आपका अखबार ब्यूरो। 
युद्ध की रणनीति का एक नियम यह है कि अपनी कमजोरी अपने दुश्मन को कभी पता मत लगने दो। जो बात युद्ध की रणनीति के बारे में कही जाती है वह किसी भी प्रतियोगिता पर लागू होती है। चुनाव को प्रतियोगिता और युद्ध के बीच की चीज मान सकते हैं। तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद सौगत रॉय के गुरुवार के बयान को इस कसौटी कसें तो मानना पड़ेगा कि पार्टी ने भारी रणनीतिक भूल की है।

महागठबंधन के दो प्रयोग

लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य सौगत रॉय ने गुरुवार को वामपंथी दलों और कांग्रेस से अपील की कि साम्प्रदायिक भाजपा को हराने के लिए वे तृणमूल कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाएं। हाल के दिनों में महागठबंधन के दो प्रयोग हुए। पहला, बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव में। राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड और कांग्रेस इसमें शामिल थे। इस महागठबंधन को जबरदस्त सफलता मिली। दूसरा प्रयोग उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में हुआ जब राज्य की दो बड़ी पार्टियां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी साथ आए। यह प्रयोग फेल हो गया। पर सफल और असफल होने वाले दोनों महागठबंधन टिक नहीं पाए।

डरी हुई है तृणमूल

सौगत रॉय की अपील का सीधा निष्कर्ष यह है कि तृणमूल भारतीय जनता पार्टी के आक्रामक चुनाव प्रचार, पार्टी में न रुकने वाली बगावत और सत्ता विरोधी रुझान से डर गई है। उसे हार का खतरा नजर आ रहा है। ऐसे निष्कर्ष की सबसे बड़ी वजह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कुछ दिन पहले दिया गया बयान है। उन्होंने माकपा और कांग्रेस का जिक्र करते हुए कहा कि ये दोनों दल अब साइन बोर्ड वाले दल रह गए हैं। आज उन्हीं पार्टियों से अपील की जा रही है कि वे उन्हें भाजपा से लड़ने में मदद करें।
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माकपा, कांग्रेस का जवाब

तृणमूल कांग्रेस की इस अपील का जवाब वैसा ही आया जैसी उम्मीद थी। माकपा ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। पिछले नौ साल तृणमूल और भाजपा में मिली भगत रही। यह भी कि साम्प्रदायिकता से लड़ना है तो बंगाल में तृणमूल को और दिल्ली में भाजपा को हराना होगा। कांग्रेस की प्रतिक्रिया तो तृणमूल को चिढ़ाने वाली थी। कांग्रेस ने कहा कि ममता हमारा साथ चाहती हैं तो तृणमूल कांग्रेस का कांग्रेस पार्टी में विलय कर दें। तृणमूल कांग्रेस की ओर इस तरह के बयान का भाजपा खूब फायदा उठा रही है। भाजपा का कहना है कि इससे साफ हो गया है कि तृणमूल कांग्रेस भाजपा से डरी हुई है। उसे अपनी हार साफ नजर आ रही है।

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इस बीच माकपा और कांग्रेस में सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत शुरु हो गई है। कांग्रेस नेताओं की एक टीम गुरुवार को कोलकाता पहुंची। माकपा इस गठबंधन में वाम मोर्चे के बाहर की कुछ छोटी पार्टियों को जोड़ना चाहती है। कांग्रेस नेता चाहते हैं कि सीट बंटवारे में उनकी पार्टी को एक सौ पचास सीटें मिलें। माकपा इसके लिए तैयार नहीं है।