डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
राज्य बाल संरक्षण आयोग की टीम ने मारा था छापा
उल्लेखनीय है कि 27 मार्च 2023 को राज्य बाल संरक्षण आयोग की टीम ने डबरा पहुंचकर वहां सिमरिया टेकरी स्थित सेंट पीटर्स स्कूल पर औचक छापा मारा था, जिसमें पाया गया कि स्कूल बिना राज्य सरकार की मान्यता लिए पिछले कई सालों से चल रहा है। स्कूल में ईसाई साहित्य का भंडार, एक नन ट्रेनिंग सेंटर, बच्चियों के खुली स्थिति में बने शौचालय, एग्रीकल्चर के लिए दी गई भूमि पर विद्यालय का संचालन, स्कूल परिसर में चर्च, परिसर में खुफीया रूप में ईसाई मतान्तरण की सामग्री और कई अन्य अनियमितताएं मिली थीं, जिसको देखते हुए प्रशासन ने तत्काल विद्यालय को सील कर दिया गया था, लेकिन फिर कुछ दिनों बाद मामला ठंडा होते ही उसे न सिर्फ खोल दिया गया, बल्कि शासन के नियमों को पूरा किए वगैर ही पुन: इसमें प्रवेश आरंभ कर दिए गए । यहां अभी लगभग देढ़ हजार के अधिक की संख्या में विद्यार्थियों का होना बताया गया है।
आईसीएसई बोर्ड और अल्पसंख्यक संस्था के संचालन का हवाला देकर बचता है स्कूल प्रबंधन
इस संबंध में डबरा ब्लॉक रिसोर्स समन्वयक विवेक सिंह चौखटिया का कहना है कि इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ सेकंडरी एजुकेशन (आईसीएसई) से वह संचालित है, इसलिए उसे किसी राज्य सरकार की मान्यता की जरूरत नहीं है, यह विद्यालय की ओर से हमें बार-बार बताया जा रहा है, जबकि नियमानुसार कक्षा एक से लेकर आठवीं तक के संचालन के लिए हर विद्यालय को राज्य शिक्षा विभाग की मान्यता लेना अनिवार्य है, उसके बाद ही आप अपनी सुविधानुसार बोर्ड परीक्षा के लिए आगे का एजुकेशन बोर्ड निर्धारित कर सकते हैं। हमने लगातार इस स्कूल को मान्यता लिए जाने के लिए समय-समय पर नोटिस दिए हैं, अभी जब मान्यता लेने के लिए विभाग ने अपनी तारीख घोषित की तब भी हमारी ओर से सेंट पीटर्स स्कूल को पत्र भेजा गया किे वे मान्यता ले लें, लेकिन उन्होंने अभी भी कोई मान्यता नहीं ली।
पहले दिया ढ़ाई करोड़ पैनल्टी जमा करने का नोटिस, अब अधिकारी कुछ भी बोलने से बच रहे
जिला परियोजना समन्वयक रविन्द्र सिंह तोमर का कहना है कि डीओ कार्यालय ने इस प्रकरण में जांच कर अपने बिन्दू भोपाल कार्यालय को भेज दिए हैं। अल्पसंख्यक समुदाय का होने के कारण से बताया यही गया है कि उसे मान्यता में आरटी की छूट मिली हुई है, इसके साथ ही वे कोर्ट में चले गए इसलिए अभी तक हमारी ओर से बहुत सघन जांच नहीं हो पाई, प्रकरण न्यायालय में होने से अभी हम चुप हैं। जब जिला परियोजना समन्वयक तोमर को नियमों का हवाला दिया गया तो उनका कहना था कि आप हमारे पास कागज लेकर आएं अगर कार्रवाई बनेगी तो हम जरूरी करेंगे। जबकि यही वे अधिकारी हैं जिन्होंने पूर्व में इसी विद्यालय को एक नोटिस जारी किया था और राज्य स्कूल शिक्षा विभाग से स्कूल संचालन की मान्यता नहीं होने के एवज में प्रतिदिन 10 हजार रूपए के हिसाब से तीन दिन के भीतर जबाव मांगते हुए वर्ष 2016 के आंकलन कर राशि ढाई करोड़ से अधिक जमा करने के लिए कहा था, पर इस बार इस मुद्दे पर ये चुप नजर आए।
फिलहाल उन्होंने यही बताया है कि कोई राशि इस स्कूल ने अभी बतौर पैनल्टी जमा नहीं की है। ये कोर्ट की स्कूल से जुड़ी जानकारी का भी गलत हवाला दे रहे थे। इस बारे में जब मिशनरी स्कूल से संपर्क किया गया तो पहले जोसेफ जॉर्ज के नाम से आए नंबर को किसी हिमांशू ने उठाया, फिर वह अभी बात करता हूं कहकर बार-बार टालता रहा, पांच घण्टे के बाद इसने संवाददाता के नंबर को ब्लॉक कर दिया।
शिक्षा और शासन की कार्यशैली पर इसलिए हो रहे सवाल खड़े
गौर करने वाली बात यह है कि 1994 में स्कूल के नाम पर इस कैम्पस की स्थापना हुई थी। जब से लेकर अब तक स्कूल ने किसी भी तरह की कोई भी अनुमति नहीं ली, पर धड़ल्ले से स्कूल संचालित हो रहा है। इतना बड़ा कैंपस जोकि कई एकड़ में फैला हुआ है शिक्षा विभाग और शासन की आंख के नीचे बिना रोकटोक चलने से आज शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़े करता है। कहने को शिक्षा विभाग ने अनुमति रिनुअल के लिए पहले 12 बार स्कूल प्रबंधन को नोटिस जारी किया, इसके बाद फिर नए साल में भी नोटिस देकर अनुमति लेने के लिए कहा, लेकिन इसके बावजूद इस ईसाई मिशनरी स्कूल प्रबंधन ने कोई भी ध्यान नहीं दिया और लगातार यह मिशनरी स्कूल शासन के नियमों की धज्जियां उड़ा रहा है। आश्चर्य यह है कि कल तक जो अधिकारी इसे नोटिस थमा रहे थे वे आज इसके अल्पसंख्यक संस्थान होने का हवाला देकर अपनी जिम्मेदारी से भागते नजर आ रहे हैं।
इनका कहना है
पिछले साल मार्च में यहां बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा और ओंकार सिंह ने जो अनियमितताएं पाईं और शासन से इस स्कूल पर कठोर कार्रवाई करने की मांग की, जब उनसे इस स्कूल सेंट पीटर्स के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि आयोग को अब तक शिक्षा विभाग ने अवगत नहीं कराया है कि आखिर तमाम अनियमितताएं पाए जाने पर इस स्कूल के खिलाफ उन्होंने क्या कार्रवाई की ।
नेपाल के सबसे बड़े जमीन घोटाले में दो पूर्व सचिव समेत 131 सरकारी कर्मचारी को सजा
इनका कहना है कि वे पुन: इस विद्यालय का अपडेट लेंगे। वास्तव में यहां जो अनियमितताएं पाई गईं उस पर अभी तक कठोरतम कार्रवाई सेंट पीटर्स के खिलाफ हो जानी चाहिए थी, स्कूल संचालन करने से हमें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन शासन के नियमों का पालन करना प्रत्येक विद्यालय के लिए जरूरी है। जहां तक अल्पसंख्यक संस्थान होने का प्रश्न है, आरटी में छूट होना और मान्यता लेना यह दोनों ही दो अलग बाते हैं, इन्हें मिक्स करके जो कन्फ्यूज पैदा कर रहे हैं ऐसे अधिकारियों से भी पूछा जाएगा कि वे नियमों की सही जानकारी क्यों नहीं रखते । यदि हर विद्यालय के लिए कक्षा आठवीं तक के संचालन हेतु राज्य शिक्षा विभाग की मान्यता जरूरी है तो वह जरूरी ही है, इसमें कोई छूट अल्पसंख्यक संस्थान होने से नहीं मिल जाती है। यह सामान्य बात शिक्षा विभाग के अधिकारियों को पता होना ही चाहिए। (एएमएपी)