अमीश त्रिपाठी ।
एक कार्यक्रम के दौरान संवाद के क्रम में एक युवा ने पूछा- मैं धृष्ट या अप्रिय नहीं होना चाहता। लेकिन कभी-कभी मुझे लगता है कि हम रामायण को बहुत ही सतही रूप में देखते हैं। चीज़ें कितनी जटिल होती हैं। आपको नहीं लगता कि हमने या हमसे पहले आए लोगों ने रावण को दानवी और राम को दैवी रूप दिया है। सच कहूं तो मुझे तो कभी-कभी यह दो राजाओं के युद्ध जैसा प्रतीत होता है। क्या आप इस पर कुछ कहना चाहेंगे?
मेरा जवाब- क्या यह सवाल पूछकर आप धृष्टता नहीं कर रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में रावण का मंदिर है? और रावण की पूजा करने वाले भगवान राम का भी आदर करते हैं।
राजस्थान-मध्य प्रदेश की सीमा पर मंदसौर नाम की एक जगह है जहां लोग रावण और उसकी पत्नी मंदोदरी की पूजा करते हैं। एक बहुत ही मशहूर कहानी है जिसमें जब रावण मृत्युशैया पर होता है, तो भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण से कहते हैं कि रावण के पास जाएं और उस महान ज्ञानी से शिक्षा पाएं।
कुछ भी पूरी तरह अच्छा या पूरी तरह बुरा नहीं
भले ही युद्ध लड़ा गया हो, मगर भगवान राम अपने दुश्मन के कुछ गुणों का सम्मान करते थे। रावण के विशुद्ध रूप से दुष्ट राक्षस होने की अवधारणा भी तुलनात्मक रूप से आधुनिक है। पारंपरिक भारतीय संदर्भ में कुछ भी पूरी तरह अच्छा या पूरी तरह बुरा नहीं होता! ऐसा कुछ था ही नहीं। प्राचीन संस्कृत में अंग्रेजी शब्द ‘ईविल’ का एकदम सटीक अनुवाद नहीं है।
रावण के सकारात्मक गुणों को सराहा
मैंने बुराई की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए शिव रचना त्रय लिखी थी। लेकिन अगर मैं संस्कृत में लिखता तो इसे स्पष्ट करने की जरूरत ही नहीं होती, क्योंकि उसमें बुराई की अवधारणा थी ही नहीं। कुछ भी पूरी तरह से बुरा नहीं होता। हर वस्तु के अस्तित्व का कोई उद्देश्य है। रामायण के प्राचीन रूपों में, रावण का चित्रण बहुत औचित्यपूर्ण है, उसके सकारात्मक गुणों को सराहा गया है। उसे सोने की लंका कहते थे, ठीक है? क्यों? क्योंकि अपनी प्रजा के लिए वह अच्छा राजा था। उसमें कमियां भी थीं, ख़ासतौर पर उसका अहं।
असली जीवन जटिल
तो हम रावण से भी कुछ सीख सकते हैं। चीज़ों को काले या सफ़ेद के संदर्भ में ही देखने की यह सरलीकृत नीति असल में काफ़ी आधुनिक है! यह हमारा प्राचीन तरीक़ा नहीं है। जीवन कभी भी सरल नहीं होता। असली जीवन जटिल होता है। हमारी प्राचीन कहानियां इस वास्तविकता को दर्शाती हैं।