मोदी ने किया इस्लामी संस्थाओं के सर्टिफिकेट का खेल बंद

आपका अखबार ब्यूरो।

आखिरकार कृषि एवं प्रसंस्कृत उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथारिटी -एपेडा) के रेड मीट मैन्युअल से ‘हलाल’ शब्द हटा लिया गया है। इसके कारण मीट व्यापार में धार्मिक भेदभाव हो रहा था और इसे हटाने की मांग काफी समय से की जा रही थी।


 

हलाल प्रक्रिया का पालन किए जाने के कारण हिंदू नाम के कारोबारी चाहकर भी इस क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पाते थे। ऑप इंडिया की खबर के अनुसार हलाल सर्टिफिकेशन की आड़ में उनका शोषण होता था। वहीं इस क्षेत्र में रोजगार में गैर मुस्लिमों के साथ भेदभाव होता था। करीब छह महीने पहले सोशल मीडिया पर सरकारी दस्तावेजों में हलाल शब्द को लेकर काफी बवाल हुआ था और सरकार को इस पर सफाई देनी पड़ी थी। लंबे समय से अभियान चला रहे हरिंदर एस सिक्का ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री पीयूष गोयल को धन्यवाद देते हुए कहा है कि सरकार के इस कदम के बाद अब हलाल सर्टिफिकेट की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी और सभी प्रकार के वैध मीट कारोबारी अपना पंजीकरण करा सकेंगे। हलाल के लिए थोपे गए इस्लामी नियमों के कारण गैर मुस्लिम इस क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पाते थे।

Sizing up the $2 trillion halal market - FM

एपेडा ने अपने फूड सेफ्टी मैनेजमेंट सिस्टम के स्टैंडर्ड्स और क्वालिटी मैनेजमेंट के दस्तावेजों में बदलाव किया है। इसमें पहले लिखा हुआ होता था कि- ‘इस्लामी संगठनों की उपस्थिति में पशुओं को ‘हलाल’ प्रक्रिया का कड़ाई से पालन करते हुए जिबह किया गया है। प्रतिष्ठित इस्लामी संगठनों के सर्टिफिकेट लेकर मुस्लिम मुल्कों की जरूरतों का ध्यान रखा गया है।’ इसकी जगह अब लिखा गया है- ‘मीट को जहां आयात किया जाना है उन मुल्कों की जरूरतों के हिसाब से जानवरों को जिबह किया गया है।’

इसी तरह दस्तावेज में पृष्ठ संख्या 35 पर पहले लिखा होता था- ‘इस्लामी शरीयत के हिसाब से पंजीकृत इस्लामी संगठन की कड़ी निगरानी में हलाल प्रक्रिया के तहत जानवरों को जबह किया गया है और उनकी निगरानी में ही इसका सर्टिफिकेट भी लिया जाता है।’ इस पूरी पंक्ति को ही हटा दिया गया है।

बहुत बड़ा षड्यंत्र

सामाजिक कार्यकर्ता रवि रंजन सिंह कहते हैं, ‘गंभीरता से आप विचार करेंगे तो आपको खुद ही पता चलेगा कि हलाल की आड़ में एक बहुत बड़ा षड्यंत्र चल रहा है। वह षड्यंत्र है वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कब्जा करना। हलाल के पक्षधर इस बात पर जोर देते हैं कि कोई भी वस्तु बने, वह इस्लामी रीति-रिवाज से बने और इस्लामी दुनिया को फायदा पहुंचाने वाली हो। इस्लमी दुनिया को फायदा पहुंचाने का अर्थ है कि आप यदि कोई कारखाना लगाते हैं, तो उसमें काम करने वाले मुसलमान ही हों। भारत में ऐसा करना तो अभी संभव नहीं है, पर इस्लामी मुल्कों में इस बात पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। फिर भी भारत में कुछ ऐसे संस्थान हैं, जहां मुसलमान ही काम करते हैं। यहां उन संस्थानों का नाम लिखना उचित नहीं है, पर एक सजग भारतीय को पता है कि वे संस्थान कौन से हैं।’

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हलाल एक हथियार

‘अरब के देशों ने तो हलाल को एक हथियार बना लिया है। वे उन्हीं विदेशी कंपनियों से कोई वस्तु आयात करते हैं, जिन्हें ‘हलाल प्रमाणपत्र’ मिला हो। हलाल प्रमाणपत्र देने के लिए कंपनियों से मोटी रकम वसूली जाती है। इसके साथ ही यह भी शर्त होती है कि कच्चा माल किसी मुसलमान से ही लेना है, रोजगार मुसलमानों को ही देना है। भारत जैसे देशों में तो ये सारी शर्तें पूरी नहीं की जा सकती हैं, इसलिए ऐसे देशों को कुछ रियायत दी जाती है। इस्लामी देशों को इन शर्तों में कोई छूट नहीं मिलती है। यानी वे जो भी करें इस्लाम और उनके बंदों के लिए करें। यही इस्लाम में जायज है और यही हलाल है।

भारत में हलाल का प्रमाणपत्र ‘हलाल इंडिया लिमिटेड’, ‘हलाल सर्टिफिकेशन आथरिटी’, ‘जमीयत उलेमाए हिंद’ जैसे संगठन देते हैं। इसके बदले ये लोग जो मोटी रकम लेते हैं।’


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