आपका अखबार ब्यूरो ।
गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान दिल्ली में हिंसा, अराजकता का जैसा तांडव हुआ उसे लेकर लगभग सभी अखबारों ने चिंता जताई है। हिंसा में संलग्न लोगों को असामाजिक तत्व बताकर किसान नेताओं ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश की है।
योगेंद्र यादव, राकेश टिकैत समेत कई किसान नेताओं के
खिलाफ एफआईआर
दिल्ली पुलिस ने 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के संबंध में 93 लोगों को गिरफ्तार किया है और 200 लोग हिरासत में लिए गए हैं। पुलिस ने योगेंद्र यादव, राकेश टिकैत, दर्शन पाल, राजिंदर सिंह, बलबीर सिंह राजेवाल, बूटा सिंह बुर्जिल और जोगिंदर सिंह उग्राहां समेत कई किसान नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है। उन पर पुलिस द्वारा ट्रैक्टर रैली के लिए जारी एनओसी का उल्लंघन करने का आरोप है। बेकाबू किसानों की हिंसा में 300 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए हैं।
‘हिंदुस्तान’ अखबार लिखता है, ‘इसके साथ ही यह आंदोलन अपना बहुचर्चित गरिमामय स्वरूप खो चुका है। एक तरफ किसान नेता कह रहे हैं कि असामाजिक तत्वों ने आंदोलन को बिगाड़ दिया, वहीं कुछ किसान नेता लाल किले के दृश्य देखकर खुशी का इजहार रोक नहीं पा रहे। किसी को यह प्रदर्शन दुर्भाग्यपूर्ण लग रहा है, तो कोई अभिभूत है।’
अब आगे किसान आंदोलन का क्या होगा? सरकार से बातचीत जारी रहेगी या टूट जाएगी? ‘हिंदुस्तान’ अखबार के अनुसार, ‘अब यह प्रश्न खड़ा हो गया है कि सरकार आगे की बातचीत किससे करे? आगे की राह अनुशासित किसान तय करेंगे या अनुशासन की पालना न करने वाले?’
उन्हें उनके किए की सजा मिले
‘दैनिक जागरण’ भी हिंसा और अराजकता के लिए किसान नेताओं को जिम्मेदार मानता है। अखबार लिखता है कि सरकार को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए और उनको बचकर निकलने का मौका नहीं देना चाहिए, ‘इस गुंडागर्दी के बाद किसान नेता यह कहकर देश की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहे हैं कि हिंसा में उनके लोग नहीं थे और जो उत्पात हुआ, उससे उनका लेना-देना नहीं। वे दिल्ली को अराजकता की आग में झोंक देने के बाद पल्ला झाड़कर देश से फिर छल ही कर रहे हैं। उन्हें बचकर निकलने का मौका नहीं दिया जाना चाहिए। उन्हें जवाबदेह बनाते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उन्हें उनके किए की सजा मिले। उन्होंने गणतंत्र दिवस की गरिमा को तार-तार कर राष्ट्र का घोर अपमान किया है।’
किसानों के उत्पात के लिए कौन कौन जिम्मेदार हैं, इस बारे में ‘दैनिक जागरण’ कहता है, ‘अराजक किसानों के उत्पात के लिए किसान नेताओं के साथ उन्हें उकसाने वाले राजनीतिक दल और खासकर कांग्रेस और वामपंथी दल भी जिम्मेदार हैं। वे इससे अनजान नहीं हो सकते कि किसान नेताओं का मकसद अराजकता का सहारा लेकर सरकार को झुकाने का था, न कि कृषि कानूनों पर अपनी आपत्तियों का समाधान कराना।’
पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह बोले- लाल किले की घटना से सिर शर्म से झुक गया, किसान आंदोलन होगा कमजोर#DelhiViolence #FarmersProstests @capt_amarinder https://t.co/uOwRYN4k6c
— Dainik Jagran (@JagranNews) January 27, 2021
किसान आंदोलन… यहां से किधर
प्रमोद जोशी : किसानों ने जो सेल्फ गोल किया है, वह उनकी जीत नहीं है
वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी ने अपने ब्लॉग ‘जिज्ञासा’ में आज सुबह के अखबारों के हवाले से किसान आंदोलन की आगे की दशा और दिशा को जानने बताने की कोशिश की है। किसान-आंदोलन के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा की कवरेज पर नजर डालें, तो कोलकाता का टेलीग्राफ केंद्र सरकार के खिलाफ और आंदोलन के समर्थन में साफ दिखाई पड़ता है। इस आंदोलन में नक्सली और खालिस्तानी तत्वों के शामिल होने की खबरों को अभी तक अतिरंजना कहा जाता था। ज्यादातर दूसरे अखबारों ने हिंसा की भर्त्सना की है। इंडियन एक्सप्रेस ने अपने संपादकीय में लिखा है कि देश के 72वें गणतंत्र दिवस पर राजधानी में अराजक (लुम्पेन) भीड़ का लालकिले के प्राचीर से ऐसा ध्वज फहराना जो राष्ट्रीय ध्वज नहीं है, गंभीर सवाल खड़े करता है। इन सवालों का जवाब किसान आंदोलनकारियों को देना है।
संयुक्त किसान मोर्चा ने खुद को ‘समाज-विरोधी तत्वों’ से अलग कर लिया है, और उन्हें अवांछित करार दिया है, पर इतना पर्याप्त नहीं है। वह ट्रैक्टर मार्च के हिंसक होने पर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। इस हिंसा ने किसानों के आंदोलन को धक्का पहुँचाया है और इस आंदोलन के सबसे बड़े दावे को धक्का पहुँचाया है कि आंदोलन शालीन और शांतिपूर्ण रहा है। काफी हद तक इस नेता-विहीन आंदोलन के नेताओं ने इस रैली के पहले कहा था कि तयशुदा रास्तों पर ही मार्च होगा। ऐसा हुआ नहीं और भीड़ बेकाबू हो गई। …छह महीने पहले जबसे यह आंदोलन शुरू हुआ है, यह नेता-विहीन है। इस बात को इस आंदोलन की ताकत माना गया। पहचाना चेहरा आंदोलन के उद्देश्यों (तीन कृषि कानूनों की वापसी) पर फोकस करने का काम करता। अब मंगलवार की हिंसा के बाद आंदोलन ने अपने ऊपर इस आरोप को लगने दिया है कि यह नेता-विहीनता, दिशाहीनता बन गई है। उधर सरकार भी यह कहकर बच नहीं सकती कि हमने तो कहा था कि हिंसा हो सकती है।
किसान आंदोलन यहाँ से किधर जाएगा, यह सवाल दीगर है, पर इस आंदोलन ने इस बात को रेखांकित किया है कि शासन चलाने, कानून बनाने और सुधार करने की राह ऐसी नहीं होनी चाहिए। सम्बद्ध लोगों की चिंताओं पर ध्यान दिए बगैर सुधार आरोपित नहीं किए जा सकते। कानूनों को बनाने के पहले व्यापक विचार-विमर्श के काम को त्यागा नहीं जाना चाहिए। संचार-संपर्क और मनुहार का काम होना ही चाहिए। उधर किसानों ने जो सेल्फ गोल किया है, वह उनकी जीत नहीं है। कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि स्वर्ण सिंह पंढेर के ग्रुप की इस हिंसा में भूमिका है। पंढेर ग्रुप संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा नहीं है, तब वह इसके बीच कहाँ से आ गया? सबसे बड़ी बात सरकारी इंटेलिजेंस का क्या हुआ? गणतंत्र दिवस पर ऐसी अराजकता परेशान करने वाली है।
#Thread #farmersrprotest How the tractor rally descended into chaos and protesters stormed the Red Fort. @sofiahsan @jignasa_sinha @BaruahSukrita @AnyaShankar and @sakshi_dayal report. https://t.co/HMWbhpPdLk
— The Indian Express (@IndianExpress) January 27, 2021
एक्सप्रेस में खबर यह भी है कि किसानों के साथ बात आगे चलेगी या नहीं, इसपर सवालिया निशान हैं। लिज़ मैथ्यूस की खबर में किसी सरकारी स्रोत ने कहा है कि हमारी रणनीति भी अब बदलेगी। ऐसा कैसे संभव है कि आप लालकिले में घुस जाएं, वहाँ झंडा लगा दें और फिर कहें कि आओ बात करें। उधर आज के हिन्दू ने अपने सरकारी स्रोतों के हवाले से खबर दी है कि सरकार अब भी बातचीत के लिए तैयार है।
दिल्ली में किसानों का ट्रैक्टर तांडव, लालकिले में घुसे तिरंगे की जगह धर्म विशेष का झंडा लगाया