अनूप भटनागर।
किसानों के आन्दोलन से उत्पन्न स्थिति के मद्देनजर उच्चतम न्यायालय ने आज तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक के लिये रोक लगाने के साथ ही किसानों की शंकाओं और शिकायतों पर विचार के लिये एक उच्च स्तरीय समिति गठित कर दी।
न्यायालय ने इन कानूनों के संदर्भ में किसानों की शंकाओं और शिकायतों पर विचार के लिये समिति गठित की है। इस समिति में भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिन्दर सिंह मान और शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घंवत, डा. प्रमोद जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी को शामिल किया गया है।
खालिस्तानी तत्वों की पैठ
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ को केन्द्र सरकार ने सूचित किया कि दिल्ली की सीमा पर आन्दोलनरत किसानों के बीच खालिस्तानी तत्वों ने पैठ बना ली है। पीठ ने जब अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से कहा कि क्या वह इसकी पुष्टि करते हैं तो देश के इस सर्वोच्च विधि अधिकारी ने कहा, हां ऐसी सूचनाएं मिली हैं।
न्यायालय ने अटार्नी जनरल से कहा कि वह इस बारे में कल तक हलफनामा दाखिल करें। अटार्नी जनरल ने कहा कि वह ऐसा करेंगे।
केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि उसके नये आवेदन में इस तथ्य का उल्लेख है। इसके बाद, पीठ ने कोर्ट मास्टर से वह आवेदन मांगा जिसमें केन्द्र ने इस तरह के आरोप लगाये थे।
किसान अधिवक्ता अनुपस्थित
वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान कुछ किसान संगठनों की ओर से कल पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे, कॉलिन गोन्साल्विज और एच एस फूलका की आज अनुपस्थिति का न्यायालय ने भी संज्ञान लिया।
कुछ किसान संगठनों द्वारा इस समिति के समक्ष नहीं जाने का जिक्र किये जाने पर पीठ ने कहा कि कृषि कानूनों को लेकर उत्पन्न समस्या का जो वास्तव में समाधान चाहते हैं वे समिति के पास जायेंगे।
पीठ ने न्यायपालिका और राजनीति में अंतर को इंगित करते हुए किसानों से कहा कि वे समिति के साथ सहयोग करें क्योंकि यह राजनीति नहीं है।
दुष्प्रचार से किसानों में आशंका
सरकार की ओर से दलील दी गयी कि इन कानूनों को लेकर किये जा रहे दुष्प्रचार की वजह से किसानों में यह आशंका व्याप्त हो रही है कि उनकी जमीन ले ली जायेगी जबकि ऐसा नहीं है।
इस बीच, न्यायालय ने दिल्ली पुलिस के उस आवेदन पर भी नोटिस जारी किया जिसमे कहा गया है कि सुरक्षा एजेन्सियों के अनुसार गणतंत्र दिवस के अवसर पर आन्दोलनरत किसान ट्रैक्टर मार्च निकालकर इस आयोजन में व्यवधान डालने की योजना बना रहे हैं।
सभी किसान विरोध में नहीं
सुनवाई के दौरान न्यायालय में दलील दी गयी कि देश के सभी किसान इन कानूनों का विरोध नहीं कर रहे हैं। किसानों के एक कंसोर्टियम की ओर से कहा गया कि वह करोड़ों किसानों का प्रतिनिधित्व करती है और इन कानूनों पर रोक लगाने से फल जैसी उपज की पैदावार करने वाले किसान प्रभावित होंगे।
किसान महापंचायत ने किसानों की समस्याओं और शंकाओं पर विचार के लिये समिति गठित करने के साथ ही इन कानूनों के अमल पर रोक लगाने के प्रस्ताव का भी समर्थन किया।
पहले ही दे दिए थे संकेत
न्यायालय ने कल ही स्पष्ट कर दिया था कि इन कानूनों को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों के संगठनों और केन्द्र सरकार के बीच व्याप्त गतिरोध खत्म करने के लिये वह एक समिति गठित करेगा।
हालांकि, अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने दलील दी कि किसी भी कानून पर उस समय तक रोक नहीं लगाई जा सकती जब तक न्यायालय यह नहीं महसूस करे कि इससे मौलिक अधिकारों या संविधान की योजना का हनन हो रहा है।
केंद्र के रवैये से कोर्ट दुखी
यही नहीं, इस मामले में सरकार के रवैये और किसानों के विरोध प्रदर्शन से निबटने के तरीके पर न्यायालय ने सोमवार को केन्द्र को आड़े हाथ लिया था ओर कहा था कि वह किसानों के साथ उसके बातचीत के तरीके से वह ‘बहुत निराश’ है। पीठ ने कहा था, ‘‘हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि केन्द्र इस समस्या और किसान आन्दोलन को नहीं सुलझा पाया।’’
किसानों के आन्दोलन की वजह बने तीन नये कानूनों में कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार, कानून, 2020, कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून शामिल हैं।
Supreme Court suspends the implementation of the Farm Laws.
SC orders the formation of a 4 member Expert Panel Committee
Agitation of the Farmers to continue.@Arunima24 & @AnushaSoni23 share details with @SiddiquiMaha #FarmersVsGovernment pic.twitter.com/KtjCEKM20Y
— News18 (@CNNnews18) January 12, 2021
आन्दोलनरत किसान इन कानूनों की वापसी की मांग पर अड़े हुए हैं जबकि सरकार ने ऐसा करने से इनकार कर दिया है। सरकार ने इन किसान संगठनों से यह भी कहा था कि अगर वे चाहें तो उच्चतम न्यायालय जा सकते हैं। लेकिन इन किसान संगठनों का कहना है कि वे न्यायालय नहीं जायेंगे और न ही उसकी समिति के सामने अपना पक्ष रखेंगे।