सनातन धर्म में सूर्य देव को पूजनीय माना गया है। हमारे धर्म में उगते हुए सूरज को प्रतिदिन अर्घ्य दिया जाता है। माना गया है कि ऐसा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, हर वर्ष में माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को भगवान सूर्य देव को समर्पित है। इस दिन को रथ सप्तमीया माघ सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। इस बार रथ सप्तमी 16 फरवरी को है। रथ सप्तमी को अचला सप्तमी या आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। यह सूर्योपासना का दिन है। इस दिन की गई भक्तिमय पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव अपने भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद देते हैं। आइए जानते हैं रथ सप्तमी का शुभ मुहूर्त, महत्व और व्रत विधि की कथा।

शुभ मुहूर्त कुछ इस प्रकार

15 फरवरी यानी माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि का प्रारम्भ सुबह 10:12 मिनट से रहेगा और समापन 16 फरवरी को सुबह 08:54 मिनट तक होगा। उदया तिथि के अनुसार रथ सप्तमी 16 फरवरी दिन शुक्रवार को मनाई जायगी। रथ सप्तमी के दिन अरुणोदय :- सुबह 06:35 मिनट पर। रथ सप्तमी के दिन सूर्योदय :- सुबह 06:59 मिनट पर। रथ सप्तमी के दिन स्नान मुहूर्त :- प्रातः 05:17 मिनट से सुबह 06:59 मिनट तक।

रथ सप्तमी का धार्मिक महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान सूर्य की पूजा करने से लोगों को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। सच्चे मन से की गई साधना से प्रसन्न होकर भगवान भास्कर अपने भक्तों को सुख, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद देते हैं। माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन सूर्योदय से पहले किसी पवित्र नदी या जलाशय में स्नान करना और सूर्य को दीप दान करना बहुत फलदायी माना जाता है। यदि सुबह स्नान करने से पहले किसी दूसरे के जलाशय में स्नान किया जाए तो बहुत लाभ होता है।

रथ सप्तमी व्रत कथा

इस संदर्भ में भविष्य पुराण में एक कथा है कि एक वैश्या ने अपने जीवन में कभी कोई दान-पुण्य नहीं किया। बुढ़ापे में जब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह ऋषि वशिष्ठ के पास गईं। उसने ऋषि के समक्ष अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। तब वशिष्ठ जी ने उन्हें रथ सप्तमी यानी अचला सप्तमी के व्रत का महत्व बताते हुए कहा कि इस दिन यदि कोई व्यक्ति जल को तरल बनाने से पहले किसी दूसरे के जल से स्नान करता है और सूर्य को दीप दान करता है तो उसे बहुत पुण्य मिलता है। वैश्या ने ऋषि के कहे अनुसार रथ सप्तमी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से शरीर त्यागने के बाद उसे इंद्र की अप्सराओं की मुखिया बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

इस विधि के अनुसार करें पूजा

सबसे पहले इस दिन आप अरुणोदय में स्नान करें। इसके बाद सूर्योदय के समय ‘ओम घृणि सूर्याय नम:’ कहते हुए भगवान सूर्य को अर्ध्य दें। फिर विधि विधान से सूर्य देव की पूजा करें। अर्घ्य देने के लिए आप सबसे पहले सूर्य देव के समक्ष खड़े होकर नमस्कार मुद्रा में हाथ जोड़ लीजिए। फिर एक छोटे कलश से भगवान सूर्य को धीरे-धीरे जल चढ़ाकर अर्घ्यदान दीजिए। इसके बाद गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं। साथ ही पूजा के समय सूर्य देव को लाल फूल अर्पित कीजिए। सूर्य को जल चढ़ाने के बाद लाल आसन पर बैठकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके ”एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते। करुणामयी माता, गृहस्थभक्ति, दिवाकर।” मंत्र का 108 बार जाप करें।

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इस मंत्र का जाप करने से आपको सूर्य देव का आशीर्वाद मिलेगा और आपको सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलेगा। किए गए काम का फल आपको जल्द ही मिलना शुरू हो जाएगा और आपकी कमियां दूर हो जाएंगी। साथ ही आपके अंदर एक नई ऊर्जा का संचार होगा और आप सफलता की राह पर आगे बढ़ने लगेंगे।(एएमएपी)