(01 फरवरी पर विशेष)

देश-दुनिया के इतिहास में 01 फरवरी की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख इसलिए खास है कि उसका रिश्ता ब्रितानी हुकूमत के समय हिमालयी क्षेत्र की खोज करने वाले पंडित नैन सिंह रावत से है। उत्तराखंड में 21 अक्टूबर, 1830 को जन्मे नैन सिंह का एक फरवरी 1882 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ था।नैन सिंह का जन्म भटकुरा नाम के एक गांव में हुआ था, जो भारत नेपाल सीमा से लगे उत्तराखंड के जिले पिथौरागढ़ की जोहार घाटी में पड़ता है। हालांकि उनका पैतृक गांव मिलम था, लेकिन उनके पिता ने दो शादियां की थी जिसके चलते उनके गांव वालों ने उन्हें निकाल दिया था। इस कारण उन्हें 27 साल का वनवास झेलना पड़ा और 1847 में वो अपने गांव लौट पाए। मिलम उन दिनों कुमाऊं के सबसे बड़े गांवों में से एक था। इसके अलावा ये पश्चिमी तिब्बत को जाने वाले रास्ते पर पड़ता था। इसी कारण यहां एक बड़ा बाजार भी था। इस इलाके के लोग तिब्बत से ट्रेड करते थे।

रावत पहले पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने ल्हासा की ऊंचाई नापी। ब्रह्मपुत्र नदी का सर्वेक्षण किया। लद्दाख से ल्हासा का नक्शा बनाया। यायावर राहुल सांकृत्यायन उन्हें अपना गुरु मानते थे। रावत का कद इस कदर ऊंचा था कि उनकी मृत्यु की खबर को दुनिया भर के अखबारों ने प्रमुखता से छापा। चर्चित विद्वान और लेखक सर हेनरी यूल ने उनके लिए कहा था, ”एशिया का नक्शा बनाने में पंडित नैन सिंह का योगदान किसी भी दूसरे खोजकर्ता की तुलना में सबसे अधिक है।”

पंडित नैन सिंह रावत 19वीं शताब्दी में बिना किसी आधुनिक उपकरण की मदद के पूरे तिब्बत का नक्शा तैयार करने वाले पहले व्यक्ति हैं। उनके इस काम के लिए अंग्रेजी हुकूमत से उन्हें बहुत सम्मान मिला। सर्वेक्षण के क्षेत्र में दिया जाने वाले सबसे ऊंचा सम्मान ‘पेट्रोन गोल्ड मैडल’ पाने वाले नैन सिंह इकलौते भारतीय हैं। साल 2004 में भारत सरकार ने उनके नाम से एक डाक टिकट जारी किया और 2017 में गूगल ने उनकी जयंती पर अपना डूडल उन्हें समर्पित किया था।

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अपने जीवन काल में नैन सिंह ने 6 यात्राएं की। जिनकी कुल लम्बाई 42 हजार किलोमीटर थी। इन यात्राओं में उन्होंने लद्दाख से ल्हासा का नक्शा बनाया। ल्हासा की ऊंचाई नापने वाले वो पहले व्यक्ति थे। इसके अलावा तारों की स्थिति देखकर उन्होंने ल्हासा के लैटीट्यूड और लोंगिट्यूड की भी गणना की। जो आज की आधुनिक मशीनों से की गई गणना के बहुत करीब है। सांगपो नदी के किनारे 800 किलोमीटर चलते हुए उन्होंने पता लगाया कि सांगपो और ब्रहमपुत्र एक ही हैं। नैन सिंह ने सतलज और सिन्धु के उद्गम भी खोजे।(एएमएपी)