डॉ आनंद सिंह राणा।
22 दिसंबर को गुरु साहिब अपने दोनों बड़े पुत्रों सहित चमकौर के मैदान में व गुरु साहिब की माता और दोनों छोटे साहिबजादे अपने रसोइए के घर पहुंचे ।
चमकौर की जंग शुरु और दुश्मनों से जूझते हुए गुरु साहिब के बड़े साहिबजादे श्री अजीत सिंह उम्र महज 17 वर्ष और छोटे साहिबजादे श्री जुझार सिंह उम्र महज 14 वर्ष अपने 11 अन्य साथियों सहित धर्म और देश की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुए।चमकौर के युद्ध में दोनों साहिबजादों ने 40 सिंहों के साथ मिलकर मुगल सिपहसालार की 10 लाख सेना से युद्ध लड़ा और आधी सेना का विनाश कर दिया। भारत के कुल 43 सिंह वजीर खान पर भारी पड़े। गुरु गोविंद सिंह को पकड़ने का सपना चकनाचूर हो गया।
23 दिसंबर को गुरु साहिब की माता गुजरी जी और दोनों छोटे साहिबजादो को मोरिंडा के चौधरी गनी खान और मनी खान ने गिरफ्तार कर सरहिंद के नवाब को सौंप दिया ताकि वह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी से अपना बदला ले सके ।इधर पुनः युद्ध की तैयारी के लिए गुरु साहिब ने अन्य साथियों की बात मानते हुए चमकौर छोड़ दिया।
24 दिसंबर को तीनों को सरहिंद पहुंचाया गया और वहां ठंडे बुर्ज में नजरबंद किया गया।
25 दिसंबर को दोनों छोटे साहिबजादों को नवाब वजीर खान की अदालत में पेश किया गया और उन्हें धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बनने के लिए लालच दिया गया।
26 दिसंबर को साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह को तमाम जुल्म ओ जबर उपरांत जिंदा दीवार में चिन ने के पश्चात् नर पिशाच वजीर खान के आदेश पर दोनों महावीरों का जिबह (गला रेत) कर शहीद कर किया गया, जिसकी खबर सुनते ही माता गुजरीने अपने प्राण त्याग दिए। गुरु गोविंद सिंह के कथन “सूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत..पुर्जा पुर्जा कट मरे कबहूँ छाड्यो खेत” के अनुकूल आचरण किया। वास्तव इन महावीर बालकों की याद में बाल दिवस मनाया जाना चाहिए था,नहीं मनाया गया परंतु भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्रीयुत नरेंद्र मोदी का धन्यवाद है कि 26 दिसंबर को अब “वीर बाल दिवस” के रुप मनाया जा रहा है। (एएमएपी)