– सुरेश हिंदुस्थानी।
#WATCH | Delhi: Two protestors, a man and a woman have been detained by Police in front of Transport Bhawan who were protesting with colour smoke. The incident took place outside the Parliament: Delhi Police pic.twitter.com/EZAdULMliz
— ANI (@ANI) December 13, 2023
वर्तमान में देश की सभी समस्याओं के लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए केंद्र सरकार को निशाने पर लेना एक आम बात होती जा रही है। इसके लिए राष्ट्रीय एकता और संप्रभुता की मर्यादाओं को भी लांघने का कृत्य भी ज्यादा कदा दिखाई देता है। यह बात सही है कि विविधता वाले भारत देश में कोई एक बात सबको सही लगे, यह हो ही नहीं सकता, लेकिन लोकतंत्र यही कहता है कि उस बात को चाहने वाले अधिक हैं तो बड़ी खुशी के लिए छोटे दुख को तिरोहित कर देना चाहिए। व्यक्तिगत स्वार्थ व्यक्ति को अधिकांशतः गलत मार्ग पर ही ले जाने के लिए प्रेरित करता है। व्यक्तिगत स्वार्थ के वशीभूत होकर उठाया गया कदम कुछ हद तक सांत्वना दी सकता है, लेकिन जिससे अधिकांश समाज को लाभ मिलता है, वह आने वाले समय में हमारे लिए भी सकारात्मक प्रमाणित होता है।
विपक्ष का रवैया आरोपियों के हौसले बढ़ाने वाला है, वे आरोपियों पर नरम और सरकार पर गर्म हो रहे हैं। हालांकि यह भी सर्वथा सत्य है कि देश की संसद पर इस प्रकार का कृत्य सरकार द्वारा प्रायोजित सुरक्षा पर भी अनेक प्रकार के सवाल स्थापित करता है। विपक्ष की ओर से उठाए जाने वाले सवाल जायज हैं, लेकिन सुरक्षा के मुद्दे को राजनीतिक रूप से उठाना अत्यंत गंभीर है। विपक्षी दल के सांसद भी देश की संसद का हिस्सा हैं, इसलिए उनकी भी भारत की संवैधानिक संस्थाओं के प्रति जिम्मेदारी कम नहीं होती। सरकार के हर कदम की आलोचना करना मात्र ही राजनीति नहीं होती। राजनीति में देश भाव दिखना चाहिए।
#WATCH | Delhi: The two people protesting with colour smoke outside the Parliament, in front of Transport Bhawan were detained by Police and taken to Parliament Street Police Station. pic.twitter.com/ja9IgU7P9k
— ANI (@ANI) December 13, 2023
आज देश का राजनीतिक वातावरण एक प्रकार से प्रदूषित जैसा दिखाई देता है। देश में इस राजनीतिक प्रदूषण के लिए हर राजनीतिक दल जिम्मेदार है। क्योंकि आज के राजनीतिक दल एक दूसरे को नीचा दिखाने और स्वयं को स्थापित करने की राजनीति करते दिखाई देते हैं। वास्तविकता यह है कि इस प्रकार की राजनीति किसी भी प्रकार से देश हितैषी नहीं कही जा सकती, लेकिन सवाल यह भी है की संसद की मजबूत सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देते हुए कुछ लोग असंसदीय हरकत कर देते हैं। यह घटना सरकार के सुरक्षा इंतजामों पर गहरे सवाल अंकित करती है। अगर विपक्षी दल सरकार के गृह मंत्री पर सवाल उठाते हैं तो इसमें गलत क्या है। गृह मंत्री को जवाब देना ही चाहिए। क्योंकि गृहमंत्री जवाब नहीं देंगे तो कौन देगा? यहां पर सवाल यह भी आता है कि अगर गृह मंत्री जवाब देने के लिए आते हैं तो क्या विपक्ष उनको सुनने को तैयार होगा? यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है कि कई बार विपक्षी दल चर्चा से भागे हैं। हालांकि सुरक्षा बलों ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। गिरफ्तार होने वाले आरोपियों से पूछताछ हो रही है।
इस घटना को चाहे कुछ भी रूप दिया जाए, लेकिन इतना अवश्य कहा जा सकता है कि यह सभी मोदी सरकार के विरोधी हैं। विपक्षी दल इन आरोपियों के बारे में यह वकालत करते दिखते हैं कि वह बेरोजगारी के कारण मोदी सरकार से दुखी थे, और वे सरकार के विरोध में आक्रोश व्यक्त कर रहे थे। परंतु विपक्षी दलों को यह भी समझना चाहिए कि क्या आक्रोश व्यक्त करने का यह तरीका ठीक था? इसका प्रथम दृष्टया उत्तर यही होगा कि विरोध करने का स्थान संसद नहीं होना चाहिए। जैसे विरोध के अन्य आंदोलन होते हैं, वैसे ही लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करना चाहिए। यहां एक सवाल यह भी आ रहा है कि जो विरोध करने वाले हैं, उनको संबल कौन दे रहा है? क्या भाजपा के वे सांसद उनको संबल दे रहे हैं, जिन्होंने उनका पास बनबाने में सहयोग किया, या फिर यह भी विरोधियों की साजिश का हिस्सा है। क्योंकि एक सांसद अपनी ही सरकार के विरोध करने वालों को इस प्रकार का कृत्य करने की अनुमति नहीं दे सकता। और अगर यह सच है तो भाजपा के लिए और भी गंभीर बात है।
हमारी पांच साल तक की बच्चियां सुरक्षित नहीं, क्यों खुल रही हैं व्यभिचार की साइट्स ?
संसद में हुई घटना के निहितार्थ कुछ भी हों, लेकिन सुरक्षा का विषय कभी राजनीतिक नहीं होना चाहिए। आरोपियों की कार्यवाही के बाद लोकसभा में जिस प्रकार का दृश्य दिखाई दिया, उससे एक भय पैदा हुआ। सांसद इधर उधर भागने लगे। कुल मिलाकर आतंक की स्थिति निर्मित हो गई थी। यह एक प्रकार से सुरक्षा बलों की नाकामी ही थी। हालांकि यह और भी बड़ी घटना हो सकती थी, क्योंकि आरोपी जिस प्रकार से संसद के अंदर पहुंचने में सफल हो गए, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि ऐसे ही खतरनाक इरादों वाले भी पहुंच सकते थे। इसके बाद फिर वैसा ही दृश्य उपस्थित होने में देर नहीं लगती, जो पूर्व में 13 दिसंबर को दिखाई दिया। यहां सवाल यह भी है कि आरोपियों ने इसी दिन को क्यों चुना? क्या इसके तार भी उस घटना से जुड़े हैं। इस बात की जांच की जानी चाहिए। खैर… जो भी हो घटना को हल्के में नहीं लेना चाहिए। सत्ता पक्ष और विपक्ष को भी इसकी गंभीरता समझना चाहिए। क्योंकि यह सब सुनियोजित तरीके से किया गया था। नारे लगाना और स्मोक बम फोड़ना उस स्थान पर सामान्य बात नहीं है, जहां ऐसा करना प्रतिबंधित हो। इस घटना को देश मानस के हिसाब से देखना चाहिए, राजनीतिक दृष्टि से नहीं।(एएमएपी)