रणदीप हुडा निर्देशित पहली फिल्म 22 मार्च को होगी रिलीज़
बालीवुड एक्टर रणदीप हुडा की आगामी निर्देशित पहली फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ एक नायक के पुनरुत्थान की शुरुआत करती है, जो भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में एक अदम्य व्यक्ति है। रणदीप हुडा की स्वातंत्र्य वीर सावरकर बायोपिक: ए सिनेमाई ट्रिब्यूट टू इंडियाज़ अनसंग हीरो 22 मार्च 2024 को रिलीज़ होगी, जो राष्ट्रीय शहीद दिवस पर भारतीय सशस्त्र संघर्ष के शहीदों को श्रद्धांजलि है।दरअसल, तप, त्याग और तितिक्षा (सहनशीलता) जैसे गौरवशाली भारतीय मूल्यों को मिट्टी में गूंथकर अगर एक प्रतिमा बनाई जाए तो उस प्रतिमा का नाम होगा ‘वीर विनायक दामोदर सावरकर’। फिल्म एक सम्मोहक यात्रा की शुरुआत करती है, जो एक दूरदर्शी और तेजतर्रार स्वातंत्र्य वीर सावरकर की पौराणिक लेकिन उपेक्षित कहानी को जीवंत करती है। इस प्रतिष्ठित स्वतंत्रता सेनानी के सार और उत्साह को दर्शाने में उनकी बहुमुखी प्रतिभा और समर्पण का एक प्रमाण, रणदीप का चित्रण एक टूर डी फ़ोर्स होने का वादा करता है।
चरित्र चित्रण के प्रति अपने समर्पण के लिए जाने जाने वाले, रणदीप हुडा का स्वातंत्र्य वीर सावरकर का चित्रण एक मंत्रमुग्ध कर देने वाली और विचारोत्तेजक कहानी बनने के लिए तैयार है, जो इतिहास के पर्दों से ढके एक व्यक्ति के धैर्य, जुनून और जटिलता पर प्रकाश डालता है। स्वातंत्र्य वीर सावरकर एक ऐतिहासिक व्यक्ति के जीवन का वर्णन करने से कहीं अधिक करता है; यह यथास्थिति को चुनौती देता है, जो कि एक महत्वपूर्ण लेकिन अक्सर नजरअंदाज कर दी गई चमकदार शख्सियत के पुनर्मूल्यांकन का संकेत देता है, जिसमें रणदीप हुडा का सूक्ष्म निर्देशन है।
फिल्म के बारे में बात करते हुए रणदीप हुड्डा ने कहा, ‘श्रीसावरकर के साथ कालापानी में लगभग दो साल बिताने के बाद, आखिरकार उनके लिए आज़ादी की ओर कदम बढ़ाने का समय आ गया है। यह यात्रा कठिन रही है, लेकिन इसने मुझे एक अभिनेता के रूप में खुद से आगे बढ़कर एक फिल्म निर्माता बनने और बहुत कुछ करने के लिए प्रेरित किया है। अब समय आ गया है कि देश को हमारे स्वतंत्रता संग्राम में सशस्त्र क्रांति के योगदान के बारे में पता चले। श्रीसावरकर हमेशा समय से आगे थे और आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं।’
यह फिल्म ज़ी स्टूडियोज़, आनंद पंडित, रणदीप हुडा, संदीप सिंह और योगेश राहर द्वारा निर्मित रूपा पंडित, सैम खान, अनवर अली, पांचाली चक्रवर्ती द्वारा सह-निर्मित। रणदीप हुडा, अंकिता लोखंडे और अमित सियाल अभिनीत यह फिल्म 22 मार्च 2024 को दो भाषाओं – हिंदी और मराठी में रिलीज़ होगी।
जो लोग उनकी अंग्रेजों से मांफी मांगने की बात को सबसे अधिक तूल देते हैं आज उन्हें भी यह समझना होगा कि शिवाजी महाराज का औरंगजेब को लिखा पत्र देखा है। उस पत्र में शिवाजी महाराज औरंगजेब से कहते हैं, ‘हम भी आपके हैं और क़िले भी आपके हैं।’ अब मेरा प्रश्न है कि शिवाजी क्या औरंगजेब के हो गए थे? या औरंगजेब ने शिवाजी की बात पर भरोसा कर लिया था? दोनों का उत्तर ‘नहीं’ है। कूटनीति में भाषा कुछ अलग होती है, लक्ष्य कुछ अलग होता है। सावरकर के साथ भी ऐसा ही है। सावरकर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ‘जेल में रहकर या मरकर देश सेवा नहीं की जा सकती। इतिहास हमें भले ही कायर कहे, लेकिन इसके बारे में नहीं सोचना चाहिए।’
वीर सावरकर वो महापुरुष हैं जिन्होंने मां भारती की स्तुति में 6000 कविताएं लिखी हैं, काग़ज़ पर नहीं, सेल्युलर जेल की दीवारों पर। कलम से नहीं, कंकर, कील और कोयले से। ये कविताएं कभी समाप्त न हों, इसलिए सावरकर ने इन्हें रट-रट कर कंठस्थ कर लिया था। सावरकर इस संसार के एकमात्र ऐसे रचनाकार हैं जिनकी पुस्तक ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ को अंग्रेजों ने प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया था। ये वो पुस्तक है जिसके माध्यम से सावरकर ने सिद्ध कर दिया था कि 1857 की जिस क्रांति को अंग्रेज मात्र एक सिपाही विद्रोह मानते हैं, वो भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’था।
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वीर सावरकर वही क्रांतिवीर हैं जिन्हें अंग्रेज-सरकार ने क्रांति के अपराध में काला-पानी का दंड देकर 50 वर्षों के लिए अंडमान की सेलुलर जेल भेज दिया था। 10 साल बाद जब वीर सावरकर काला-पानी की हृदय विदारक यातनाओं को झेलने के बाद जेल से बाहर आए, तब से हमारे देश के कुछ बुद्धिजीवी उनके कृतित्व को भूलकर उन पर अंग्रेज़ों से माफ़ी मांगने का आरोप लगाते रहे हैं। सावरकर कहते थे- ‘माता भूमि पुत्रो अहम् पृथिव्याः।‘ ये भारत भूमि ही मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूं।(एएमएपी)