मेरी श्रीनगर यात्रा

बालेन्दु शर्मा दाधीच।
यह मौसम श्रीनगर में पतझड़ का है- चिनार के पेड़ों से पत्ते झड़ चुके हैं और बागों में भी बहार नहीं है। फिर भी कश्मीर हमेशा की तरह खूबसूरत है।

 

डल झील में शिकारा-विहार

डल झील श्रीनगर की पहचान है। आप श्रीनगर जाएँ और इस झील का आनंद न लें यह संभव नहीं है। यह झील खुद, इसके भीतर चलते शिकारे और इसके किनारों पर खड़े हाउसबोट एक अलग ही दुनिया की झलक देते हैं। मैं इसे एकाध किलोमीटर लंबी-चौड़ी झील समझता था लेकिन यह साढ़े सात किलोमीटर लंबी और साढ़े तीन किलोमीटर चौड़ी है। श्रीनगर के बहुत से इलाकों की यात्रा के दौरान एक तरफ डल झील आपके साथ-साथ चलती रहती है।


डल के शिकारों का अनुभव दूसरी नदियों और झीलों परपर्यटकों के लिए चलने वाली नावों से भिन्न है, खासकर पानी के भीतर चलते-फिरते बाजार का। डल में नौका-विहार के दौरान एक-एक कर स्थानीय विक्रेताओं के शिकारे आपके शिकारे के साथ सटकर चलने लगते हैं, वैसे ही जैसे किसी बाग में पैदल चलते समय कोई अनजान शख्स आपसे बात करने लगे। वे हस्तशिल्प की चीजें और खाने-पीने का सामान (फल, भुट्टा, चाट, तंदूर पर पके आइटम आदि) बेच रहे होते हैं। ये चीजें बाजार की तुलना में महंगी होंगी लेकिन फिर इन लोगों के लिए पर्यटक ही तो आजीविका का प्रधान माध्यम हैं, सो थोड़ा महंगा हो तो चलता है। चलते-चलते आपका शिकारा किनारे पर बनी दुकानों पर रुक जाता है, आप बाहर निकलकर खरीदारी करते हैं और वापस शिकारे में आकर बैठ जाते हैं। हम पति-पत्नी ने साथ लाने के लिए स्थानीय चीजें भी खरीदीं और खाने-पीने का आनंद भी उठाया। गर्म-गर्म कहवा पीते हुए डल के ठंडे माहौल में शिकारे की सैर स्मरणीय थी।
शिकारे और हाउसबोट देवदार की लकड़ी से बनते हैं जो पानी में भी कई दशकों तक खराब नहीं होती लेकिन बहुत महंगी होती है। लोगों ने बताया कि हाउसबोट बनाने पर एकाध करोड़ का खर्च आना सामान्य बात है।

खीर भवानी मंदिर

श्रीनगर के तुलमूल गांव के पास माँ दुर्गा का प्रसिद्ध, विशाल और भव्य मंदिर है, नाम है- खीर भवानी मंदिर। माँ दुर्गा कश्मीरी पंडितों की कुल देवी हैं जिन्हें खीर का भोग लगाया जाता है। जनश्रुति है कि जब भी कश्मीर में कोई बड़ा संकट आने वाला होता है तब मंदिर के कुंड के पानी का रंग बदल जाता है, जैसे कि 2014 की भयानक बाढ़ से पहले का काला रंग। इसी तरह, कोविड संकट से पूर्व इसका रंग लाल हो गया। विश्वास तो नहीं होता लेकिन उस समय के चित्र ऐसा ही कहतेहैं। हर साल ज्येष्ठ माह में यहाँ भव्य मेले का आयोजन होता है।

हज़रतबल दरगाह

कश्मीर की सर्वाधिक प्रमुख दरगाह है- हज़रतबल। कहते हैं कि यहाँ पर इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद साहब की दाढ़ी का एक बाल सहेज कर रखा हुआ है। कश्मीरी भाषा में ‘बल’ का अर्थ ‘जगह’ होता है इसलिए हज़रतबल का अर्थ हुआ ‘हज़रत की जगह’। स्थानीय लोग इसे दरगाह शरीफ के नाम से संबोधित करते हैं।
मैंने सोचा था कि समय के प्रभाव में यह दरगाद जीर्ण-शीर्ण हो चुकी होगी। हकीकत भिन्न निकली। हजरतबल दरगाह की इमारत जितनी विशाल है, उतनी हीखूबसूरत भी। इसका ढाँचा संगमरमर से बना हुआ है और ताजमहल की याद दिलाता है। दूसरी दरगाहों के विपरीत, यहाँ पर मूल गुम्बद के अलावा सिर्फ एक ही मीनार है। अमूमन आपने इस्लामी धार्मिक इमारतों के चारों कोनों में चार मीनारें देखी होंगी, लेकिन यहाँ ऐसा नहीं है। दरगाह एकदम स्वच्छ है, well maintained है और साफ-सुथरी डल झील के किनारे पर है। अब आप उसकी खूबसूरती का अनुमान लगा पा रहे होंगे।

लाल चौक

श्रीनगर का लाल चौक जितना ऐतिहासिक है, उतना ही चर्चित भी रहता है- कभी सही कारणों से तो कभी गलत कारणों से। लाल चौक बहुत बड़ा नहीं है जैसी कि मेरी धारणा थी। वह किसी भी भारतीय शहर के बीच पाए जाने वाले मुख्य चौक जैसा ही है और उन्हीं की तरह इसके बीचोबीच भी एक घंटाघर बना हुआ है। लाल चौक के आसपास श्रीनगर का मुख्य बाजार है जहाँ अच्छी खासी चहल-पहल और गहमा-गहमी रहती है। किसी जमाने में निरंतर होने वाली हड़तालों के कारण यह बाजारसप्ताह में एक या दो दिन ही खुलता था और वह भी कुछ घंटों के लिए। लेकिन अब सातों दिन खुलता है और सैलानियों के आकर्षण का विषय भी है। कश्मीरी मेवे, ऊनी कपड़े, कश्मीरी पेय और हस्तशिल्प के सामान खरीदने के लिए अच्छी जगह है, हालाँकि शहर का यह इलाका पर्यटकों के लिए थोड़ा महंगा है।

मुगल गार्डन, शालीमार और चश्मे शाही

यह मौसम श्रीनगर में पतझड़ का है- चिनार के पेड़ों से पत्ते झड़ चुके हैं और बागों में भी बहार नहीं है। फिर भी कश्मीर हमेशा की तरह खूबसूरत है। चार-पाँच महीने बाद वहाँ हरियाली लौटेगी। करीब एक महीने पहले ये पत्ते लाल-गुलाबी रंग के थे और उनका सौंदर्य देखते ही बनता होगा। यह बात जमीन पर पड़े सूखे पत्तों की खूबसूरती से जाहिर होती है। लेकिन फिलहाल जो है, पेश है। हाँ, इस बात ने ध्यान खींचा कि चिनार का पत्ता कुछहद तक मैपल लीफ जैसा दिखता है जो कैनेडा में होता है और वहाँ के राष्ट्रीय ध्वज में भी है।

शंकराचार्य मंदिर

इसे कश्मीर का प्राचीनतम मंदिर माना जाता है। कल्हण ने इसे ईसा पूर्व 371 का बताया है, कश्मीरी पंडित इसे आदि शंकराचार्य द्वारा निर्मित मानते हैं और अंग्रेज वास्तु-इतिहासकार जेम्स फर्ग्युसन ने इसे 17वीं शताब्दी में निर्मित माना है। जो भी हो, पीर पंजाल और हिमालय पर्वतमालाओं के बीच में खूबसूरत जबरवान रेंज में स्थित यह मंदिर well preserved और well maintained है। डॉ. कर्ण सिंह इसका संचालन करने वाले ट्रस्ट केअध्यक्ष और एकमात्र ट्रस्टी हैं।

यह मत पूछिएगा कि मंदिर में सूट पहनकर जाने की क्या आवश्यकता थी। असल में मंदिर दर्शन के बाद एक कार्यक्रम में बोलना था।

(लेखक जाने माने तकनीकीविद हैं और माइक्रोसॉफ़्ट में ‘निदेशक-भारतीय भाषाएं और सुगम्यता’ के पद पर कार्यरत हैं)