यूसीसी ड्राफ्ट में हर धर्म में शादी और तलाक के लिए एक ही कानून

यूसीसी में बहु विवाह पर रोक जैसे कई अहम बिन्दु शामिल

उत्तराखंड की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने अपने चुनावी वादे को अमली जामा पहनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। मंगलवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का विधेयक विधानसभा में पेश किया। मुख्यमंत्री धामी आज हाथ में संविधान की कापी लेकर विधानसभा पहुंचे थे। विधेयक पेश करने के बाद विधायकों ने वंदे मातरम और जय श्री राम के नारे लगाए। विधेयक के कानून बन जाने के बाद विवाह, तलाक और उत्तराधिकार जैसे मसलों पर सभी धर्मों के लोगों के लिए नियम एक जैसे होंगे। खास बात यह है कि यूसीसी में लिव इन रिलेशनशिप को भी व्यवस्थित और शादी की तरह सुरक्षित बनाने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। यूसीसी ड्राफ्ट में हर धर्म में शादी और तलाक के लिए एक ही कानून, बहु विवाह पर रोक जैसे कई अहम बिन्दु शामिल हैं।

राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद विधेयक बनेगा कानून

उत्तराखंड जल्द ही समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने वाला देश का दूसरा राज्य बन सकता है। चार फरवरी को उत्तराखंड कैबिनेट से यूसीसी विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद उसे आज यानि मंगलवार को विधानसभा में पेश किया गया। अब राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद विधेयक कानून बन जाएगा। नए कानून के बाद लिव इन रिलेशन बनाने और खत्म करने की प्रक्रिया तय होगी। लिव इन रिलेशन को रजिस्टर कराना और खत्म करते समय भी इसकी रजिस्ट्रार को देना अनिवार्य होगा। इसकी सूचना थाने को भी दी जाएगी। यदि लिव इन पार्टनर में किसी की उम्र 21 वर्ष से कम है तो माता-पिता को भी सूचना दी जाएगी।

जनता से किए गए प्रमुख वादों में था ‘यूसीसी’

वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने जनता से किए गए प्रमुख वादों में यूसीसी पर अधिनियम बनाकर उसे प्रदेश में लागू करना भी शामिल था। इसी के तहत उत्तराखंड राज्य में लगातार दूसरी बार जीत दर्ज करने का इतिहास रचने के बाद भाजपा ने मार्च 2022 में सरकार गठन के तत्काल बाद मंत्रिमंडल की पहली बैठक में ही यूसीसी का मसौदा तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समिति के गठन को मंजूरी दी थी। यूसीसी के ड्राफ्ट के अनुसार ये कई अहम बिन्दु शामिल हैं। इनमें से कुछ निम्न प्रकार से हैं।

शादी के लिए कानूनी उम्र 21 साल होगी तय

विवाह की न्यूनतम उम्र कहीं तय तो कहीं तय नहीं है। एक धर्म में छोटी उम्र में भी लड़कियों की शादी हो जाती है। वे शारीरिक व मानसिक रूप से परिपक्व नहीं होतीं। जबकि अन्य धर्मों में लड़कियों के 18 और लड़कों के लिए 21 वर्ष की उम्र लागू है। कानून बनने के बाद युवतियों की शादी की कानूनी उम्र 21 साल तय हो जाएगी।

महिला और बच्चे को मिलेगा पूरा अधिकार

लिव इन रिलेशन को शादी की तरह सुरक्षित बनाने के लिए महिला और संबंध से पैदा हुए बच्चे को पुरुष की संपत्ति में अधिकार दिया जाएगा। यदि किसी महिला को पुरुष पार्टनर छोड़ देता है तो वह भरण-पोषण की मांग के लिए कोर्ट में अपना दावा पेश कर सकती है। लिव इन से पैदा हुआ बच्चा वैध होगा। यानी शादी के बाद पैदा हुए बच्चे की तरह ही जैविक पिता को उसका भरण-पोषण करना होगा और संपत्ति में अधिकार भी देना होगा।

सजा का भी प्रावधान

लिव इन रिलेशन बनने के एक महीने के भीतर इसे रजिस्टर नहीं कराने या फिर झूठे वादे करके धोखा देने पर सजा का प्रावधान भी होगा। लिव इन पार्टनर यदि रजिस्ट्रेशन के समय गलत जानकारी देते हैं या बाद में कोई सूचना गलत पाई जाती है तो कानून कार्रवाई का प्रावधान किया गया है।

बहुविवाह पर लगेगी रोक

कुछ कानून में बहु विवाह करने की छूट है। चूंकि हिंदू, ईसाई और पारसी के लिए दूसरा विवाह अपराध है और सात वर्ष की सजा का प्रावधान है। इसलिए कुछ लोग दूसरा विवाह करने के लिए धर्म बदल लेते हैं। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के लागू होने के बाद बहुविवाह पर रोक लगेगी। बहुविवाह पर भी पूरी तरह से रोक लग जाएगी।

पुरुष-महिला को तलाक देने के समान अधिकार

समान नागरिक संहिता में पुरुष, और महिलाओं को तलाक देने क समान अधिकार होगा। पति-पत्नी रजामंदी के बाद दोनों एक-दूसरे को तलाक दे सकते हैं।  तलाक के बाद महिलाओं  के दोबारा निकाह में कोई शर्त लागू नहीं होगी।  उत्तराखंड में यूसीसी लागू होने पर हर धर्म में शादी, तलाक के लिए एक समान कानून होगा।

बिना रजिस्ट्रेशन, लिव इन रिलेशन में रहने पर अब होगी जेल

लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों के लिए रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद उत्तराखंड में लिव इन रिलेशनशिप का वेब पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा। रजिस्ट्रेशन न कराने पर युगल को छह महीने का कारावास और 25 हजार का दंड या दोनों हो सकते हैं। रजिस्ट्रेशन के तौर पर जो रसीद युगल को मिलेगी उसी के आधार पर उन्हें किराए पर घर, हॉस्टल या पीजी मिल सकेगा। यूसीसी में लिव इन रिलेशनशिप को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इसके मुताबिक, सिर्फ एक व्यस्क पुरुष व वयस्क महिला ही लिव इन रिलेशनशिप में रह सकेंगे। वे पहले से विवाहित या किसी अन्य के साथ लिव इन रिलेशनशिप या प्रोहिबिटेड डिग्रीस ऑफ रिलेशनशिप में नहीं होने चाहिए। पंजीकरण कराने वाले युगल की सूचना रजिस्ट्रार को उनके माता-पिता या अभिभावक को देनी होगी।

विवाह पंजीकरण कराना होगा जरूरी

कानून लागू होने के बाद विवाह पंजीकरण कराना होगा। अगर ऐसा नहीं कराया तो किसी भी सरकारी सुविधा से वंचित होना पड़ सकता है। वहीं, सूत्रों के अनुसार, यूसीसी मसौदे में 400 से ज्यादा धाराएं हैं, जिसका लक्ष्य पारंपरिक रीति-रिवाजों से पैदा होने वाली विसंगतियों को दूर करना है।

उत्तराधिकार की प्रक्रिया होगी सरल

एक कानून में मौखिक वसीयत व दान मान्य है। जबकि दूसरे कानूनों में शत प्रतिशत संपत्ति का वसीयत किया जा सकता है। यह धार्मिक यह मजहबी विषय नहीं बल्कि सिविल राइट या मानवाधिकार का मामला है। एक कानून में उत्तराधिकार की व्यवस्था अत्यधिक जटिल है। पैतृक संपत्ति में पुत्र व पुत्रियों के मध्य अत्यधिक भेदभाव है। कई धर्मों में विवाहोपरांत अर्जित संपत्ति में पत्नी के अधिकार परिभाषित नहीं हैं। विवाह के बाद बेटियों के पैतृक संपत्ति में अधिकार सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं है। ये अपरिभाषित हैं। इस कानून के लागू होने के बाद उत्तराधिकार की प्रक्रिया सरल बन जाएगी।

बुजुर्ग मां-बाप के भरण-पोषण की पत्नी पर होगी जिम्मेदारी

कानून लागू होने के बाद नौकरीपेशा बेटे की मौत की स्थिति में बुजुर्ग मां-बाप के भरण-पोषण की पत्नी पर जिम्मेदारी होगी। उसे मुआवजा भी मिलेगा। पति की मौत की स्थिति में यदि पत्नी दोबारा करती है तो उसे मिला हुआ मुआवजा मां-बाप के साथ साझा किया जाएगा।

गोद लेने का नियम बदलेगा

कानून लगाने होने के बाद राज्य में मुस्लिम महिलाओं को भी गोद लेने का अधिकार मिलेगा। गोद लेने की प्रक्रिया आसान होगी। इसके साथ ही अनाथ बच्चों के लिए संरक्षकता की प्रक्रिया सरल होगी। कानून लागू होने के बाद दंपती के बीच झगड़े के मामलों में उनके बच्चों की कस्टडी उनके दादा-दादी को दी जा सकती है।

यूसीसी में क्या नहीं बदलेगा?

  • धार्मिक मान्यताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
  • धार्मिक रीति-रिवाज पर असर नहीं होगा।
  • ऐसा नहीं है कि शादी पंडित या मौलवी नहीं कराएंगे।
  • खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर प्रभाव नहीं।

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समान नागरिक संहिता क्या है?

समान नागरिक संहिता का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता लागू होने से सभी धर्मों का एक कानून होगा। शादी, तलाक, गोद लेने और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। यह मुद्दा कई दशकों से राजनीतिक बहस के केंद्र में रहा है। यूसीसी केंद्र की मौजूदा सत्ताधारी भाजपा के लिए जनसंघ के जमाने से प्राथमिकता वाला एजेंडा रहा है।  भाजपा सत्ता में आने पर यूसीसी को लागू करने का वादा करने वाली पहली पार्टी थी और यह मुद्दा उसके 2019 के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र का भी हिस्सा था।(एएमएपी)