आपका अखबार ब्यूरो ।

लिथियम इलेक्ट्रानिक्स का भविष्य माना जाता है। लिथियम आयन बैटरियों के लिए भारत पूरी तरह से चीन पर निर्भर रहा है। चीन से भारी मात्रा में इस रासायनिक तत्व का आयात होता है। इकोनामिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में भारत ने लीथियम बैटरी का तीन गुना आयात किया था. यह 1.2 अरब डॉलर था। पर अब भारत इस मोर्चे पर चीन के वर्चस्व को समाप्त करने में पूरी तैयारी के साथ जुटा है। यह चीन के खिलाफ उसकी आर्थिक नीति का एक अहम हिस्सा है। दुनिया भर के कई गैजेट लिथियम आयन बैटरियों के कारण ही काम करते हैं। इसलिए भारत की वर्तमान नीतियां चीन के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी हैं।


 

मोबाइल, टैबलेट, लैपटाप से लेकर हर इलेक्ट्रानिक गैजेट में लिथियम आयन बैटरी का इस्तेमाल होता है। वहीं अब आटोमोबाइल क्षेत्र में भी इलेक्ट्रानिक वाहनों का ही बोलबाला रहने वाला है। उनमें भी लिथियम आयन बैटरियां इस्तेमाल होती हैं।

आपदा में अवसर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी भी विपरीत परिस्थिति को देश के लिए एक अवसर के रूप में देखते हैं। आपदा में अवसर का उनका आह्वान दुनिया ने जमीनी हकीकत में तब्दील होते देखा है। इस समय चीन की सबसे बड़ी लिथियम उत्पादक कंपनी- टियानकी लिथियम एक बहुत बड़े आर्थिक नुकसान का सामना कर रही है। चीन के 46 फीसदी लिथियम उत्पादन में भागीदारी करने वाली यह कंपनी इस समय भारी कर्जों के बोझ तले दबी है। ऐसे मौके पर भारत ने लिथियम बैटरियों के क्षेत्र में प्रवेश किया है। भारत इसे लिथियम उत्पादन में चीन के वर्चस्व को तोड़ने के एक बड़े अवसर के तौर पर देख रहा है।

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अर्जेंटीना से करार

नाल्को, हिंदुस्तान कॉपर एंड मिनरल एक्सपलोरेशन लिमिटेड जैसी कंपनियों को मिलाकर बनाई गई खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड कंपनी ने पिछले वर्ष अर्जेन्टीना की एक फर्म के साथ लिथियम के उत्पादन के लिए करार किया। अब चिली और बोलीविया में भी लिथियम और कोबाल्ट के उत्पादन के लिए यह कंपनी जोरशोर से कोशिश कर रही है।

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2018 से तैयारी

भारत ने 2018 में ही आने वाले समय की चुनौतियों का सटीक अनुमान लगा लिया था और उसी समय से अपनी तैयारियां शुरू कर दी थीं। भारत में चीन जैसा लिथियम भंडार नहीं है। लेकिन चीन पर निर्भरता से बाहर निकलने की तत्परता और संकल्प ही था जिसने भारत की कोशिशों को अंजाम तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त किया।

तत्कालीन भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्री अनंत गीते ने कहा था कि लिथियम के लिए भारत अब चीन पर निर्भर नहीं रहेगा। भारत ने दक्षिण अमेरिका के ‘लिथियम ट्राइएंगल’ यानी लिथियम के भंडार के मामले में दक्षिण अमेरिका के तीन प्रमुख देशों- चिली, बोलिविया एवं अर्जेंटीना से अपनी  लिथियम की आवश्यकता पूरा करने की कोशिश कर रहा है।

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बोलिविया के साथ एक एमओयू

भारत ने लिथियम बैटरी के उत्पादन में सहायता हेतु बोलिविया के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर भी किया है। इसके अलावा लिथियम के उत्पादन और प्रसंस्करण के लिए भारत, जापान और आस्ट्रेलिया की भी सहायता लेने वाला है। जापान के सुजुकी मोटर कारपोरेशन ने तोशिबा और डेन्सो के साथ एक संयुक्त उद्यम बनाया है। इसके तहत वे गुजरात में देश का पहला लिथियम बैटरी उत्पादन केंद्र शुरू करेंगे।

आस्ट्रेलिया भी भारत के साथ

आस्ट्रेलिया भी लिथियम आयन बैटरियों के क्षेत्र में चीन का वर्चस्व तोड़ने में वह भारत का साथ दे रहा है। आस्ट्रेलिया के नीयोमेटल्स और भारत के मणिकरण पावर ने भारत की पहली लिथियम रिफाइनरी के लिए साथ में काम करने का फैसला किया है। यह करार इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि आस्ट्रेलिया के पास लिथियम भंडार की कोई कमी नहीं है। आस्ट्रेलिया के पास करीब 27 लाख टन लिथियम का भंडार है।

खस्ताहाल चीन

भारत ऐसे समय पर लिथियम के क्षेत्र में प्रवेश कर रहा है, जब इस क्षेत्र में चीन  की हालत जिम्मा संभालने वाली टियानकी लिथियम इस समय वह कर्जों के बोझ तले दबी है। इसके अलावा जैसे टीएफआई ने 2019 में रिपोर्ट किया था, भारत सरकार लिथियम आयन बैटरी से लिथियम निकलवा कर अपने लिथियम की आवश्यकताओं के लिए एक अहम योजना पर काम भी कर रही है।

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लिथियम का इस्तेमाल रिचार्जेबल बैटरियों में होता है और इस क्षेत्र में चीन का भारी दबदबा रहा है। लेकिन अब दुनिया इस क्षेत्र में भारत के अर्जंेटीना से करार को चीन का दबदबा तोड़ने की एक बड़ी कोशिश मान रही है। नया भारत अब हर अवसर को अपने लिए एक बेहतरीन निवेश में बदलने के लिए प्रयासरत है।

इलेक्ट्रिक वाहन और लिथियम बैटरी

इलेक्ट्रिक वाहनों में लिथियम आयन बैटरियों का इस्तेमाल कई कारणों से किया जाता है। इलेक्ट्रिक से चलने वाले किसी भी आटामोबाइल को बनाने में आने वाली कुल लागत का सबसे ज्यादा हिस्सा उसकी बैटरी का होता है जो लगभग 30 फीसदी बैठता है। बैटरी सस्ती तो कार सस्ती, बैटरी महंगी तो कार महंगी पड़ेगी।

लिथियम आयन बैटरी रखरखाव व अन्य बातों को जोड़कर देखें तो अपेक्षाकृत सस्ती पड़ती है। हल्की होती है और बैकअप पावर बहुत ज्यादा होती है। अगर बैटरी भारी होगी तो गाड़ी को और ज्यादा पावर लेनी होगी। लेड की बैटरी बहुत भारी होती है और उसके टूटने का डर भी ज्यादा रहता है। उसकी लाइफ भी ज्यादा नहीं होती और उसमें कई अन्य दिक्कतें भी हैं।


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