनों की चुप्पी हैरान करने वाली है, कैसे वह इतने जघन्य मामले पर चुपचाप हैं, किसी भी प्रकार की कोई चर्चा नहीं है!(एएमएपी)