अनूप भटनागर ।
कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग के साथ आन्दोलन कर रहे किसानों का आन्दोलन धीरे धीरे उग्र हो रहा है। किसान आन्दोलन की आड़ में सीमावर्ती पंजाब में रिलायंस जियो के 1600 से ज्यादा टावर क्षतिग्रस्त किये जा चुके हैं। इस तरह से टावर क्षतिग्रस्त किये जाने के खिलाफ अब रिलायेंस जियो इंफोकॉम लि. के जरिये रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने सरकार को इसमें हस्तक्षेप करने और तोड़फोड़ की घटनाओं को रोकने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।
उच्च न्यायालय ले सकते हैं स्वत: संज्ञान
इस तरह की तोड़फोड़ की घटनाओं को रोकना वैसे तो राज्य सरकार का काम है लेकिन देश की शीर्ष अदालत के अप्रैल 2009 के फैसले और दिशा निर्देशों के अंतर्गत उच्च न्यायालय भी विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाये जाने की घटना का स्वत: संज्ञान ले सकते हैं।
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में उत्तर प्रदेश में हिंसा के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुंचाये जाने के मामले में राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इसी फैसले के तहत हिंसा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की थी।
अमरिन्दर सरकार में राजनीतिक इच्छा शक्ति होती तो…
पंजाब की कैप्टन अमरिन्दर सिंह सरकार में अगर राजनीतिक इच्छा शक्ति होती तो वह भी सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाये जाने की घटनाओं के मामले में इस फैसले के तहत कार्रवाई कर सकती थी। लेकिन अभी तक ऐसा होता नजर नहीं आया है।
There were reports some days before that R-Jio’s telecom towers have been destroyed in Punjab and Haryana over the agitation going on between the Centre and the farmers. Reports said that agitated farmers had destroyed the towers. Jio has approached the Court regarding this. pic.twitter.com/0LmZbSI7kW
— Opicalofficial (@opicalofficial) January 4, 2021
अब चूंकि, रिलायंस इंडस्ट्रीज की सहयोगी कंपनी ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि न्यायालय के हस्तक्षेप से पंजाब सरकार हरकत में आयेगी और इस मामले में ठोस कार्रवाई करेगी।
उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देश
उच्चतम न्यायालय ने ‘सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने से संबंधित एक मामले में 16 अप्रैल 2009 को अपने फैसले में बहुत ही स्पष्ट दिशानिर्देश प्रतिपादित किये थे।
शीर्ष अदालत के दिशा निर्देशों के अनुसार विरोध प्रदर्शन आदि के कारण बड़े पैमाने पर संपत्ति का नुकसान होने की स्थिति में उच्च न्यायालय स्वत: कार्रवाई कर सकता है। वह नुकसान के आकलन के लिये जांच गठित कर सकता है और क्षतिपूर्ति का अवार्ड दे सकता है।
अगर इस तरह के मामले एक से ज्यादा राज्यों में हुए हों तो इनमें उच्चतम न्यायालय कार्रवाई कर सकता है।
ऐसे मामले का संज्ञान लेकर उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय, जैसी स्थिति हो, उच्च न्यायालय के पीठासीन या अवकाश प्राप्त न्यायाधीश या पीठासीन अथवा सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश को नुकसान के आकलन और जवाबदेही का निर्धारण करने के लिये दावा आयुक्त नियुक्त करेंगे। दावा आयुक्त की मदद के लिये एक आकलनकर्ता भी नियुक्त किया जायेगा।
दोषियों और आंदोलन के आयोजकों से नुकसान की भरपाई
न्यायालय ने यह व्यवस्था भी दी थी कि इस तरह के नुकसान की भरपाई अपराध के असली दोषी व्यक्तियों और ऐसे आन्दोलनों के आयोजकों को करनी होगी। इस नुकसान की भरपाई के लिये ऐसा जुर्माना किया जाना चाहिए जो दूसरों के लिये नजीर बने लेकिन यह राशि दुगुने से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
नहीं उठाया गया कोई ठोस कदम
देश की शीर्ष अदालत ने तो आन्दोलनों के दौरान सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की घटनाओं को देखते हुये ‘सार्वजनिक सपंत्ति को नुकसान से रोकथाम कानून, 1984’ में संशोधन करने और इसकी भरपाई के लिये आन्दोलनकारी राजनीतिक दलों और आयोजकों के नेताओं की जिम्मेदारी निर्धारित करने का प्रावधान इसमें करने का सुझाव दिया था, लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
अब समय आ गया है कि देश की सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को इस तरह के आन्दोलनकारियों की हिंसा से बचाने के लिये कानून में संशोधन किया जाये और इसका आयोजन/नेतृत्व करने वाले नेताओं से ऐसे नुकसान की भरपाई करने की दिशा में ठोस कदम उठाये जायें।