डा. कुमार विश्वास ।
अर्थशास्त्र की बारीकियों का तो नहीं पता पर अर्थवती नीतियों के शास्त्र सम्मत सौदर्य से जरूर वाकिफ हूं। तुलसी बाबा ने विस्तार से चर्चा की है कि कैसा होता था रामराज्य का बजट।
मेरी आजकल की सारी सोच चाहे कर के बारे में हो या शासन व्यवस्था के बारे में- वह रामराज्य का चारों तरफ है। और यह अभी से नहीं बहुत पहले से है। आज कुछ राजनीतिक दल श्रीराम के नाम से परेशान हैं और कुछ श्रीराम के नाम पर हैं। उन दोनों ही वर्ग को सबसे पहले यह समझना चाहिए कि बापू जब दांडी मार्च पर थे तो उन्होंने 1930 में ‘नवजीवन’ पत्रिका में एक लेख लिखा- स्वराज और रामराज्य। उसमें पहली बार बापू ने रामराज्य का बारे में बताया। और रामराज्य की इन्हीं अवधारणाओं से अगर हम तुलसीदास के ग्रंथों श्रीरामचरित मानस, कवितावली, दोहावली, विनय पत्रिका आदि में देखें तो हमें कर व्यवस्था का पता चलता है। यह लाखों वर्ष से भारत की कर निर्धारण की व्यवस्था है कि- कर कैसे लेना चाहिए। जब भरत श्रीराम से मिलने वन जाते हैं तो श्रीराम उनसे पूछते हैं कि कर की व्यवस्था कैसे कर रहे हो। भरत कहते हैं कि जैसे इक्ष्वाकु वंश करता रहा है वैसे ही कर रहे हैं। श्रीराम फिर पूछते हैं कि बताओ किस प्रकार से? तुलसीदास ने ‘दोहावली’ में यह प्रसंग प्रस्तुत किया है। श्रीराम ने कहा कि हम सूर्यवंशी हैं। हमें कर ऐसे लेना चाहिए जैसे सूरज लेता है। शायद कुछ लोगों को आश्चर्य होगा कि सूरज कैसे कर लेता है। तो सूरज कर ऐसे लेता है कि वह जल को सोखता है। वह जल सोखता है समुद्र से, नदी से, नाले से। यहां तक कि हमारी अंजुरी से सोख लेता है, गिलास से सोख लेता है, लेकिन उसी जल को जब वह बादल बनाकर कम दबाव की जगह पर- जहां जरूरत है- वहां बरसाता है तो लोग प्रसन्न हो जाते हैं कि वाह, क्या मौसम आया है। राजा को ऐसा होना चाहिए। तुलसी ने लिखा-
बरसत हरषत सब लखैं करषत लखै न कोय।
तुलसी प्रजा सुभाग से भूप भानु सो होय।।
जब (जल) बरसे तो सब हर्षित होकर देखें और जब वह (जल) खींचे तो कोई न देखे। तुलसी कहते हैं कि प्रजा का सौभाग्य होता है सूर्य के स्वभाव वाला ऐसा राजा मिलना। यानी जब सरकार हमसे टैक्स ले तो हमें पता न चले ऐसे चुपके से काट ले। लेकिन जब उसी टैक्स से मिली राशि को कल्याणकारी कामों में लगाए- हाईवे बनाए, पुल बनाए, आईटी-आईआईएम-स्कूल- अस्पताल बनाए, बीमारी से लड़ने के लिए पूरे भारत में योजनाएं लाए- तो सब खुश हों कि सरकार कितनी अच्छी है। कितना अच्छा काम कर रही है।
टैक्स लगाने का ढंग
एक स्थान पर तुलसीदास ने इस बारे में भी बोला है कि टैक्स कैसा लगना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो अमीर हैं, ज्यादा पैसा दे सकते हैं उनसे ज्यादा टैक्स लेना चाहिए। और जो गरीब है उससे टैक्स नहीं लेना चाहिए। अमीर से सरकार जो ज्यादा टैक्स ले तभी तो समाजवाद आएगा। यह बात समाजवादी भी नहीं बोलते। श्रीराम पहले समाजवादी हैं। श्रीराम ने कैसे रामराज्य बनाया इसके बारे में तुलसी बताते हैं कि-
मणि माणिक महंगे किए सहजे तृण जल नाज।
तुलसी सोइ जानिए राम गरीब नवाज।।
मणि और माणिक महंगे कर दिए। इसलिए कर दिए कि यहां गरीब को रोटी नहीं मिल रही है और आप हीरा खरीद रहे हो। ज्यादा पैसा कमाया है तो हीरे के ज्यादा पैसे भी दो। तृण- तिनके यानी पशु पक्षी के खाने की सामग्री, जल- जो सबके लिए चाहिए पशुओं और मनुष्यों दोनों के लिए… और नाज- यानी अनाज, भोजन। आजकल जो कहते हैं दलित चेतना, किसान की चेतना, तो श्रीराम हैं असली गरीब नवाज। वो गरीब का हित जानते हैं। उन्होंने उसी के अनुकूल व्यवस्था बनाई। श्रीराम का बजट कैसा आया… श्रीराम के बजट की पहली सूचना क्या है- मणि माणिक महंगे किए सहजे तृण जल नाज।
जो भी सरकार है अगर वह ऐसा कर दे तो बहुत बढ़िया बात है। बड़ी बड़ी गाड़ियां मर्सिडीज, बीएमडब्ल्यू हैं इन पर आप लगाइए टैक्स, महंगी शराब, सिगरेटों पर लगाइए टैक्स, हवाई जहाजों की महंगी बिजनेस क्लास और फर्स्ट क्लास की टिकटों पर लगाइए टैक्स। और ट्रेनों में डिब्बे बढ़ा दीजिए, गरीब रथा और दुरंतो ट्रेनें बढ़ा दीजिए और उसका टिकट सस्ता कर दीजिए।
‘देवताओं’ का सच
एक जगह तुलसी और बोलते हैं, जब वह नाराज हैं राजाओं से-
बलि मिस देखे देवता कर मिस मानव देव।
मुए मार सुविचार हत स्वारथ साधन एव।।
देवताओं के बारे में सुनते तो बहुत थे पर राजा बलि के मार्फत हमने देख लिया कि देवता कैसे होते हैं। और कर (टैक्स) के बहाने वे मनुष्य भी देख लिए जो देवता बने फिरते हैं। कहते फिरते थे कि मैं गरीब का चिंतक हूं, गरीब का चिंतक हूं- पर उसके टैक्स ने बता दिया कि वे क्या हैं। सब अपने स्वार्थ के साधन में सामान्य मनुष्य के पीछे पड़े हुए हैं।
बजट से आम आदमी सुखी हो
तो यह जो कर व्यवस्था है, अगर बजट सुनने के बाद कोई भी आम आदमी दुखी होता है तो फिर सत्ता के मुंह से श्रीराम का नाम या रामराज्य का नाम शोभा नहीं देता। रामराज्य की क्या परिभाषा है, श्रीराम खुद बता रहे हैं-
जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी।
सो नृप अवश नरक अधिकारी।।
जिसके राज्य में प्रिय प्रजा दुखी है वह नरक का अधिकारी है। तो भई बजट तो सूर्य की तरह होना चाहिए कि- बरसत हरषत सब लखैं करषत लखै न कोय। तुलसी प्रजा सुभाग से भूप भानु सो होय।।
कसौटी सामने है, अब आप देखिए कि 2021 का बजट कैसा है।