गुजरात का कच्छ भारत का सबसे बड़ा जिला है। इसका क्षेत्रफल देश के कई छोटे राज्यों से ज्यादा है। लेकिन इसके बाद भी कच्छ की कुल आबादी 20 लाख के करीब ही है। इसका बड़ा कारण है कि कच्छ का ज्यादातर हिस्सा रेगिस्तान है। अरब सागर और कच्छ की खाड़ी से घिरे कच्छ की जमीन नमकीन है जो कंटीली झाड़ियों और घास से ज्यादा कुछ पैदा नहीं होने देती। लिहाजा रहने के लिए यह लोगों की पसंद नहीं बन पाया।

लेकिन अब इस कच्छ की तस्वीर बदल रही है। जो कच्छ अब तक केवल अपनी दलदली रेगिस्तानी जमीन के लिए दुनिया में जाना जाता था, आज उसी में दुनिया का सबसे बड़ा रिन्यूएबल एनर्जी पार्क (30 गीगावाट) बन रहा है। 72,600 हेक्टेयर क्षेत्रफल में बन रहे इस एनर्जी पार्क के 2026 तक पूरी तरह ऑपरेशनल हो जाने की उम्मीद है। इससे पूरे गुजरात के बिजली खपत से ज्यादा ऊर्जा का उत्पादन होगा, जिसे देश के दूसरे राज्यों को भी सप्लाई किया जाएगा।

इसी कच्छ में देश का सबसे बड़ा कंटेनर पोर्ट है। देश के दुनिया से होने वाले कुल व्यापार में बड़ा हिस्सा इसी पोर्ट के हिस्से आता हैं। इसी कच्छ से काम कर रही वेलस्पन कंपनी टॉवेल-चद्दर और पाइप उत्पादन के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में शामिल हो चुकी है। जिस रेगिस्तान में कोई आने के लिए तैयार नहीं होता था, आज देश-दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियां कच्छ के इस रेगिस्तान में अपना पैसा लगा रही हैं और भारी मुनाफा कमा रही हैं। आज कच्छ देश के सबसे बड़े औद्योगिक पार्क में बदल चुका है। यह बदलाव कैसे आया?

मोदी बने प्रेरणा

वेलस्पन लिविंग लिमिटेड के बिजनेस हेड संजय कानूनगो ने बताया कि कच्छ की तस्वीर बदलने का श्रेय यदि किसी एक व्यक्ति को दिया जा सकता है तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने बड़े-बड़े उद्योगपतियों को कच्छ में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने उद्योगपतियों को हर आवश्यक लाइसेंस न्यूनतम अवधि में देने के साथ-साथ बिजली-पानी-सड़क की उपलब्धता सुनिश्चित कराई। मोदी ने इन कंपनियों को सस्ती दरों पर जमीन उपलब्ध कराई और कुछ वर्षों तक उनसे कोई कर न लिए जाने का वादा भी किया।

संजय कानूनगो के अनुसार, मोदी का यह विजन कमाल कर गया। उनकी कंपनी के साथ-साथ अन्य दूसरी बड़ी कंपनियों ने कच्छ में भारी निवेश किया। आज कच्छ की तस्वीर बदल चुकी है। अब यहां के लोगों में रोजगार की कोई समस्या नहीं रह गई है। देश के दूसरे हिस्सों से भी भारी संंख्या में श्रमिक यहां आकर अपनी रोजी-रोटी प्राप्त कर रहे हैं। यानी जो कच्छ खुद अपने लोगों का पेट भरने तक का अनाज पैदा नहीं कर पाता था, आज यूपी-बिहार-मध्य प्रदेश के लाखों श्रमिक परिवारों के लिए आशा की किरण बन चुका है।

क्षमता दोगुना करेगा मुंद्रा पोर्ट

अडानी पोर्ट्स एंड लॉजिस्टिक्स के मैनेजर जयदीप शाह ने  बताया कि मुंद्रा पोर्ट इस समय देश का सबसे बड़ा पोर्ट बन चुका है। लॉजिस्टिक्स की मूलभूत सुविधाएं कंपटेटिव दरों पर उपलब्ध कराने और भौगोलिक स्थिति के कारण मुंद्रा पोर्ट व्यापारियों की पहली पसंद बन गया। जल्द ही वे अपनी क्षमता में दोगुनी तक की वृद्धि करने जा रहे हैं। इसके बाद मुंद्रा पोर्ट दुनिया के सबसे बड़े बंदरगाहों में एक हो जाएगा।

उन्होंने कहा कि इसके पहले कच्छ से अंतरराष्ट्रीय व्यापार बहुत सीमित मात्रा में होता था। व्यापारियों की पहली पसंद मुंबई और देश के अन्य पोर्ट थे। लेकिन भौगोलिक स्थिति, परिवहन में लागत की कमी ने मुंद्रा पोर्ट को गुजरात के व्यापारियों के लिए पहली पसंद बना दिया। अब अंतरराष्ट्रीय व्यापार के मामले में मुंद्रा-कांडला पोर्ट सबसे प्रमुख केंद्रों में शामिल हो चुका है।

पर्यटकों ने बदली कच्छ के गांवों की तस्वीर

कच्छ के एक बड़े हिस्से में बारिश के मौसम में पानी भरा रहता है। बारिश का मौसम समाप्त होने के बाद खारे पानी के कारण यहां की भूमि पर नमक की सफेद चादर बिछ जाती है। नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए इसको एक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना बनाई। अब कच्छ के रण में हर साल उत्सव मनाया जाता है। देश-विदेश के पर्यटक भारी मात्रा में यहां ‘सफेद रेगिस्तान’ देखने आते है।

10 नवंबर से 26 फरवरी तक कच्‍छ में रण उत्‍सव

कच्छ में इस समय रण उत्सव (Rann Utsav) चल रहा है। 10 नवंबर से 26 फरवरी तक चलने वाले इस रण उत्सव को देखने के लिए भारी संख्या में पर्यटक भुज आते हैं। यहां गुजरात की कला, संस्कृति, नृत्य, खानपान और बोली-भाषा से उनका परिचय होता है। सफेद रेगिस्तान में उगता सूरज, अस्त होते सूरज को देखना अनूठा अनुभव होता है।

रण उत्सव देखने के लिए आने वाले पर्यटक इसी रेगिस्तान में बसाए गए टेंट सिटी में रुकना पसंद करते हैं। वे इसके लिए पांच-छः हजार रुपये प्रति दिन से लेकर 1.50 लाख रुपये प्रति दिन तक की कीमत भी चुकाते हैं। पर्यटकों को ऊंट गाड़ी की सवारी से लेकर पैराग्लाइडिंग तक की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। युवा जोड़ों में कच्छ का एडवेंचर टूरिज्म बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। इसके कारण यहां के स्थानीय लोगों को अच्छा रोजगार मिलता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि कच्छ के रेगिस्तान में नरेंद्र मोदी ने सपनों का कल्पवृक्ष उगा दिया है जो लगातार विस्तार पा रहा है।

मोदी विजन को कैसे चुनौती देगा विपक्ष

2024 के लोकसभा चुनाव के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों कमर कस चुके हैं। भाजपा को ‘मोदी की गारंटी’ पर भरोसा है तो विपक्ष जातिगत जनगणना के दांव से उन्हें मात देने की रणनीति बनाने में जुटा है। अहमदाबाद के स्थानीय पत्रकार सिद्धार्थ पांंड्या कहते हैं कि विपक्ष के लिए यह चुनौती आसान नहीं होने वाली है। नरेंद्र मोदी ने अपनी छवि लगातार दिन रात लोगों के लिए काम करने वाले नेता की बनाई है।

वे विकास कर लोगों का दिल जीत रहे हैं तो इससे लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। कच्छ का रेगिस्तान हो या केवड़िया का पिछड़ा आदिवासी बहुल इलाका, मोदी के विकास की कहानी लोगों को सुना रहे हैं। उनका काम केवल रोजगार उपलब्ध कराने तक सीमित नहीं है। सरदार पटेल की एकता मूर्ति और अयोध्या के माध्यम से वे देश की विरासत को भी सहेजने का काम कर रहे हैं। इससे लोगों में गौरव भाव पैदा हो रहा है। इसकी तुलना किसी दूसरे कामकाज से नहीं की जा सकती। इस मोदी विजन को चुनौती देने का कोई मॉडल फिलहाल विपक्ष के पास दिखाई नहीं दे रहा है।(एएमएपी)