श्रीश्री रविशंकर ।
जब भगवान श्री कृष्ण समाधि में बैढे तो उन्होंने भगवत गीता सुनाई। युद्ध के उपरांत अर्जुन ने उनसे कहा आपने जो मुझे सुन्दर उपदेश युद्ध के दौरान प्रदान किया मैं उसे भूल गया क्योंकि युद्ध भूमि में बहुत भीड़ और झंझाल था और मैं आप को ठीक से सुन नहीं पाया। आपने जो वहां पर कहा था उसे फिर से सुनाएं।
वह फिर से नहीं सुना सकता
भगवान श्री कृष्ण ने कहां मैं वह तुम को फिर से नहीं सुना सकता क्योंकि उस समय मैं समाधि में था, और मैंने तुम्हें बिठाकर वह सब सुनाया जो कुछ मुझे ज्ञात हुआ और मैं वह फिर से नहीं सुना सकता। जो कुछ भगवान श्री कृष्ण ने कहां वह कोई व्यक्ति के रूप में नहीं बोल रहे थे, परन्तु वह सम्पूर्ण ज्ञान समष्टि के द्वारा बोला जा रहा था, और यह सारा उपदेश शिव तत्व और आत्म तत्व के द्वारा आया।
उन्होंने कहा मैं ही सूर्य, वर्षा, सत्य और असत्य हूं और सबकुछ मैं ही हूं। यह एक गहरी बात है।
एक ही चेतना, ऊर्जा और बनी सारी दुनिया
सबकुछ एक ही तत्व और अणु से बना है। आपके माता, पिता किस तत्व से बने हैं। सबका शरीर एक ही मिट्टी और उसी अनाज से बना है, अनाज ग्रहण करने से शरीर बनता है। जो कोई भी उसे खाता है उससे शरीर बनता है। सभी कोई एक तत्व, शक्ति और ऊर्जा से बना है। वे कह रहे हैं कि सारी दुनिया एक ही चेतना, एक ही ऊर्जा और एक ही तत्व से बनी है।
एक ही विद्युत से चल रहे पंखा, माइक, लाइट
यदि आप पंखा, माइक और लाइट को देखेंगे वे सब एक ही विद्युत तरंग के कारण चल रहे हैं। परन्तु ऐसा प्रतीत होता हैं कि पंखा, माइक और लाइट अलग अलग हैं। वे अलग अलग प्रतीत होते हैं लेकिन वे सब एक ही चीज से बने हैं। उसी तरह यदि सूर्य नहीं होता तो पृथ्वी नहीं होती। यदि पृथ्वी नहीं होती तो पौधे, पेड़ और मानव भी नहीं होते? तो हमारा स्रोत क्या है? भौतिक स्तर पर हमारा स्रोत पृथ्वी है; उसका और सूक्ष्म स्वरुप है सूर्य। फिर सूर्य का स्रोत क्या है? वह समष्टि ऊर्जा ; और फिर भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि वह समष्टि ऊर्जा मैं हूं।
वैज्ञानिक भी यही कहते हैं
वह आत्मा आप हैं, मैं हूं और सबकुछ इसी समष्टि ऊर्जा से बना हुआ है और आज वैज्ञानिक भी यही कहते हैं। जो लोग क्वांटम भौतिकी पढ़ते हैं वे कहते सारी सृष्टि एक ही ऊर्जा से बनी हुई है। पहले कहा जाता था कि अलग अलग अणु और परमाणु होते हैं और उनसे सारे कृत्य होते हैं, लेकिन अब वे कहते हैं कि यह सब एक ही ऊर्जा से होता है और सबकुछ एक ही तरंग का कृत्य है। जिसे हम वस्तु समझते हैं वास्त्व में वह वस्तु नहीं है, वह शक्ति और यह सब सिर्फ ऊर्जा है और यह बात कई वर्षों पहले भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद गीता में कही।
अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तानुमाश्रितम् परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम।
ये लोग मुझे अनंत शक्ति न जानकार मनुष्य समझते है, मैं मनुष्य योनी में तो हूं पर मुझमें जो चैतन्य है, वह परम चैतन्य है। लोग मुझे गलत समझते हैं, मैं कोई व्यक्ति नहीं, मैं शक्ति हूं।
(लेखक आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक हैं)
जब कोई उपाय न बचे तभी अंतिम घड़ी में इसे खोलकर पढ़ना, उससे पहले नहीं